बिहार सरकार ने हाल ही में घोषणा की है कि वह राज्य में जाति आधारित जनगणना करवाएगी। यह जनगणना राज्य की राजनीति पर महत्वपूर्ण प्रभाव डालने के लिए बाध्य है और राष्ट्रीय राजनीति पर भी इसके निहितार्थ हो सकते हैं।
बिहार में जाति आधारित जनगणना की मांग कई दशकों से उठाई जा रही है। इस मांग का मुख्य आधार यह है कि जाति का राज्य की सामाजिक और आर्थिक संरचना में एक निर्णायक स्थान है। जाति के आधार पर किए गए सर्वेक्षणों से पता चला है कि पिछड़े वर्ग और अनुसूचित जाति और जनजाति की आबादी राज्य की कुल आबादी का 80 प्रतिशत से अधिक है। हालांकि, इन वर्गों की राज्य की अर्थव्यवस्था और राजनीति में भागीदारी उनके अनुपात से काफी कम है।
बिहार सरकार को उम्मीद है कि जाति आधारित जनगणना से राज्य की विभिन्न जातियों की आबादी का सटीक आंकड़ा प्राप्त होगा। इससे सरकार को राज्य के पिछड़े वर्गों और अनुसूचित जाति और जनजाति के लोगों के लिए प्रभावी नीतियां बनाने में मदद मिलेगी।
जानकारों का मानना है कि बिहार में जाति आधारित जनगणना का राज्य की राजनीति पर भी महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ेगा। इस जनगणना से विभिन्न जातियों की आबादी का सटीक आंकड़ा प्राप्त होने से राजनीतिक दलों को अपनी चुनावी रणनीतियों को तय करने में मदद मिलेगी। साथ ही, इससे विभिन्न जातियों के बीच राजनीतिक भागीदारी को भी बढ़ावा मिलने की संभावना है।
बिहार में जाति आधारित जनगणना के राष्ट्रीय राजनीति पर भी निहितार्थ हो सकते हैं। यह जनगणना अन्य राज्यों में भी जाति आधारित जनगणना की मांग को तेज कर सकती है। इसके अलावा, इससे केंद्र सरकार पर पिछड़े वर्गों और अनुसूचित जाति और जनजाति के लोगों के लिए अधिक प्रभावी नीतियां बनाने का दबाव बढ़ सकता है।