बदहाल प्रेस क्लब के चमाचम पदाधिकारी!

Aditya Acharya
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आगरा। चुनाव जीतने के लिए तमाम वादे हुए और वह झूठे वादे कर वह चुनाव जीतकर नई कार्यकारणी में पहुंच गए। सभी पदाधिकारी खूब यश और सम्मान पा रहे हैं। फेसबुक और सोशल मीडिया पर खूब सुर्खियां बटोर रहे हैं। बैठक या सम्मान पाने के दौरान खुद को चमाचम होकर जाते हैं। प्रेस क्लब के ग्रुप में उनकी जमकर छिछा लेथन हो रही है। कई सीनियर पत्रकार  कहकर थक गए हैं और खुद को कुछ समय के लिए चुप रहने का वचन लेकर शांत हो चुके हैं।  चुनाव से नाम वापसी लेने वालों के रुपए वापस नहीं हुए हैं। कई लोग पिछले 12 साल का हिसाब भी मांग रहे हैं। वहीं क्लब में आज भी पुराने पेर्टन पर काम हो रहा है।
ये हैं मुख्य पदाधिकारियों के किरदार
बड़े पदों में एक पदाधिकारी कई मठाधीशों के वोट के कर्ज के नीचे दबे हुए हैं। वह अन्याय देखकर भी भीष्म पीताहमाह की तरह मौन हैं। हालांकि उनपर कोई प्लानिग नहीं हैं। वह किसी चमत्कार का इंतजार कर रहे हैं। जो आज के दौर में हो पाना मुश्किल है।
एक साहब तो पत्रिकारिता का  क, ख, ग भी नहीं जानते। वह सभी के विरोध के बाद भी जीतकर पहुंच गये। वह किसी की सुनता भी नहीं और करता अपने मन की है। इन साहब का दिमाग रिमोट की किरण पकड़कर चलता है।
वहीं एक साहब तो इतने स्मार्ट हैं कि वो नाक पर मक्खी नहीं बैठने देते। वह खुद को सबसे सुपर बनकर दिखाते हैं। वैसे सभी को उनसे उम्मीद है कि वह लंबे समय से अखबार में जमे हैं। कई पार्टियां उनकी पकड़ में हैं, लेकिन वो साहब क्लब के उद्धार में अपनी रसूख का इस्तेमाल नहीं करना चाहते। वह पानी पर मलाई जमाना चाहते हैं।
एक साहब का तो काम ऐसा है कि वो बड़े साहब पर ही सबकुछ डाल चुके हैं। वह अपने आप में मस्त हैं। वह भला  केसे कुछ कहें वो भी तो उसी गिनती के हैं जिनको 60 या 70 वोट से शुरू करने वाला बताया जाता था।
2007 में क्राइम रिपोर्टर रह चुके एक साहब खूब विरोध करते हैं। वह चाहते हैं कि क्लब में अच्छा काम हो। दिल्ली जैसा बन जाए। पूर्व अध्यक्ष की वोटिंग राइट को खतम करने पर कड़ा ऐतराज जताया था, लेकिन इनके पास भी खर्चे के नाम पर जेब खाली है।
वहीं एक साहब तो धोबी पछाड़ टाइप हैं। इस चुनाव में खुद को सिर्फ चेक करने के लिए उतरे। वह एक बड़े अखबार के कई पदाधिकारियों की तरफ देखते हैं। उनका मानना है कि वो आगे बड़े तो उनका साथ दिया जाए। वह अपनी बात दमदारी और बेवाकी से रखते हैं लेकिन ऐसा लगता है उन्हें कोई सीरियस नहीं ले रहा, क्योंकि वह अपनी बात सभी से कहते हैं, भाई काम करो वर्ना हम निष्क्रिय वाली लिस्ट में आ जाएंगे।
एक साहब ऐसे हैं कि सबका आदर करते हैं वह चाहते हैं कि पिछली बार की तरह उसे सुस्त न कहा जाए। वह भरकस कोशिश में हैं जल्द ही कुछ अच्छा हो। उनके पास कई प्लान हैं l प्रेसवार्ता, होर्डिंग आदि बुकिंग में आमदनी बड़ाने कर क्लब की कमाई आदि।
कार्यकारणी में एक साहब तो ऐसे भी हैं जो काउंटिंग के समय पसीना दे रहे थे। अब वो खुद को बहुत वरिष्ठ दर्शाते हैं। इनके पास भी क्लब में कुछ बड़ा करने के नाम पर बाबा जी का ठुल्लू है।  कार्यकारणी सदस्य में कई ऐसे हैं जिन्होंने चुनाव के बाद प्रेस क्लब का दरवाजा भी नहीं देखा है। एक दो ऐसे भी हैं जो सिर्फ बड़े साहब और 70 वोट जेब में लेकर घूमने वाले के ढोलक हैं। जो सिर्फ वाह वाही में लगे रहते हैं।

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