कार्यक्रम का शुभारंभ पवित्र क़ुरआन की तिलावत से हुआ। असिस्टेंट प्रोफ़ेसर अबरार हसन ने क़ुरआन की आयत का हिंदी और अंग्रेजी में रूपांतरण करते हुए बताया कि इंसान को एक ही माता-पिता से उत्पन्न किया गया है और इसका कोई भी भेदभाव गलत है। यह बुनियादी मूल्य आज के मानवाधिकार कानूनों का संरक्षण करते हैं।
इस अवसर पर जामिया कॉलेज ऑफ़ लॉ के प्रिंसिपल प्रोफ़ेसर सऊद अहमद ने छात्रों और अतिथियों को स्वागत भाषण दिया और बताया कि सेमिनार का उद्देश्य मानवाधिकारों के महत्व को समझाना है, विशेषकर आज के दौर में।
कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में डॉ. अयूब डार (एसिस्टेंट प्रोफ़ेसर, यूनिवर्सिटी ऑफ पेट्रोलियम एंड एनर्जी स्टडीज) ने वेब माध्यम से भाग लिया और समकालीन युग में मानवाधिकारों की चुनौतियों पर अपने विचार साझा किए। उन्होंने बताया कि संविधान और कानून का पालन करके ही मानवाधिकारों का सही मायनों में संरक्षण संभव है।
कार्यक्रम के दौरान प्रोफ़ेसर (डॉ.) अकील अली सैय्यद ने कहा कि मानवाधिकार का संरक्षण एक व्यापक मुद्दा है और इसके लिए हर स्तर पर काम करने की आवश्यकता है। वे मानते हैं कि अगर हम संवेदनाओं को जीवित रखें और जनजन को इसके महत्व के बारे में समझाएं तो हम भारत को ‘विश्व गुरू’ बना सकते हैं।
इस कार्यक्रम में जामिया कॉलेज ऑफ एजूकेशन के सहायक प्रोफ़ेसर (डॉ.) अमजद कमाल ने भी मानवाधिकारों के संरक्षण की आवश्यकता को बताया और कहा कि छोटे-छोटे शोषणों के खिलाफ आवाज उठाकर ही हम समाज में बदलाव ला सकते हैं।
असिस्टेंट प्रोफ़ेसर इमरान ने इंसानियत और संवेदनाओं के महत्व पर जोर देते हुए कहा कि यदि हम मासूमियत और संवेदनाओं का संरक्षण करेंगे तो आने वाली पीढ़ियाँ मानवता के लिए काम करेंगी।
अंत में, प्रोफ़ेसर फ़हद अली ख़ान ने वैश्विक मानवाधिकार संगठनों के कार्यों और उनके संरक्षण के तरीकों पर विस्तार से चर्चा की। उन्होंने यह भी कहा कि किसी संगठन से जुड़ने से पहले हमें अपनी जिम्मेदारियों को समझना होगा और खुद से ही मानवाधिकारों के लिए काम करना होगा।
कार्यक्रम का समापन सामूहिक राष्ट्रगान से हुआ, जिसमें सभी छात्रों और उपस्थित अतिथियों ने भाग लिया।