संभल के चंदौसी क्षेत्र में प्राचीन धरोहरों की एक के बाद एक नई पहचान सामने आ रही है। हाल ही में, इस क्षेत्र के गणेशपुर गांव में स्थित 250 साल पुराना बांके बिहारी मंदिर और उसका भव्य कुंड सुर्खियों में है। मंदिर के आसपास दबे हुए 32 कुएं भी लोगों की चर्चा का विषय बन गए हैं। ग्रामीणों ने अब इस मंदिर और कुंड के पुनर्निर्माण की मांग शुरू कर दी है, ताकि इस धार्मिक स्थल को फिर से उसकी भव्यता और ऐतिहासिक महत्व मिल सके।
ग्रामीणों की अपील: मंदिर और कुंड को पुनर्जीवित किया जाए
चंदौसी तहसील के ग्रामीणों ने हाल ही में जिला प्रशासन को एक शिकायती पत्र सौंपा था, जिसमें उन्होंने बताया कि गणेशपुर गांव में स्थित बांके बिहारी मंदिर खंडहर में तब्दील हो चुका है। साथ ही, मंदिर परिसर में एक भव्य कुंड भी है, जिसमें 32 कुएं दबे हुए हैं। ग्रामीणों का कहना है कि यह स्थल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण था, लेकिन अब यह स्थान उपेक्षा का शिकार हो चुका है। लोगों की मांग है कि प्रशासन इसे पुनर्जीवित करे और इस धार्मिक स्थल को उसका पुराना गौरव लौटाए।
राजस्व विभाग की टीम ने किया स्थल का निरीक्षण
ग्रामीणों की अपील के बाद प्रशासन ने सक्रियता दिखाई और इस मंदिर और कुंड का निरीक्षण करने के लिए राजस्व विभाग की एक टीम मौके पर भेजी। तहसीलदार धीरेंद्र कुमार ने बताया कि यह मंदिर 250 साल पुराना है और इसके नाम पर 125 बीघा जमीन दर्ज है, जिसमें कुछ हिस्सों पर कब्जा कर लिया गया है। मंदिर और कुंड का निर्माण 15 बीघा भूमि पर हुआ था। तहसीलदार ने यह भी बताया कि इन कुओं में कभी पानी भरा रहता था, लेकिन अब इन कुओं को मिट्टी से पाट दिया गया है, जिसके कारण कुंड सूख गया है। उन्होंने आश्वासन दिया कि जल्द ही इस जमीन को अतिक्रमण मुक्त कराया जाएगा और मंदिर और कुंड के जीर्णोद्धार का काम शुरू किया जाएगा।
32 कुएं: ऐतिहासिक महत्व और मान्यता
ग्रामीणों का मानना है कि इस कुंड के नीचे दबे 32 कुएं बहुत ही महत्वपूर्ण थे। यहां लोग स्नान करने और पानी पीने के लिए आते थे। पुराने समय में इस कुंड में स्नान करने से चर्म रोगों का नाश होता था और लोगों की मनोकामनाएं पूरी होती थीं। जन्म अष्टमी के मौके पर यहां विशाल मेले का आयोजन भी किया जाता था। अब ग्रामीणों की मांग है कि इस कुंड और मंदिर को फिर से पहले जैसा भव्य और धार्मिक रूप में स्थापित किया जाए, ताकि श्रद्धालु फिर से यहां आकर पूजा-अर्चना कर सकें और इस स्थल का ऐतिहासिक महत्व कायम रहे।
ASI को दी गई सूचना, जल्द शुरू होगा संरक्षण कार्य
तहसीलदार ने यह भी बताया कि उन्होंने इस मामले की जानकारी भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) को दे दी है। ASI की टीम जल्द ही इस स्थल का निरीक्षण करेगी और इसकी ऐतिहासिक धरोहर को संरक्षित करने के उपायों पर विचार करेगी। इसके साथ ही, मंदिर और कुंड के जीर्णोद्धार के लिए प्रशासन ने कदम उठाने का निर्णय लिया है।
चंदौसी क्षेत्र में खुदाई का कार्य भी हुआ रोक
चंदौसी के एक और ऐतिहासिक स्थल, राजा आत्माराम द्वारा बनवाए गए प्राचीन बावड़ी की खुदाई का काम भी चल रहा था, लेकिन ASI के अधिकारियों ने इसे रोक दिया है। ASI के अधिकारी राजेश कुमार मीणा के अनुसार, बावड़ी की दीवारें काफी कमजोर हो चुकी हैं और कभी भी गिर सकती हैं या फिर धंस सकती हैं। इस कारण खुदाई का काम अस्थायी रूप से रोक दिया गया है। बावड़ी की खुदाई में अब तक कई नई धरोहरें सामने आई हैं, जिससे क्षेत्र के ऐतिहासिक महत्व को फिर से उजागर किया जा रहा है।
राजा आत्माराम का योगदान
संभल में स्थित यह बावड़ी 1720 में राजा आत्माराम द्वारा बनवायी गई थी, जो अब तक गुमनाम थी। बावड़ी पर अतिक्रमण कर लिया गया था और ऊपर मलबे का ढेर जमा हो गया था। अब खुदाई के दौरान नई धरोहरों के मिलने से इस प्राचीन स्थल के महत्व को फिर से समझा जा रहा है।