भोपाल कोर्ट ने 28 साल पुराने सरला मिश्रा कांड में दोबारा जांच के आदेश दिए हैं। पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह पर लगे हत्या और साजिश के आरोपों से जुड़ा यह मामला अब फिर सुर्खियों में है। जानिए पूरी जानकारी।
भोपाल, अप्रैल 2025 — मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और वर्तमान राज्यसभा सांसद दिग्विजय सिंह एक बार फिर से विवादों में घिरते नजर आ रहे हैं। 28 साल पुराने बहुचर्चित सरला मिश्रा हत्याकांड की फाइल दोबारा खुलने जा रही है। भोपाल की जिला अदालत ने मामले की पुनः जांच (Re-investigation) के आदेश दे दिए हैं, जिससे कांग्रेस नेता की मुश्किलें बढ़ सकती हैं।
क्या है सरला मिश्रा कांड?
यह मामला 14 फरवरी 1997 का है, जब सरला मिश्रा को भोपाल स्थित उनके आवास पर जली हुई हालत में पाया गया था। गंभीर रूप से झुलसी सरला की मौत हो गई थी। प्रारंभिक पुलिस जांच में इसे आत्महत्या का मामला बताया गया था। लेकिन सरला के भाई अनुराग मिश्रा और आनंद मिश्रा ने इसे हत्या करार देते हुए तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह और उनके भाई लक्ष्मण सिंह पर सीधे तौर पर हत्या और साक्ष्य छुपाने के आरोप लगाए थे।
अदालत ने क्यों दिए दोबारा जांच के आदेश?
मामले के वकील अरुण चौबे ने बताया कि पुलिस जांच से कोर्ट संतुष्ट नहीं था। टीटी नगर थाना पुलिस ने उस समय इस केस की जांच की थी और जल्दबाज़ी में “सुसाइड केस” बताकर फाइल बंद कर दी थी। लेकिन अदालत ने माना कि इस जांच में गंभीर खामियां थीं और अब पुलिस को दोबारा जांच कर रिपोर्ट पेश करने के आदेश दिए गए हैं।
अनुराग मिश्रा का बयान: “28 साल से न्याय का इंतजार”
सरला मिश्रा के भाई अनुराग मिश्रा ने कहा,
“हमने पहले दिन से ही कहा था कि ये आत्महत्या नहीं, हत्या थी। पुलिस ने हमारे बयान तक दर्ज नहीं किए। अब जाकर उम्मीद की एक किरण दिखी है। हमें 28 साल बाद न्याय की आस जगी है।”
उन्होंने आरोप लगाया कि तत्कालीन पुलिस प्रशासन पर राजनीतिक दबाव था और मामले को जानबूझकर दबाया गया।
CBI जांच की भी उठी थी मांग
सरला मिश्रा के परिवार ने इस मामले में CBI जांच की मांग की थी। साल 2015 में इस केस ने दोबारा तूल पकड़ा जब परिवार ने धरना दिया और तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से मिलकर निष्पक्ष जांच की मांग की। बीजेपी के कई नेताओं ने भी उस समय मामले में CBI की एंट्री की वकालत की थी।
राजनैतिक अदावत या न्याय की लड़ाई?
परिवार का दावा है कि सरला मिश्रा की हत्या राजनीतिक अदावत का नतीजा थी। उन्होंने आरोप लगाया कि “पुलिस अधिकारियों को सीधे मुख्यमंत्री आवास से भेजा गया था” और जांच को जानबूझकर कमजोर किया गया। अब जब अदालत ने इस पर नए सिरे से जांच के आदेश दिए हैं, तो उम्मीद जताई जा रही है कि न्याय की दिशा में एक कदम आगे बढ़ा है।
मुलताई में कुछ बैंक, कुछ शॉपिंग कॉम्प्लेक्स बिना पार्किंग के संचालित हो रहे हैं, तथा कुछ लोगों ने पार्किंग के लिए जगह बहुत कम दी है। जो वाहन पार्किंग के लिए पर्याप्त नहीं है। इससे ग्राहको को वाहन खड़े करने में बहुत परेशानी होती है। आखिर बिना पार्किंग के बैंक कैसे संचालित हो रहे हैं। ये तो नियमों का उल्लघंन हो रहा है। सड़क किनारे वाहन खड़े करने से यातायात व्यवस्था प्रभावित होती है। कई बार दुर्घटना तक हो जाती है। सरकारी जमीन पर वाहन खड़े हो रहे हैं ।जबकि जिस भवन मे बैंक संचालित होती है उसकी स्वयं की पार्किंग होना जरूरी है। मुलताई में संचालित सभी बैंकों की पार्किंग व्यवस्था की जांच होना चाहिए।
कुछ बेसमेंट बिना अनुमति के बने हैं। कुछ व्यावसायिक भवनों के नक्शे बिना पार्किंग दिए पास हुए हैं। कुछ लोगों ने सरकारी जमीन पर पक्का अतिक्रमण कर लिया है। जांच होना चाहिए।
रवि खवसे, मुलताई (मध्यप्रदेश)