आगरा की विरासत: ‘न फ़क्र है, न जुड़ाव’ – कैसे बचेगी हमारी सांस्कृतिक धरोहर?

Dharmender Singh Malik
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आगरा की विरासत: 'न फ़क्र है, न जुड़ाव' - कैसे बचेगी हमारी सांस्कृतिक धरोहर?

आगरा: वर्ल्ड हेरिटेज डे (विश्व विरासत दिवस) के अवसर पर आज हम एक जरूरी सवाल का सामना कर रहे हैं, कि आखिर आगरा की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक विरासत की रक्षा कैसे की जाएगी? शहर की प्रतिष्ठित धरोहरें, जैसे ताजमहल, आगरा किला और फतेहपुर सीकरी, क्या इनकी अद्भुतता और ऐतिहासिक महत्व को आने वाली पीढ़ियों तक पहुंचाने के लिए हम वाकई गंभीर हैं?

आगरा के लोग विरासत को विलेन मानते हैं!

आगरा का नाम सुनते ही ताजमहल, मुगलों की धरोहर, और अद्भुत वास्तुकला की छवि आंखों के सामने आ जाती है। लेकिन शहर के भीतर एक कड़वी सच्चाई यह है कि यहां के नागरिकों ने अपनी विरासत से खुद को बहुत हद तक अलग कर लिया है। आगरा की सांस्कृतिक धरोहर को लेकर जागरूकता की कमी, लोगों का इसके प्रति उदासीन रवैया और सरकारी नीतियों की उपेक्षा ने इसे अब एक बड़ी समस्या बना दिया है।

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विरासत के संरक्षण में उदासीनता

आगरा, जहां पर ताजमहल और ऐतिहासिक स्मारकों का खजाना है, वह खुद अब अपनी धरोहरों से बेखबर हो गया है। यमुना नदी जो कभी इतिहास की जीवन रेखा थी, अब प्रदूषण के कारण संकट का सामना कर रही है। इसी बीच डॉ. देवाशीष भट्टाचार्य जैसे कुछ जागरूक लोग इस संकट के बारे में बात कर रहे हैं और विरासत के संरक्षकों से अपील कर रहे हैं कि वे अपनी जिम्मेदारी समझें और इस अद्भुत धरोहर को बचाने के लिए कदम उठाएं।

किसी ने सोचा कि ताज महल की समृद्धि को बनाए रखने के लिए लोग जागरूक हों?

विश्व विरासत दिवस पर ताजमहल जैसे स्मारकों की अहमियत को तो पूरा विश्व मानता है, लेकिन आगरा में रहने वाले लोग खुद को इस गौरवशाली अतीत से जोड़ने में असफल होते जा रहे हैं। यह काफी हद तक इसलिए है क्योंकि यहां के लोग अब इन स्मारकों को केवल एक पर्यटक स्थल के रूप में ही देख रहे हैं, न कि अपनी सांस्कृतिक धरोहर के रूप में।

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आगरा में स्थानीय लोग ताजमहल और अन्य ऐतिहासिक स्मारकों को प्रदूषण और प्रदूषण के कारण आर्थिक गतिविधियों के लिए एक बाधा मानते हैं। 1996 में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद कई उद्योगों को बंद करने के कारण ये मुद्दे और भी गंभीर हो गए हैं। यह सोच कि आर्थिक प्रगति और रोजगार के अवसर विरासत के संरक्षण में आड़े आते हैं, आगरा की संस्कृति के साथ खिलवाड़ कर रही है।

जागरूकता की आवश्यकता

सांस्कृतिक धरोहर संरक्षण के क्षेत्र में डॉ. मुकुल पंड्या जैसे विशेषज्ञ यह मानते हैं कि आगरा के नागरिकों में अब अतीत से जुड़ाव की कमी हो रही है। आजकल के आर्थिक दबाव, पर्यटन की बढ़ती संख्या और पर्यावरणीय संकट के कारण लोग अपने इतिहास और धरोहर से कटते जा रहे हैं। उन्होंने कहा, “यह जरूरी है कि हम अपनी सांस्कृतिक विरासत को पहचानें, उसकी अहमियत समझें और इसे संरक्षित करने के लिए प्रयास करें।”

विरासत को बचाने की दिशा में कदम उठाना जरूरी है

आगरा और इसके निवासियों के लिए यह समय है कि वे अपनी विरासत के प्रति जागरूकता बढ़ाएं और इसके संरक्षण के लिए हर संभव प्रयास करें। जब पूरी दुनिया अपनी सांस्कृतिक धरोहरों को सम्मानित कर रही है, तब आगरा को भी अपनी विरासत को संजोने की आवश्यकता है।

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समय आ चुका है कि हम अपनी संस्कृति के प्रति गौरव की भावना पैदा करें और अपनी आगामी पीढ़ियों के लिए यह अमूल्य धरोहर बचाएं। जैसा कि डॉ. देवाशीष भट्टाचार्य ने कहा, “यह विरासत हमारी पहचान है, यह हमारे इतिहास और संस्कृति की गवाही देती है।”

विरासत के संरक्षण में ही हमारे समाज की ताकत और पहचान निहित है। हम जब तक अपने अतीत से जुड़कर उसे नहीं समझेंगे, तब तक हमारा समाज न तो स्थिर रह सकता है और न ही आगे बढ़ सकता है। इस कारण हम सभी को अपनी सांस्कृतिक धरोहर के महत्व को समझते हुए इसे बचाने के लिए एकजुट होना होगा।

बृज खंडेलवाल

 

 

 

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Editor in Chief of Agra Bharat Hindi Dainik Newspaper
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