इस मामले के अनुसार, वादी मुकदमा गजेंद्र सिंह ने आरोप लगाया था कि आरोपी कांति पचौरी ने 20 अक्टूबर 2019 को उनसे 3 लाख 20 हजार रुपये उधार लिए थे और वादा किया था कि वह दो माह के भीतर यह राशि वापस कर देंगे। समय सीमा पूरी होने के बाद जब वादी ने अपनी राशि की मांग की, तो आरोपी द्वारा दिया गया चैक बैंक में प्रस्तुत करने पर डिसऑनर हो गया।
वादी ने इसके बाद कोर्ट में मुकदमा दर्ज कराया, जिसमें आरोपी के खिलाफ चैक डिसऑनर का मामला चला।
आरोपी का पक्ष
इस मामले में आरोपी कांति पचौरी ने अपने अधिवक्ताओं अशोक कुमार मंगल और दीक्षा पाठक के माध्यम से अदालत में अपना पक्ष प्रस्तुत किया। उन्होंने बताया कि उन्होंने वादी से अपनी मां के इलाज के लिए उधार लिया था और चैक को बतौर अमानत दिया था। साथ ही, आरोपी ने वादी को पूरी राशि चुका दी थी, लेकिन वादी ने चैक वापस नहीं किया और उसके बाद ही मुकदमा दर्ज कर दिया।
कोर्ट का फैसला
अदालत ने इस मामले में वादी को कई अवसर दिए, लेकिन वादी कोर्ट में हाजिर नहीं हुआ और अपनी बात नहीं रख सका। इसके बाद कोर्ट ने आरोपी के पक्ष में निर्णय देते हुए उसे बरी कर दिया। विशेष न्यायालय के पीठासीन अधिकारी सतेंद्र सिंह वीर ने इस फैसले पर आदेश देते हुए कहा कि आरोपित के खिलाफ पर्याप्त साक्ष्य का अभाव था, जिसके चलते उसे आरोपों से मुक्त कर दिया गया।