यह सब कुछ तहसील किरावली के राजस्व विभाग की लापरवाही से हुआ है। यदि समय रहते इस सरकारी जमीन को राजस्व अभिलेखों में दर्ज कर लिया जाता, तो यह विवाद नहीं उठता। इस मामले ने तहसील प्रशासन की कार्यप्रणाली और अधिकारियों की लापरवाही को एक बार फिर सवालों के घेरे में ला दिया है।
रालोद नेता मुकेश डागुर ने उठाया मामला
किरावली में आयोजित समाधान दिवस के दौरान रालोद नेता और समाजसेवी मुकेश डागुर ने भड़कौल गांव की इस ज़मीन पर हुए विवाद को एसडीएम किरावली राजेश कुमार के सामने रखा। मुकेश डागुर ने ज़मीन के संबंध में सभी दस्तावेज़ और न्यायालय के आदेश दिखाए, जिनके आधार पर एसडीएम भी चौंक गए और मामले की गंभीरता को समझा।
मुकेश डागुर ने बताया कि बावरिया जाति के कुछ लोगों ने न सिर्फ 18 बीघा सरकारी भूमि पर कब्जा किया, बल्कि ग्राम प्रधान ओमप्रकाश की निजी जमीन पर भी ट्रैक्टर चलाया। ग्राम प्रधान ओमप्रकाश ने इस मामले में थाना फतेहपुरसीकरी में एफआईआर भी दर्ज कराई है।
भड़कौल के बावरिया और ज़मीन का इतिहास
भड़कौल गांव में कभी बावरिया जाति के करीब दस परिवार रहते थे। इन परिवारों को 18 बीघा सरकारी भूमि के पट्टे मिले थे। 2002 में कुछ बावरिया लोग अपराधी गतिविधियों में शामिल हुए और पुलिस के साथ मुठभेड़ में घायल हो गए। इसके बाद ये लोग भरतपुर जिले के आजाद नगर गांव में बस गए।
वहीं, 2007 में, इन बावरिया परिवारों ने प्रशासन से अनुमति के बिना अपनी पट्टे की जमीन को आगरा के सुशील कुमार को बेच दिया। चूंकि पट्टे की जमीन को बेचा नहीं जा सकता था, मामला न्यायालय तक पहुंचा और काफी वर्षों की कानूनी लड़ाई के बाद 2018 में न्यायालय ने उस बैनामा को शून्य घोषित कर दिया। इसके साथ ही सारी जमीन राज्य सरकार के अधीन कर दी गई थी।
राजस्व विभाग की लापरवाही से हुआ विवाद
न्यायालय के आदेश के बावजूद तहसीलदार किरावली ने उस जमीन को सरकारी अभिलेखों में दर्ज नहीं किया, जिससे जमीन पर कब्जा करने वालों को मौका मिल गया। परिणामस्वरूप, भड़कौल के बावरिया समाज के लोग, जो अब आजाद नगर में रह रहे थे, ने इस सरकारी जमीन पर फिर से कब्जा कर लिया और ट्रैक्टर से उसे जोत भी डाला।
अधिकारियों की प्रतिक्रिया
जब यह मामला समाधान दिवस में एसडीएम के समक्ष लाया गया, तो तहसीलदार देवेंद्र प्रताप सिंह ने कहा कि “इस प्रकरण का अवलोकन कर नियमानुसार कार्रवाई की जाएगी।” हालांकि, इस दौरान लेखपाल से लेकर अन्य अधिकारी भी मामले से पल्ला झाड़ते हुए नजर आए।
भड़कौल गांव में सरकारी जमीन के इस विवाद ने प्रशासन की कार्यप्रणाली और अधिकारियों की लापरवाही को उजागर किया है। अगर समय रहते राजस्व अभिलेखों में यह जमीन सरकारी के रूप में दर्ज की जाती, तो इस विवाद से बचा जा सकता था। अब देखना यह है कि प्रशासन इस मामले में क्या कार्रवाई करता है और क्या न्याय दिलवाने में सफल होता है।