पहाड़ से पानी नहीं, कुछ और आया! IMD ने नकारा बादल फटने की बात, धराली त्रासदी का सच अब बताएगा ISRO

Saurabh Sharma
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उत्तराखंड के उत्तरकाशी में धराली गांव में हुई भयावह त्रासदी के बाद यह सवाल उठ रहा है कि क्या यह घटना सच में बादल फटने से हुई थी। भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (IMD) ने इस दावे को खारिज कर दिया है, जिससे इस त्रासदी के कारणों को लेकर एक नया रहस्य गहरा गया है।

उत्तरकाशी, उत्तराखंड: मंगलवार दोपहर को उत्तरकाशी के धराली गांव में अचानक आए मलबे और पानी के सैलाब ने भयानक तबाही मचा दी। इस त्रासदी में अब तक 6 लोगों के शव बरामद हुए हैं और कई लोग लापता हैं। राहत और बचाव दल ने 190 लोगों को सुरक्षित निकाला है, लेकिन इस आपदा की असली वजह पर सवाल खड़े हो गए हैं। जहाँ शुरुआत में इसे बादल फटना माना जा रहा था, वहीं अब विशेषज्ञों ने इस दावे को नकार दिया है।

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IMD के वैज्ञानिक ने किया खंडन

भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (IMD) के वैज्ञानिक रोहित थपलियाल ने स्पष्ट किया है कि उनके पास उपलब्ध डेटा के अनुसार, धराली में बादल फटने की कोई घटना नहीं हुई है। उन्होंने पीटीआई-भाषा को बताया कि मंगलवार को उत्तरकाशी में केवल 27 मिलीमीटर बारिश दर्ज की गई, जो बादल फटने के लिए तय वैज्ञानिक मानकों से बहुत कम है।

थपलियाल ने कहा कि अगर बादल फटना वजह नहीं है, तो अचानक आई इस बाढ़ का कारण क्या है, यह एक विस्तृत वैज्ञानिक अध्ययन का विषय है। उन्होंने दोहराया कि उपलब्ध मौसमी आंकड़े बादल फटने की पुष्टि नहीं करते।

क्या है विशेषज्ञों की राय?

वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान के पूर्व वैज्ञानिक डीपी डोभाल ने भी बादल फटने की संभावना को कम बताया है। उन्होंने कहा कि जिस अल्पाइन क्षेत्र से यह मलबा आया, वहाँ बादल फटने की संभावना कम होती है।

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डोभाल ने सुझाव दिया कि यह बाढ़ किसी बड़े बर्फ के टुकड़े या चट्टान के गिरने से हुई हो सकती है, जिससे अचानक हिमोढ़ (ग्लेशियल डेब्रिस) बह गया हो। उन्होंने कहा कि इस आपदा की वास्तविक वजह की पुष्टि तभी हो पाएगी जब ISRO (भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन) द्वारा उपलब्ध कराए गए उपग्रह चित्रों का वैज्ञानिक विश्लेषण किया जाएगा।

उत्तराखंड में आपदाओं की बढ़ती संख्या

‘जर्नल ऑफ जियोलॉजिकल सोसायटी ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित हालिया अध्ययनों के अनुसार, 2010 के बाद से उत्तराखंड में अत्यधिक वर्षा और सतही जल प्रवाह की घटनाओं में तेजी से वृद्धि हुई है।

  • नेचुरल हजार्ड्स जर्नल में नवंबर 2023 में प्रकाशित शोध के अनुसार, 2020 से 2023 के बीच केवल मानसून के दौरान 183 आपदाएँ दर्ज की गईं।
  • इन आपदाओं में 34.4% भूस्खलन, 26.5% आकस्मिक बाढ़ और 14% बादल फटने की घटनाएँ थीं।
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विशेषज्ञों का मानना है कि उत्तराखंड का भौगोलिक स्वरूप (खड़ी ढलानें, कटाव-संवेदनशील संरचनाएँ) इसे प्राकृतिक रूप से आपदाग्रस्त बनाता है। इन प्राकृतिक कारणों में मानवीय हस्तक्षेप (सड़क निर्माण, वनों की कटाई और नदी तटों पर अनियंत्रित बस्तियां) ने खतरे को कई गुना बढ़ा दिया है। अब सभी को ISRO की रिपोर्ट का इंतजार है, जो इस त्रासदी की असली वजह का खुलासा कर सकती है।

 

 

 

 

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