आगरा में श्रीकृष्ण लीला समिति के तत्वावधान में चल रहे श्रीकृष्ण लीला महोत्सव के 11वें दिन रविवार को शिशुपाल वध और द्वारिकापुरी में भगवान श्रीकृष्ण और रुक्मिणी विवाह लीला का मंचन किया गया। लीला में भगवान श्रीकृष्ण और रुक्मिणी के प्रेम और समर्पण की कहानी को भव्य रूप से प्रस्तुत किया गया।
लीला का शुभारंभ श्रीकृष्ण लीला समिति के अध्यक्ष मनीष अग्रवाल ने किया। उन्होंने कहा कि श्रीकृष्ण लीला समिति द्वारा प्राचीन परंपरा दशकों से निभाया जा रहा है। सराहनीय बात है कि इस परंपरा से युवा भी जुड़े हैं और बढ़चढ़ कर प्रतिभाग कर रहे हैं।
लीला में दिखाया गया कि विदर्भ देश में भीष्मक नाम के राजा राज्य करते थे। उनकी पुत्री रुक्मिणी भगवान श्रीकृष्ण के गुणों और उनकी सुंदरता पर मुग्ध थी और उसने मन ही मन श्रीकृष्ण को अपना पति मान लिया था। भगवान श्रीकृष्ण तो परमज्ञानी हैं। उन्हें ज्ञात था कि रुक्मिणी परम रूपवती और सुलक्षणा भी है और उन्हें वर रूप में प्राप्त करना चाहती है।
भीष्मक का बड़ा पुत्र रुक्मी भगवान श्रीकृष्ण से शत्रुता रखता था। वह बहन रुक्मिणी का विवाह शिशुपाल से कराना चाहता था, क्योंकि शिशुपाल भी श्रीकृष्ण से द्वेष रखता था। भीष्मक ने रुक्मिणी का विवाह शिशुपाल के साथ ही करने का निश्चय किया और तिथि तय कर दी।
रुक्मिणी ने यह सूचना श्रीकृष्ण के पास भेज दी। उन्हें बता दिया कि उसके पिता उसकी इच्छा के विरुद्ध शिशुपाल के साथ उसका विवाह करना चाहते हैं। विवाह के दिन मैं गिरिजा माता के दर्शन करने को जाऊंगी। मंदिर में पहुंचकर मुझे पत्नी रूप में स्वीकार करें। यदि आप नहीं पहुंचेंगे तो मैं आप अपने प्राणों का परित्याग कर दूंगी।
रुक्मिणी का संदेश पाकर भगवान श्रीकृष्ण रथ पर सवार होकर शीघ्र ही कुण्डिनपुर की ओर चल दिए। बलराम भी यादवों की सेना के साथ कुण्डिनपर के लिए रवाना हो गए।
शिशुपाल निश्चित तिथि पर बारात लेकर कुण्डिनपुर जा पहुंचा। वहीं दूसरी ओर रुक्मिणी सज-धजकर गिरिजा देवी के मंदिर की ओर चल पड़ी। पूजन करने के बाद रुक्मिणी जब मंदिर से बाहर निकल कर अपने रथ पर बैठना ही चाहती थी कि श्रीकृष्ण ने उसका हाथ पकड़ लिया और उसे खींचकर अपने रथ पर बैठा लिया। तीव्र गति से द्वारका की ओर चल पड़े।
शिशुपाल ने श्रीकृष्ण का पीछा किया। बलराम और यदुवंशियों ने शिशुपाल को रोक लिया। भयंकर युद्ध में बलराम और यदुवंशियों ने शिशुपाल की सेना को नष्ट कर दिया। फलतः शिशुपाल निराश होकर कुण्डिनपुर से चले गए।
रुक्मी ने श्रीकृष्ण का पीछा किया। रुक्मी और श्रीकृष्ण का घनघोर युद्ध हुआ। श्रीकृष्ण ने उसे युद्ध में हराकर अपने रथ से बांध दिया, किंतु बलराम ने उसे छुड़ा लिया। रुक्मी अपनी प्रतिज्ञा के अनुसार पुनः लौटकर कुण्डिनपुर नहीं गया। वह एक नया नगर बसाकर वहीं रहने लगा। कहते हैं, रुक्मी के वंशज आज भी उस नगर में रहते हैं।
भगवान श्रीकृष्ण ने रुक्मिणी को द्वारका ले जाकर उनके साथ विधिवत विवाह किया।
लीला के अंत में श्री कृष्ण की वरयात्रा निकाली गई। भक्तों ने जयघोष करते हुए फूलों की वर्षा की।
इस अवसर पर अध्यक्ष मनीष अग्रवाल, विजय रोहतगी, अशोक गोयल, संजय गर्ग, बीजी अग्रवाल, मनीष शर्मा, शेखर गोयल, विनीत सिंघल, कैलाश खन्ना, संजय चेली, मनीष बंसल, गिर्राज बंसल, बृजेश अग्रवाल, केके अग्रवाल, विष्णु अग्रवाल, मीडिया प्रभारी तनु गुप्ता, डीके चौधरी आदि उपस्थित रहे।