एटा: उत्तर प्रदेश के एटा जिले के अवागढ़ क्षेत्र में एक गंभीर प्रशासनिक चूक के चलते लेखपाल को निलंबित कर दिया गया है। यह मामला उस समय सामने आया जब बीएसएफ जवान रमेश चंद्र की मणिपुर में तैनाती के दौरान मृत्यु हो गई और उनका पार्थिव शरीर 16 जनवरी 2025 को उनके पैतृक गांव नगला केसरी लाया गया। प्रशासनिक लापरवाही और गलत सूचना देने के कारण विवाद उत्पन्न हुआ, जिससे पूरे मामले में तनाव और शांति व्यवस्था प्रभावित हुई।
मामले का घटनाक्रम
रमेश चंद्र की मृत्यु के बाद उनका पार्थिव शरीर 16 जनवरी 2025 को उनके पैतृक गांव में दाह संस्कार के लिए आना था, और उसे राजकीय सम्मान के साथ अंतिम संस्कार किया जाना था। लेकिन, सम्बंधित लेखपाल कौशलेन्द्र सिंह ने उक्त शव के आने से एक दिन पहले ही उच्च अधिकारियों को सूचित किया, जबकि उसे समय रहते जानकारी मिल गई थी। इसके बाद उन्होंने मृतक के परिवार और ग्रामवासियों को गुमराह किया और खुद से बिना किसी अनुमति के भूमि चिन्हित करने के लिए जेसीबी चलवाकर विवाद पैदा किया।
लेखपाल पर आरोप और निलंबन
लेखपाल कौशलेन्द्र सिंह द्वारा प्रशासन को गलत तरीके से सूचित करने और ग्रामवासियों को गुमराह करने के कारण तनाव उत्पन्न हुआ और शांति व्यवस्था प्रभावित हुई। इसके अतिरिक्त, लेखपाल द्वारा शासन स्तर पर चल रहे फार्मर रजिस्ट्री जैसे कार्यों में रुचि नहीं ली जा रही थी और सरकारी योजनाओं की समय पर पूर्ति नहीं हो रही थी।
इसके परिणामस्वरूप, नायब तहसीलदार अवागढ़ की रिपोर्ट के आधार पर लेखपाल को निलंबित कर दिया गया। निलंबन के दौरान उन्हें जीवन निर्वाह भत्ता दिया जाएगा, लेकिन महंगाई भत्ता नहीं मिलेगा। लेखपाल को रजिस्ट्रार कानूनगो कार्यालय से जुड़ने का आदेश दिया गया है और उन्हें प्रतिदिन कार्यालय में उपस्थिति दर्ज करानी होगी।
प्रशासनिक लापरवाही और सवाल
इस पूरे मामले में कई महत्वपूर्ण सवाल उठते हैं। सबसे बड़ा सवाल यह है कि नायब तहसीलदार ने पहले क्यों नहीं लेखपाल की लापरवाही पर ध्यान दिया और क्यों उसकी शिकायत पहले से नहीं की गई थी। इसके अलावा, बीएसएफ जवान की मृत्यु की सूचना प्रशासन और इंटेलिजेंस विभाग को समय पर क्यों नहीं मिली? क्या प्रशासन ने सही समय पर मामले का संज्ञान लिया?
एक और सवाल यह है कि बीएसएफ जवान की मृत्यु को लेकर प्रशासन और मृतक के परिवार के बीच आपसी मतभेद क्यों थे। क्या प्रशासन ने बिना पुख्ता सबूत के मृतक के परिवार और मामले को संशय में क्यों डाला? क्या लेखपाल को बलि का बकरा बनाकर एक प्रशासनिक गलती को छुपाने का प्रयास किया जा रहा है?
निलंबन के बाद की कार्रवाई
निलंबन के बाद तहसीलदार जलेसर को इस मामले की जांच अधिकारी नियुक्त किया गया है, जो मामले की गहनता से जांच करेंगे। इसके अतिरिक्त, प्रशासन को इस पूरे घटनाक्रम से सीख लेने की जरूरत है ताकि भविष्य में ऐसी घटनाएं न घटें और प्रशासन की छवि और प्रभावशीलता बनी रहे।