नई दिल्ली: उत्तर प्रदेश की 10 विधानसभा सीटों पर होने वाले उपचुनाव और हरियाणा विधानसभा चुनाव में बहुजन समाज पार्टी (बसपा) की प्रमुख मायावती और आजाद समाज पार्टी के सांसद चंद्रशेखर आजाद के बीच सीधा मुकाबला होगा। दोनों नेताओं का लक्ष्य राज्य की लगभग 20% दलित आबादी के वोटों को अपने पक्ष में करना है। हालांकि चुनावी नतीजे के बाद ही स्पष्ट होगा कि दलित वोट किसके खाते में जाएंगे, लेकिन यह सवाल जरूर उठ खड़ा हुआ है कि क्या मायावती इस बार भी दलित वोटों में अपनी स्थिति बनाए रखेंगी या चंद्रशेखर आजाद उन्हें पीछे छोड़ देंगे।
लोकसभा चुनाव 2024 के दौरान, चंद्रशेखर आजाद ने बिजनौर जिले की नगीना लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा था, जहां समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी, और भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार भी मैदान में थे। लखनऊ से लेकर दिल्ली तक के दलित चिंतकों ने उम्मीद की थी कि चंद्रशेखर की हार होगी और मायावती दलितों की एकमात्र नेता बनी रहेंगी। लेकिन, चंद्रशेखर आजाद ने चुनावी नतीजों में बड़ी जीत हासिल कर सभी को चौंका दिया।
चंद्रशेखर आजाद की जीत और बसपा की हार के बाद, राजनीतिक हलकों में यह सवाल उठने लगा है कि क्या मायावती अपने 40 साल के राजनीतिक करियर में अब ढलान की ओर बढ़ रही हैं। क्या दलित समाज अब चंद्रशेखर आजाद की ओर मोड़ जाएगा? खासकर लोकसभा चुनाव के दौरान मायावती ने आकाश आनंद को जिम्मेदारियों से हटा कर वापस बुला लिया था, जिससे यह आभास हुआ कि दलितों में चंद्रशेखर आजाद का प्रभाव बढ़ रहा है। मायावती ने आकाश आनंद को फिर से बड़ी जिम्मेदारी देकर अपनी पार्टी की स्थिति सुधारने की कोशिश की, लेकिन तब तक काफी देर हो चुकी थी।
मायावती के राजनीतिक करियर में आए इस बदलाव ने दलित समाज में एक नया सवाल खड़ा कर दिया है। यूपी की 10 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव में बसपा के मैदान में उतरने से यह स्पष्ट होता है कि मायावती चंद्रशेखर आजाद की बढ़ती स्वीकार्यता से चिंतित हैं। इसके अलावा, लोकसभा चुनाव में दलित वोटों का एक बड़ा हिस्सा इंडिया गठबंधन की ओर गया, खासकर राहुल गांधी को लेकर, जिससे मायावती की चिंता और बढ़ गई है। उन्हें डर है कि यदि दलित वोट कांग्रेस की ओर चले गए, तो वे फिर कभी बसपा की ओर लौटेंगे नहीं।
हरियाणा विधानसभा चुनाव के संदर्भ में, चंद्रशेखर आजाद ने दुष्यंत चौटाला की जननायक जनता पार्टी से गठबंधन कर लिया है, जबकि मायावती ने इंडियन नेशनल लोकदल (INLD) के ओमप्रकाश चौटाला से हाथ मिलाया है। हरियाणा में भी 20% दलित वोटरों के साथ, मायावती और चंद्रशेखर के बीच संघर्ष देखने को मिलेगा। यह देखना दिलचस्प होगा कि उत्तर प्रदेश और हरियाणा में किसे सफलता मिलती है, लेकिन इतना तय है कि चंद्रशेखर आजाद ने बसपा प्रमुख मायावती को असहज कर दिया है। मायावती को अब यह सोचना होगा कि वे अपने भतीजे आकाश आनंद को कितनी अच्छी तरह से राजनीतिक पटल पर उतार पाएंगी और चंद्रशेखर आजाद की चुनौती का मुकाबला कैसे करेंगी।