मथुरा। ब्रज क्षेत्र में धार्मिक पर्यटन लगातार बढ़ रहा है। धार्मिक पर्यटन में किसानों के लिए भी अपार संभावनाएं निहित हैं। कुछ किसान इस ओर ध्यान दे रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी मथुरा दौरे पर जिस तरह ब्रज के विकास की बात की उससे भी आगामी दिनों में पर्यटकों की संख्या में इजाफा होने की पूरी संभावना है। जैसे जैसे पर्यटन बढेगा फूलों की मांग भी बढेगी।
कान्हा की नगरी में फूलों की खेती किसानों को मालामाल कर सकती है। वर्तमान में मांग का 10 प्रतिशत फूल भी स्थानीय स्तर पर पैदा नहीं हो पा रहा है। फूलों की खेती में सबसे बडी बाधा खारा पानी है। जनपद के बडे भू भाग में खारे पानी की समस्या है। दूसरा किसानों को बाजार में टिकने के लिए सरकारी मदद की भी आवश्यकता है। सिंचाई की आधुनिक तकनीकों और सरकारी मदद से किसान फूलों की खेती में हाथ अजमा सकते हैं।
किसानों का कहना है कि जनपद में फलों की खेती बहुत कम होती है। इसका बड़ा कारण यहां की मिट्टी और पानी है। यहां खारे पानी की समस्या है। जहां मीठे पानी की उपलब्धता है और जो गांव शहर के आसपास हैं वहीं थोड़ी बहुत फूलों की खेती होती है। गुलाब भी थोड़ा बहुत होता है और गेंदा होता है। कुछ ग्रीन हाउस हैं जिसमें झरबेरा होता है वह दिल्ली जाता है यहां से।
जहां तक आमदनी का सवाल है यह इस बात पर निर्भर करता है कि किस सीजन में फूल आ रहा है। जो किसान फूलों की खेती कर रहैं उन्हें यह पता है कि किसी सीजन में उन्हें अधिक मुनाफा मिलेगा। मथुरा वृंदावन में फूलों की मांग हमेशा रहती है। जबकि शादी, त्योहार, चुनाव के समय मांग और बढ़ जाती है।
एक हेक्टेयर में ग्लेडिलोयस से दे सकता है पांच लाख तक लाभ
फूलों की खेती किसानों के लिए कई प्रकार से चुनौती पूर्ण भी है। जनपद में ग्लेडियोलस की खेती के प्रयास सफल नहीं हो सके हैं। एक दशक पहले जनपद में ग्लेडियोलस की खेती को प्रोत्साहन देने के प्रयास हुए थे। कई क्षेत्रों में किसानों ने इस फूल को उगाना शुरू हुआ था। विभिन्न कारणों से इस खेती से किसानों ने हाथ खींच लिया। ग्लेडियोलस की खेती से किसान को एक हेक्टेयर से पाच से छह लाख रुपये तक बचत कर सकता है।
लगातार बढ रही है फूलों की मांग
गर्मी के दिनों में मंदिरों में फूल बंगला सजाने के लिए बड़ी मात्रा में फूल विदेश से आते हैं, वहीं विवाह समारोह की डेकोरेशन में विशेष बदलाव हो रहा है। गुलाब, गेंदा जैसे पारंपरिक देशी फूलों से इतर सजावट में विदेशी फूलों का क्रेज बढ़ा है। फ्लॉवर थीम के अनुसार साज सज्जा होने लगी है। हल्दी और मेहंदी की रस्म में पीले फूल और पत्तों की डेकोरेशन पसंद की जाती है। गेट, स्टेज, बैकड्रॉप आदि के लिए विदेशी प्रजाति के फूल पहली पसंद हैं। सफेद आर्किड से अरेबियन नाइट्स का सेट, लीलियम से व्हाइट हाउस का लुक, पिंक लिली और टाटा रोज से स्टेज का रॉयल लुक शहर में शादियों की शान बन रहा है।
पैकेज में फ्लॉवर डेकोरेशन
फ्लावर डेकोरेटर प्यारे लाल सैनी ने बताया कि फ्लॉवर डेकोरेशन पैकेज में जयमाला, सगाई के बुके, फेरों के वक्त डाले जाने वाले फूल, दुल्हन द्वारा हल्दी, मेहंदी, बान, चाक, तेल आदि रस्मों में पहनी जाने वाली फूलों की ज्वेलरी, विदाई की डोली, कार और घर की सजावट सहित वेडिंग कपल के रूम की डेकोरेशन भी पैकेज में शामिल होती है।
आकृतियां बनती हैं आकर्षण
वसीम का कहना है कि दुपट्टा, प्रॉप्स व फूलों को मिलाकर होने वाली डेकोरेशन में स्कूटर, रिक्शा, झूला, साइकिल, फैमिली ट्री भी फूलों से सजने लगी हैं। सेल्फी के लिए टियारा महिलाओं की विशेष पसंद है। आज भी बारातियों के कोट में गुलाब का फूल मुस्कुराता है।
हजारों में पहुंची विदेशी फूलों की सज्जा
विदेशी फूलों की सज्जा हजारों में पहुंच चुकी है। करीब 50 हजार रुपये से शुरू होने वाली फ्लॉवर डेकोरोशन में रेट बढ़ने के साथ फूलों की किस्म भी बढ़ जाती हैं।
स्पेशल फ्लॉवर थीम का भी क्रेज
गुलाब और व्हाइट आर्किड की रेड एंड व्हाइट, रेड एंड ग्रीन, आर्किड और पत्तियों की ग्रीन एंड व्हाइट, पिंक एंड रेड, टाटा रोज से केवल गुलाबों की थीम लेकर भी सजावट हो रही है।
ऐसे आते हैं विदेशी फूल देश में
फ्लॉवर डेकोरेटर्स पवन कुमार बताते हैं कि जरबेरा, आर्किड, ग्लेडुलस, ट्यूलिप, बीओपी पैराडाइज, कैलिया लिली, लिलिएक, हेलिकोनिया, थाईग्रेंडियाज आदि फूल थाईलैंड से हवाई रास्ते से दिल्ली तक आते हैं। वहां से व्यापारी यहां लाते हैं।
यहां फूलों की मांग है इस में कोई शक नहीं है। मथुरा जनपद में 100 हेक्टेयर से अधिक फूलों की खेती नहीं है। यहां जो फूल आता है वह ज्यादातर बाहर से ही आता है। हॉर्टिकल्चर विभाग की ओर से किसानों के लिए प्रोत्साहन स्कीमें भी चलाई जा रही हैं। सामान्य किसान यानी जिनके पास दो हेक्टेयर से ज्यादा खेती है के लिए गेंदा की खेती पर प्रति हेक्टेयर 10 हजार रूपये अनुदान है। लघु और सीमांत किसान के लिए 16 हजार रुपये प्रति हेक्टेयर अनुदान की व्यवस्था है। किसान इसमें हाथ अजमा सकते हैं।
मनोज कुमार चतुर्वेदी, जिला उद्यान अधिकारी