26 अगस्त 2014 को भाजपा द्वारा एक प्रेस रिलीज़ जारी कर जानकारी दी गई की 75 वर्ष से अधिक आयु के अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी और डॉ मुरली मनोहर जोशी को ससम्मान मार्गदर्शक मंडल में शामिल किया जा रहा है। कयास लगाए गए कि इन नेताओं का अब सक्रीय राजनीति से वास्ता ख़त्म हो जायेगा और हुआ भी कुछ ऐसा ही, जब 2019 के लोकसभा चुनाव में लागू मानदंड के अनुसार आडवाणी, जोशी और सुमित्रा महाजन जैसे वरिष्ठ नेताओं को टिकट नहीं मिला। अब जब इस साल सितम्बर में पीएम मोदी 75 वर्ष के होने जा रहे हैं तो मीडिया से लेकर आम जन तक, बीजेपी की अलिखित रिटायरमेंट पॉलिसी भी चर्चा का विषय बन गई है। लेकिन सबसे बड़ा सवाल ये है कि आखिर मोदी का उत्तराधिकारी कौन होगा? क्या ये गद्दी सबसे चर्चित नाम योगी आदित्यनाथ को मिलेगी या केंद्र में अपने काम की सबसे अधिक सराहना बटोरने वाले नीतिन गडकरी को? या परदे के पीछे से पार्टी और संगठन की रक्षा करने वाले राजनाथ सिंह इस गद्दी के हक़दार बनेंगे? खैर ये तो समय बताएगा लेकिन मेरी समझ में ये तीनों ही नाम पीएम मोदी की जगह नहीं ले पाएंगे।
जगह नहीं ले पाने के कई आतंरिक और सामाजिक मुद्दे हो सकते हैं. जैसे यूपी के वर्तमान सीएम योगी आदित्यनाथ की कट्टर हिंदुत्व वाली छवि उन्हें प्रधानसेवक के रूप में विराजमान होने से रोकने का सबसे बड़ा कारण दिखती है। जो न तो संघ के अनुसार है और न ही बीजेपी की राष्ट्रीय छवि के अनुरूप है। वहीं नीतिन गडकरी जो कि योगी आदित्यनाथ के सीनियर भी है, वह भी मोदी-शाह की बीजेपी के लिए सबसे उपयुक्त उम्मीदवार साबित नहीं दिखते हैं, और इसका सबसे बड़ा कारण है उनकी स्वतंत्र शैली। गडकरी संघ के नजदीक जरूर हैं लेकिन भाजपा के वर्तमान नेतृत्व के हिसाब से फिट नहीं बैठते। दूसरी ओर एक चुनावी मशीन बन चुकी भाजपा के लिए अब चुनावी रणनीतियों में सतर्कता वाले व्यक्ति की दरकार है, जिसमें गडकरी कमजोर नजर आते हैं। तीसरा नाम है राजनाथ सिंह का, जो अब 73 वर्ष के हो चुके हैं, और पार्टी की 75 वर्ष की अनौपचारिक ‘रिटायरमेंट पॉलिसी’ उनके पक्ष में नहीं जाती, जिसके तहत मोदी भी रिटायर हो सकते हैं। दूसरा लोकप्रियता और करिश्माई नेतृत्व की कमी, जिसे फिलहाल बीजेपी में सबसे अधिक महत्व दिया जाता है। इसके अतिरिक्त खुद राजनाथ सिंह भी संगठन और प्रशासनिक भूमिका में अधिक सहज महसूस करते हैं।
तो क्या कांग्रेस से आए ज्योतिरादित्य सिंधिया और हिमंत बिस्वा शर्मा देश की सबसे पावरफुल कुर्सी के हकदार होंगे? शायद नहीं, क्योंकि बिस्वा असम और पूर्वोत्तर में तो अपनी पकड़ रखते हैं लेकिन जैसे सिंधिया मध्य प्रदेश के बाहर बहुत अधिक लोकप्रिय नहीं हैं वैसे ही हेमंत भी आगामी कुछ साल पीएम मोदी की लोकप्रियता के आस पास नजर नहीं आते। दूसरा संघ और पार्टी की विचारधारा के साथ दोनों का मेल भले उनके हिसाब से सही बैठता हो, लेकिन केंद्रीय नेतृत्व के हिसाब से दोनों ही नेताओं को अभी अपनी प्रासंगिकता सिद्ध करने में समय लगेगा।
कुल मिलाकर देखें तो यह दोनों नाम और चेहरे भी मोदी के बाद पीएम पद के लिए उपयुक्त सिद्ध नहीं होते हैं। एक और नाम जिसकी पीएम पद पर दावेदारी की चर्चा सियासी दंगलों में देखने को मिल जाती है वो है, वर्तमान वित्त मंत्री एस जयशंकर। पीएम मोदी के करीबी होने के साथ साथ विदेशी व प्रशासनिक मामलों में अच्छी पकड़ व समझ रखने वाले जयशंकर, अपनी वाक्पटुता के लिए भी जाने जाते हैं। हालांकि 2019 में सीधे विदेश मंत्री बना दिए गए 70 वर्षीय जयशंकर के पास न तो उनका कोई जनाधार नहीं है, न ही जमीनी राजनीति का कोई अनुभव। फिर बीजेपी में सीमित प्रभाव और जनता से सीधा जुड़ाव न होना भी, पीएम पद के लिए उनकी दावेदारी को फीका करता है। तो अब सवाल यही है कि उपरोक्त सभी कद्दावर और चर्चित नाम यदि मोदी मैजिक के आगे फेल हैं तो फिर मोदी के बाद कौन?
मेरा अनुमान है कि जिस प्रकार मोदी-शाह के नेतृत्व वाली बीजेपी में राजस्थान, मध्य प्रदेश और अब दिल्ली जैसे राज्यों में नए लेकिन प्रभावशाली नेताओं को कमान सौंपने की रवायत शुरू हुई है, उसे मोदी के साथ भी, मोदी के बाद भी बरकरार रखा जाएगा। कोई ऐसा नाम जो प्रशासनिक कार्यों में भी निपुण हों और सत्ता की कमान संभालने में भी सक्षम हो। जिसका ट्रैक रिकॉर्ड भले कुछ न हो लेकिन रिकॉर्ड ब्रेक करने की ताकत रखता हो। ऐसा इसलिए भी क्योंकि पीएम मोदी ने प्रधानमंत्री के रूप में बीजेपी का जो ब्रांड सेट किया है, पार्टी या संघ उसे बरकरार रखने में ही अपनी भलाई समझेगा।
अतुल मलिकराम (राजनीतिक रणनीतिकार)
Only Yogi Ji to save our culture, hinduism and to make progressive our country.