आगरा। महिलाओं की सुरक्षा को लेकर कड़े कदम उठाने की अत्यंत आवश्यकता है। वर्तमान समय में सामाजिक माहौल में बदलाव सबसे महत्वपूर्ण मुद्दा बन गया है। जबकि सरकारें और समाज के प्रबुद्ध सदस्य महिलाओं से संबंधित अपराधों की रोकथाम के लिए सक्रिय हैं, आंकड़े बताते हैं कि महिलाओं पर होने वाले अपराधों की संख्या में कोई खास कमी नहीं आई है। यह स्थिति अत्यंत चिंताजनक है और शायद इसका कारण व्यवस्था की खामियां हो सकती हैं, जिनके कारण शिकायतों की जांच और बयान दर्ज करने की प्रक्रिया में विलंब होता है, और ट्रायल कोर्ट में मामले लम्बित रहते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने भी कई मामलों में यह टिप्पणी की है कि समय पर न्याय न मिलना, न्याय नहीं होता, बल्कि कानूनी प्रक्रिया का एक निष्कर्ष मात्र होता है।
समस्याएं और कारण
- न्याय प्रणाली में देरी: अधिकांश मामलों में न्याय मिलने में काफी समय लगता है, जिससे पीड़ितों का विश्वास न्यायपालिका पर से उठ जाता है।
- सामाजिक मानसिकता: समाज में महिलाओं को लेकर एक गलत मानसिकता व्याप्त है।
- कानून का प्रभावी कार्यान्वयन न होना: कानून तो बने हुए हैं, लेकिन उनका प्रभावी कार्यान्वयन नहीं होता है।
- पुलिस की भूमिका: अक्सर पीड़ितों को पुलिस से सहयोग नहीं मिलता है।
- शिक्षा और जागरूकता का अभाव: महिलाओं और पुरुषों दोनों को समानता और सम्मान के बारे में शिक्षित करने की आवश्यकता है।
हाल ही में बंगाल की महिला डॉक्टर की हत्या ने देश को एक बार फिर हिला दिया है, जैसे निर्भया हत्याकांड ने किया था। किसी भी अपराधी को उसकी जाति या प्रदेश के आधार पर नहीं, बल्कि अपराध के आधार पर दंड मिलना चाहिए, ताकि पूरे देश की महिलाएं सुरक्षित महसूस कर सकें।
मौजूदा माहौल के बावजूद महिलाओं में न्याय व्यवस्था के प्रति विश्वास और सामाजिक सुरक्षा की भावना को मजबूत करने के लिए निम्नलिखित सुझाव दिए गए हैं:
1. आगरा के स्कूलों में लिंग संवेदीकरण पर बच्चों के साथ निरंतर चर्चा की जाए।
2. आगरा पुलिस के साथ लिंग संवेदीकरण पर विचार-विमर्श किया जाए।
आज की मीटिंग में निम्नलिखित मुद्दों पर चर्चा की गई
1. अपराधियों को पकड़े जाने पर मामलों को फास्ट ट्रैक पर लाना चाहिए।
2. पीड़ितों की पीड़ा को गंभीरता से सुनना चाहिए और उसके अनुसार कार्यवाही करनी चाहिए। पीड़िता और उसके पक्षकारों के साथ सम्मानजनक व्यवहार किया जाना चाहिए। वर्तमान में पीड़ितों को प्रारंभ में गंभीरता से नहीं लिया जाता, और केवल प्रभावशाली राजनीतिज्ञों के हस्तक्षेप से ही कार्यवाही तेज होती है।
3. आगरा में बीट पुलिसिंग सिस्टम कागजी तौर पर लागू है, लेकिन इसे प्रभावी ढंग से लागू करने की आवश्यकता है।
4. लड़कियों और लड़कों को उनके अधिकारों और सामाजिक सरोकारों के प्रति नियमित रूप से जागरूक किया जाना चाहिए।
कानूनी कड़ाई के साथ-साथ सामाजिक माहौल में बदलाव की सबसे अधिक आवश्यकता है। समाज एक ओर महिलाओं को देवी तुल्य मानकर सम्मानित करता है, वहीं दूसरी ओर उनके साथ दुर्व्यवहार भी करता है। संस्कृति से जोड़कर खजुराहो मंदिर, कामसूत्र आदि को प्रचारित कर मानसिक विकार उत्पन्न किए जाते हैं। वेश्यावृत्ति, जो पूरी तरह से विवश महिलाओं के शारीरिक और मानसिक उत्पीड़न पर आधारित है, को कड़ाई से रोका जाना चाहिए।
समाज को कुंठाओं से उबारने की आवश्यकता है और सही यौन शिक्षा इसका प्रमुख उपाय है। सोशल मीडिया का दुरुपयोग और अश्लीलता के प्रसार को नियंत्रित करने के लिए कड़े आईटी कानूनों का प्रभावी उपयोग किया जाना चाहिए। स्कूलों, कॉलेजों और अन्य सार्वजनिक स्थानों पर यौन अपराधों से निपटने की जानकारियों को नियमित रूप से प्रचारित किया जाना चाहिए। जन जागरूकता बढ़ाने के लिए कलाकारों की प्रस्तुतियों का भी सहारा लिया जाना चाहिए और सरकार को ऐसे प्रयासों को प्रोत्साहित करना चाहिए।
आज की परिचर्चा में असलम सलीमी, विनीता अरोरा, भावना रघुवंशी, ज्योत्स्ना रघुवंशी, रोमी चौहान, हिमानी चतुर्वेदी, अभिजीत सिंह, विशाल रिआज़, राम शर्मा, विजय शर्मा, अजय तोमर और रामभरत उपाध्याय उपस्थित रहे।