तनवीर जाफ़री
हमारे देश में राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री से लेकर राज्यपाल तक के शीर्ष पदों पर एक दो नहीं बल्कि ऐसे अनेक लोग पदासीन हुये हैं जो औपचारिक शिक्षा के लिहाज़ से या तो अशिक्षित थे या अपने पद की गरिमा के अनुसार बहुत कम पढ़े लिखे थे। इनमें दिवंगत राजनेताओं की एक लम्बी सूची है जिनकी चर्चा करनी यहां मुनासिब नहीं। परन्तु सक्रिय राजनीति में अभी भी कई नेता हैं जो औपचारिक शिक्षा के नाम पर लगभग अशिक्षित ही हैं। जैसे मध्यप्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री व केंद्रीय मंत्री रहीं उमा भारती, मेनका गांधी, बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव आदि।
तेजस्वी की माता, बिहार की पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी के पास तो किसी भी तरह की औपचारिक शिक्षा नहीं है। राबड़ी देवी ने अपने पैतृक गांव के एक सरकारी स्कूल से पढ़ाई कीऔर 5वीं कक्षा के बाद उन्होंने स्कूल छोड़ दिया था। 1998 -2005 के दौरान मुख्यमंत्री रहते हुये उन पर कार्यालय न जाने और विधानसभा में सवालों का जवाब न देने का आरोप भी लगता रहा। और भी कई राजनेता हैं जो अशिक्षित होने के बावजूद सत्ता के महत्वपूर्ण पदों पर अपनी ज़िम्मेदारियाँ निभा रहे हैं। यहाँ तक कि अशिक्षित होकर भी शिक्षा मंत्री तक बने बैठे हैं। राष्ट्रपति से लेकर प्रधानमंत्री स्तर तक के राजनेताओं की औपचारिक शिक्षा को लेकर देश में पहले भी चर्चा होती रही है। जब हमारा संविधान ही दुर्भाग्य या सौभाग्यवश अशिक्षित लोगों को भी बड़े से बड़े संवैधानिक पद पर सुशोभित होने की इजाज़त देता हो फिर आख़िर इस व्यवस्था से स्वीकार करने के सिवा चारा ही क्या है?
परन्तु वर्तमान दौर में राजनेताओं की शिक्षा के नाम पर जो नए नए विवाद सामने आ रहे हैं वह नेताओं की औपचारिक शिक्षा या अशिक्षित होने के नहीं बल्कि उनकी डिग्रियों की वास्तविकता व प्रमाणिकता से जुड़े हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तथा उनकी मंत्रिमंडलीय सहयोगी स्मृति ईरानी दोनों ही इसी विवाद के शिकार हैं।
प्रधानमंत्री का डिग्री विवाद तो इतना सिर चढ़ कर बोल रहा है कि दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल जैसे नेता तो इस विषय को दिल्ली विधान सभा से लेकर जनसभाओं तक में कहते फिर रहे हैं कि -देश के अब तक के सबसे अनपढ़ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हैं। इससे पूर्व 2015-16 के दौरान भी केजरीवाल ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की शैक्षिक डिग्रियों पर सवाल उठाये थे। उसी दौरान मई 2016 में मोदी की शैक्षिक डिग्रियों पर देश भर में चल रहे बवाल के बीच भाजपा के तत्कालीन अध्यक्ष अमित शाह और तत्कालीन केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली ने संयुक्त रूप से मोदी की डिग्रियों को सार्वजनिक कर इस मसले पर हो रहे विवाद को विराम देने का प्रयास किया था। उस समय अमित शाह व जेटली ने पीएम मोदी की बीए और एमए की डिग्री को सार्वजनिक करते हुये यह बताया था कि पीएम मोदी ने दिल्ली विश्वविद्यालय से बीए (स्नातक ) और गुजरात विश्वविद्यालय से एमए (स्नातकोत्तर ) की डिग्री हासिल की है। इन नेताओं ने उस समय दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल पर हमला बोलते हुए कहा था कि केजरीवाल ने बिना सबूत और तथ्यों के पीएम का डिग्री विवाद खड़ा कर देश के पीएम को बदनाम करने का प्रयास किया है। केजरीवाल ने देश की राजनीति का स्तर गिराया है। उन्होंने केजरीवाल से देश से माफी मांगने को भी कहा था । दूसरी तरफ़ आम आदमी पार्टी ने पीएम की कथित असली डिग्रियों को फ़र्ज़ी बताते हुये कहा था कि भाजपा ने पीएम की जो डिग्री सार्वजनिक की है यह वही फ़र्ज़ी डिग्री है।
