बृज खंडेलवाल
नई दिल्ली: पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के मुखर समर्थन ने बांग्लादेश में हिंदुओं के लिए आशा की किरण दिखाई है, लेकिन यह भी चिंता का विषय बन गया है। बांग्लादेश के राजनीतिक परिदृश्य में उथल-पुथल और कट्टरपंथी तत्वों की बढ़ती गतिविधियों को लेकर आशंकाएं गहराई से बढ़ रही हैं।
दक्षिण एशिया की तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में से एक, बांग्लादेश वर्तमान में अनिश्चितता और सत्ता संघर्ष की एक महत्वपूर्ण स्थिति में है। यहां इस्लामी वामपंथियों, छात्र नेताओं, सैन्य अभिजात वर्ग और जमात-ए-इस्लामी के सदस्य एक असहज गठबंधन में शासन कर रहे हैं।
मौजूदा शासन का सवाल यह है कि क्या यह लोकतांत्रिक चुनावों का मार्ग प्रशस्त करेगा, या स्थिति और अधिक बिगड़ने पर सेना हस्तक्षेप करेगी। खासकर शेख हसीना की वापसी या प्रत्यर्पण, जो गिरफ्तारी की धमकियों के चलते भारत भाग गई थीं, एक महत्वपूर्ण मुद्दा बनकर उभरा है।
भारत, जो अवैध अप्रवास, सीमा तनाव और अल्पसंख्यकों पर अत्याचार जैसी समस्याओं से जूझ रहा है, बांग्लादेश की स्थिति पर गहरी नज़र रखे हुए है। मोदी सरकार के संभावित हस्तक्षेप की संभावना भी बनी हुई है, और ट्रंप की संभावित जीत बांग्लादेश में कट्टरपंथियों के लिए गंभीर चुनौती पेश कर सकती है।
ट्रंप के समर्थन से बांग्लादेश में हिंदू अल्पसंख्यकों के लिए बेहतर स्थिति बन सकती है, लेकिन इससे कट्टरपंथियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की भी संभावना बढ़ सकती है। हाल के दिनों में शेख हसीना की सत्ता से बेदखली के बाद से स्थिति में उतार-चढ़ाव जारी है, जिससे देश एक बार फिर अपने अशांत अतीत की ओर लौट सकता है।
क्या बांग्लादेश इस राजनीतिक उथल-पुथल से उबरकर स्थिरता की ओर बढ़ेगा, या यह अराजकता में ही फंसकर रह जाएगा, यह समय ही बताएगा। बांग्लादेश में बढ़ते कट्टरवाद और शासन के खिलाफ छात्रों के आंदोलन ने स्थिति को और भी जटिल बना दिया है, जो भविष्य में स्थिरता की संभावनाओं पर प्रश्न चिह्न लगाता है।