बृज खंडेलवाल
बेंगलुरु के चमकते एयरपोर्ट की रोशनी में, एक अभूतपूर्व विमानन संकट ने देश के पूरे एयरलाइन तंत्र को घुटनों पर ला दिया है। बीते कुछ दिनों में, दिल्ली, मुंबई, और बेंगलुरु सहित प्रमुख हवाई अड्डों पर इंडिगो (IndiGo) की हजारों उड़ानें रद्द होने और व्यापक देरी के कारण अराजकता का माहौल बन गया है। इस संकट ने न केवल राम भरोसी जैसे आम यात्रियों की शादियाँ और रामस्वामी जैसे परिवारों की छुट्टियाँ बर्बाद की हैं, बल्कि देश की विमानन नीति की गहरी खामियों को भी उजागर कर दिया है।
अराजकता का दृश्य
6 दिसंबर, 2025 को, देश के सबसे व्यस्त एयरपोर्ट यात्री शिविरों में तब्दील हो गए। एयरपोर्ट टर्मिनलों में बेबस यात्रियों की भीड़ है, जिनके टिकट काउंटर पर ‘कैंसिल्ड’ और ‘डिलेड’ के लाल अक्षर उनकी परेशानी बढ़ा रहे हैं। लोग रातभर जागने के लिए मजबूर हैं, बच्चे दूध के लिए रो रहे हैं, और एयरलाइन काउंटरों पर यात्रियों की निराशा साफ दिखती है। कई यात्री अपनी अंतर्राष्ट्रीय उड़ानें मिस कर चुके हैं, और दिल्ली-चेन्नई (₹68 हज़ार) तथा दिल्ली-मुंबई (₹40 हज़ार) जैसे मार्गों पर टिकट की कीमतें चार गुना तक बढ़ गई हैं, जिसे लेखक ने “खुलेआम संकट-लूट” करार दिया है।
सिस्टम की विफलता
इस संकट को महज़ ‘तकनीकी दिक्कत’ मानने को तैयार नहीं हैं। उनके अनुसार, यह समस्या सालों से पनपती लापरवाही का चरम है।
वन-कंपनी नेशन: देश का सबसे बड़ा एयरलाइन, इंडिगो, जब धड़ाम से बैठा, तो पूरा विमानन ढाँचा चरमरा गया। यह इस बात का प्रमाण है कि भारतीय विमानन उद्योग एक कंपनी पर अत्यधिक निर्भर हो चुका है, जो नीति-निर्माण की विफलता है।
नियामक की सुस्ती: नागरिक उड्डयन महानिदेशालय (DGCA) ने 5 दिसंबर को पायलटों के उड़ान समय सीमा (FDTL) नियमों को आंशिक रूप से निलंबित करने का जो कदम उठाया, वह बहुत देर से आया। इंडिगो को मार्च 2024 में हाईकोर्ट के आदेश के बाद नए FDTL नियमों के लिए तैयारी करने हेतु नौ महीने मिले थे, लेकिन न तो एयरलाइन ने अतिरिक्त पायलट रखे और न ही DGCA ने उड़ान संचालन की निगरानी की। दिसंबर की धुंध शुरू होते ही पायलटों की कमी का पर्दाफाश हो गया।
सरकारी उदासीनता: मंत्रालय ने केवल एक औपचारिक जांच कमेटी गठित की और एक एडवाइजरी जारी कर अपनी जिम्मेदारी पूरी कर ली। संकट-लूट पर रोक लगाने के लिए अधिकतम किराया कैप, ट्रेनें चलाने, या अतिरिक्त उड़ानों को मंज़ूरी देने जैसे तत्काल कदम नहीं उठाए गए।
भारत के पास आज भी कोई प्रभावी विमानन आपदा प्रबंधन नीति, किराया नियंत्रण, या जवाबदेही तय करने की पारदर्शी प्रणाली नहीं है। जब तक मंत्रालय और DGCA कॉर्पोरेट एडवाइजरी से बाहर आकर दूरदर्शिता और जवाबदेही नहीं दिखाते, यह संकट बार-बार लौटेगा।
“भारत को अब पायलटों की नहीं, जागे हुए नियामकों की ज़रूरत है।”