दरअसल अमित शाह और तत्कालीन केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली द्वारा प्रधानमंत्री मोदी की डिग्रियों को सार्वजनिक करने के बाद ही यह मामला और भी विवादित व पेचीदा होता गया। अब इसी सन्दर्भ में मोदी द्वारा भाजपा महासचिव के रूप में 2001 में पत्रकार राजीव शुक्ल को उनके उस समय के चर्चित शो रूबरू में दिया गया साक्षात्कार भी क़ाबिल-ए-ज़िक्र है। इसमें मोदी स्वयं कहते हैं कि- पहली बात तो मैं कोई पढ़ा लिखा व्यक्ति नहीं हूँ। लेकिन परमात्मा की कृपा है कि मुझे नई नई चीज़ें जानने का बड़ा शौक़ रहा है। राजीव ने प्रश्न किया – कितना पढ़े हैं आप ? इसपर मोदी का जवाब था -वैसे तो मैंने 17 साल की आयु में घर छोड़ दिया,स्कूली शिक्षा के बाद मैं निकल गया,तब से लेकर आज तक मैं भटक रहा हूँ ,नई चीज़ें पाने के लिए। राजीव शुक्ल ने पुनः अपना प्रश्न दोहराया – सिर्फ़ स्कूल तक पढ़े हैं ,प्राइमरी स्कूल तक ? इस पर मोदी ने जवाब दिया – हाई स्कूल तक। बाद में उन्होंने यह भी जोड़ा कि- मेरे संघ के एक अधिकारी थे उनके बड़े आग्रह पर मैं एक्सटर्नल एग्ज़ाम देना शुरू किया ,तो दिल्ली यूनिवर्सिटी से मैंने बी ए कर लिया,एक्सटर्नल एग्ज़ाम दे कर के ,फिर उनका आग्रह रहा तो मैंने एम ए कर लिया एक्सटर्नल एग्ज़ाम दे के, मैंने कभी कॉलेज का दरवाज़ा देखा नहीं।
मोदी की ओर से प्रदर्शित की गयी एम ए की डिग्री में ही संदेह के तीन अलग अलग पहलू बताये जा रहे हैं। एक तो यह कि इसमें ऊपर की ओर Gujrat University लिखा है इसमें university की स्पेलिंग ग़लत छपी है। दूसरा एतराज़ अंग्रेज़ी के फ़ॉन्ट को लेकर जताया जा रहा है कि डिग्री में प्रयुक्त अंग्रेज़ी फ़ॉन्ट उस समय प्रचलन में थे ही नहीं। और तीसरा और सबसे बड़ा सवाल एंटायर पॉलिटिकल साइंस विषय को लेकर उठाया जा रहा है।
शिक्षा के जानकार कहते हैं कि एंटायर पॉलिटिकल साइंस विषय न तो उस समय था न ही अब है। गुजरात विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफ़ेसर जयंती पटेल ने उस समय एक फेसबुक पोस्ट में भी यह दावा किया था कि नरेंद्र मोदी की डिग्री में जिस पेपर का उल्लेख किया गया है, उस समय एमए के दूसरे साल में ऐसा कोई पेपर था ही नहीं । एक और मज़ेदार बात यह भी है कि अभी तक नरेंद्र मोदी के बी ए या एम ए के किसी भी बैच मेट ने भी सामने आकर यह नहीं कहा कि वे मेरे बैच मेट हैं। न ही उन्हें पढ़ाने वाला कोई प्रोफ़ेसर सामने आया। हाँ,1978 के स्नातक बैच के दिल्ली के कई ऐसे छात्र ज़रूर सामने आये जिनका कहना है कि उनके समय में नरेंद्र दामोदरदास मोदी नाम का कोई छात्र था ही नहीं। इतना ही नहीं बल्कि नरेंद्र मोदी: द आर्किटेक्ट ऑफ ए मॉडर्न स्टेट नामक किताब में भी यह बताया गया है कि -जब ग्रेजुएट ना होने के कारण उन्हें रामकृष्ण मिशन में एंट्री नहीं मिली,तो वे हिमालय चले गए थे।
दरअसल अनपढ़ होना कोई बुराई नहीं है। हमारे अधिकांश महापुरुष अनपढ़ ही थे उनके पास औपचारिक शिक्षायें नहीं होती थीं वे डिग्री या डिप्लोमाधारी नहीं थे। फिर भी हम ही विश्व गुरु कल भी थे और आज फिर विश्व गुरु होने के अंतिम पायदान पर बैठे हैं। इसलिये आज भी यदि हमारे देश का कोई राजनेता अशिक्षित या अनपढ़ है तो कोई चिंता की बात नहीं परन्तु यदि अनपढ़ होने के बावजूद स्वयं को बी ए या एम ए तक शिक्षित बताने की कोशिश की जाये और अपने समर्थन में जो दस्तावेज़ पेश किये जायें वे भी संदेह पैदा करने वाले हों ऐसे में इस तरह के विवादों का तूल पकड़ना तो स्वाभाविक ही है।