नई दिल्ली: दिल्ली विधानसभा चुनाव के लिए ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) के उम्मीदवार ताहिर हुसैन को सुप्रीम कोर्ट से राहत नहीं मिली है। ताहिर हुसैन ने चुनाव प्रचार करने के लिए अंतरिम जमानत की मांग की थी, लेकिन शीर्ष अदालत ने उनकी यह मांग खारिज कर दी। यह मामला बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस पंकज मिथल और जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की पीठ के सामने था, जिन्होंने ताहिर हुसैन की अंतरिम जमानत याचिका को खारिज कर दिया।
अंतरिम जमानत की मांग को खारिज करते हुए क्या कहा सुप्रीम कोर्ट ने?
सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि ताहिर हुसैन भारतीय नागरिक हैं और एक नागरिक के रूप में उनके अधिकारों का सम्मान किया जाना चाहिए, लेकिन मामले की गंभीरता को देखते हुए उनकी अंतरिम जमानत को मंजूरी नहीं दी जा सकती। अदालत ने कहा कि ताहिर हुसैन के खिलाफ जो आरोप हैं, वे बेहद गंभीर प्रकृति के हैं, और इसमें कई महत्वपूर्ण गवाहों से पूछताछ की जानी बाकी है।
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि ताहिर हुसैन का नाम फरवरी 2020 के दिल्ली दंगों से संबंधित मामलों में शामिल है, और इनमें से कई मामलों में उन्हें जमानत मिल चुकी है, लेकिन वर्तमान मामला न केवल दंगों से संबंधित है, बल्कि इसमें भारत सरकार के खुफिया अधिकारी अंकित शर्मा की हत्या से भी संबंध है।
चुनाव प्रचार का अधिकार मौलिक अधिकार नहीं: सुप्रीम कोर्ट
कोर्ट ने स्पष्ट किया कि चुनाव प्रचार का अधिकार मौलिक अधिकार नहीं है, और यह अदालत के विवेक पर निर्भर करता है कि याचिकाकर्ता को उपरोक्त उद्देश्य के लिए रिहा किया जाए या नहीं। अदालत ने यह भी कहा कि यदि अंतरिम जमानत को चुनाव लड़ने के अधिकार के आधार पर मंजूरी दी जाती है, तो इससे एक भ्रम की स्थिति उत्पन्न होगी।
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि चुनाव प्रचार के लिए अंतरिम जमानत की अनुमति देने से अन्य कैदी भी चुनाव लड़ने की मांग करने लगेंगे, जिससे मुकदमेबाजी की बाढ़ आ जाएगी। इस पर कोर्ट ने कड़ा रुख अपनाया और कहा कि ऐसे मामलों की अनुमति नहीं दी जा सकती।
गवाहों के प्रभावित होने की आशंका
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी माना कि यदि ताहिर हुसैन को चुनाव प्रचार की अनुमति दी जाती है, तो इससे गवाहों के प्रभावित होने की प्रबल संभावना है। कोर्ट ने कहा कि ताहिर हुसैन को इलाके में घूमने, बैठकों का आयोजन करने और मतदाताओं से घर-घर जाकर मिलकर प्रचार करने की अनुमति देने से गवाहों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। इसके अलावा, आरोप पत्र में यह भी उल्लेख है कि ताहिर हुसैन के घर को अपराध के केंद्र के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा था, जिससे मामले की गंभीरता और बढ़ जाती है।
हाई कोर्ट का आदेश और ताहिर हुसैन की याचिका
इससे पहले, दिल्ली हाई कोर्ट ने ताहिर हुसैन को अंतरिम जमानत देने से इनकार कर दिया था। हाई कोर्ट का कहना था कि चुनाव प्रचार किसी मौलिक अधिकार से संबंधित नहीं है, और न ही यह किसी अन्य विशेष अधिकार से जुड़ा हुआ मामला है। हाई कोर्ट ने यह भी कहा था कि ताहिर हुसैन की जमानत याचिका का मामला नियमित जमानत के तौर पर विचार किया जाएगा, जिसे अदालत में लंबित रखा गया था।
क्या है मामला?
ताहिर हुसैन पर आरोप हैं कि उन्होंने दिल्ली दंगों में अहम भूमिका निभाई थी और उनके खिलाफ कई गंभीर मामले दर्ज हैं, जिनमें हत्या, दंगे और हिंसा के आरोप शामिल हैं। वह दिल्ली विधानसभा चुनाव में AIMIM पार्टी से उम्मीदवार हैं, और चुनाव प्रचार के लिए उन्हें अंतरिम जमानत की आवश्यकता थी। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने उनकी अंतरिम जमानत की याचिका खारिज कर दी, और इस मामले में अगले कदम के लिए उच्च न्यायालय का रुख करने का सुझाव दिया।
सुप्रीम कोर्ट के आदेश से ताहिर हुसैन को झटका
सुप्रीम कोर्ट का यह आदेश ताहिर हुसैन के लिए एक बड़ा झटका है, क्योंकि अब उन्हें चुनाव प्रचार के लिए हिरासत से बाहर आने की अनुमति नहीं मिलेगी। इससे पहले हाई कोर्ट ने भी चुनाव प्रचार को किसी मूल अधिकार के तौर पर नहीं माना था, और ताहिर हुसैन की अंतरिम जमानत याचिका खारिज कर दी थी। अब ताहिर हुसैन को अपने मामले में नियमित जमानत की उम्मीद है, लेकिन इसे लेकर अदालत में लंबी सुनवाई बाकी है।