दुष्कर्म पीड़िता सरकारी अधिकारी है, अपना अच्छा-बुरा समझ सकती है; दुष्कर्म आरोपी बरी, जानें क्यों

Rajesh kumar
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बिलासपुर (CG HC Rape Case): छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने शादी के झूठे वादे पर दुष्कर्म के एक मामले में दोषी ठहराए गए युवक को संदेह का लाभ देते हुए बरी कर दिया है। निचली अदालत ने इस मामले में आरोपी को 10 साल के कठोर कारावास की सजा सुनाई थी, लेकिन हाई कोर्ट के फैसले ने इस प्रकरण में एक नया मोड़ ला दिया है।

पीड़िता थी बालिग और शासकीय अधिकारी: कोर्ट का तर्क

हाई कोर्ट (बिलासपुर हाई कोर्ट) के न्यायमूर्ति संजय के. अग्रवाल की एकलपीठ ने अपने महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि पीड़िता न केवल बालिग और विवाहित थी, बल्कि वह एक शासकीय अधिकारी के रूप में कार्यरत थी। कोर्ट ने माना कि पीड़िता अपने भले-बुरे का निर्णय स्वयं लेने में सक्षम थी। ऐसी परिस्थितियों में, यह नहीं माना जा सकता कि आरोपी ने उसके साथ जबरन शारीरिक संबंध बनाए या विवाह का झूठा वादा कर उसे धोखा दिया। यह फैसला उन मामलों में एक महत्वपूर्ण मिसाल बन सकता है, जहाँ सहमति से बने संबंधों को बाद में ‘झूठे वादे पर दुष्कर्म’ के रूप में प्रस्तुत किया जाता है।

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पूरा मामला: प्रेम संबंध से गर्भपात तक

यह पूरा मामला जांजगीर-चांपा जिले से जुड़ा है। आरोपी अरविंद श्रीवास पर वर्ष 2017 में पीड़िता के साथ विवाह का वादा कर लगातार दुष्कर्म करने का आरोप लगा था। आरोप था कि इस संबंध के कारण पीड़िता गर्भवती हो गई और 27 दिसंबर 2017 को उसका गर्भपात कराया गया। इसके बाद, 1 फरवरी 2018 को पीड़िता ने इस संबंध में एफआईआर दर्ज कराई। अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश, जांजगीर की अदालत ने अरविंद को आईपीसी की धारा 376(2)(एन) के तहत दोषी मानते हुए 10 वर्ष के कठोर कारावास और ₹50,000 के जुर्माने की सजा सुनाई थी, जिसके खिलाफ आरोपी ने हाई कोर्ट में अपील की थी।

हाई कोर्ट ने इन तथ्यों पर दिया जोर

  • पीड़िता की परिपक्वता: हाई कोर्ट ने गौर किया कि घटना के समय पीड़िता की उम्र 29 वर्ष थी। वह शिक्षित थी और राज्य सरकार के कृषि विभाग में कृषि विस्तार अधिकारी के पद पर कार्यरत थी, जो उसकी समझदारी और निर्णय लेने की क्षमता को दर्शाता है।
  • वैधानिक विवाह की स्थिति: पीड़िता पहले से विवाहित थी और उसका तलाक नहीं हुआ था। इसका अर्थ है कि वह वैधानिक रूप से विवाह योग्य नहीं थी, जिससे शादी का वादा करना ही अपने आप में एक जटिल मुद्दा बन जाता है।
  • आपसी सहमति के संबंध: आरोपी और पीड़िता का सगाई समारोह 28 जून 2017 को हुआ था, और कोर्ट ने पाया कि उनके बीच आपसी सहमति से संबंध बने थे।
  • गर्भपात में सहमति: गर्भपात की अनुमति भी पीड़िता ने स्वयं लिखित रूप में दी थी, जिसमें आरोपी को उसका पति दर्शाया गया था। यह तथ्य भी सहमति के संबंध की ओर इशारा करता है।
  • एफआईआर में देरी और कारण: एफआईआर घटना के लगभग एक महीने बाद दर्ज की गई थी, और पीड़िता द्वारा इसकी कोई ठोस वजह नहीं बताई गई।
  • पीड़िता और पिता के बयान: पीड़िता ने कोर्ट में कहा कि यदि उसका विवाह आरोपी से हो जाता, तो वह पुलिस में रिपोर्ट नहीं करती। इसके साथ ही, पीड़िता के पिता ने भी स्वीकार किया कि उन्होंने सगाई में खर्च की रकम नहीं लौटाए जाने के कारण रिपोर्ट की थी। यह तथ्य भी मामले की प्रकृति पर संदेह पैदा करता है।
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सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का हवाला

हाई कोर्ट ने अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट के नाइम अहमद बनाम दिल्ली राज्य और अन्य मामलों का भी हवाला दिया। इन फैसलों में यह स्पष्ट किया गया था कि एक बालिग और विवाहित महिला, जो वर्षों तक सहमति से संबंध रखती है, बाद में झूठे वादे के आधार पर दुष्कर्म का दावा नहीं कर सकती।

यह फैसला भारत में दुष्कर्म कानूनों, विशेषकर शादी के झूठे वादे के मामलों की व्याख्या और आवेदन में एक महत्वपूर्ण बेंचमार्क स्थापित करता है। यह ऐसे मामलों में ‘सहमति’ की अवधारणा और पीड़िता की परिपक्वता के महत्व पर प्रकाश डालता है।

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