नंदुरबार, महाराष्ट्र: अक्कलकुआ स्थित जामिया इस्लामिया इशातुल उलूम के जामिया कॉलेज ऑफ लॉ में अल्पसंख्यक अधिकार दिवस पर एक महत्वपूर्ण सेमिनार का आयोजन किया गया। इस सेमिनार का मुख्य विषय था – ‘सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले के आलोक में अल्पसंख्यक संस्थानों का भविष्य।’
इस आयोजन में हैदराबाद के सिंबायोसिस लॉ स्कूल के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. शायक़ अहमद शाह ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से मुख्य वक्ता के रूप में शिरकत की, जबकि जामिया के प्रोवोस्ट प्रोफेसर (डॉ.) अकील अली सैयद मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित रहे। इस सेमिनार में अल्पसंख्यक शब्द और उनके अधिकारों की संविधान और कानून के दृष्टिकोण से गहरी चर्चा की गई।
मानव अधिकार और अल्पसंख्यक अधिकारों पर चर्चा
कार्यक्रम की शुरुआत पवित्र क़ुरआन की तिलावत से हुई, जिसमें असिस्टेंट प्रोफेसर मुफ्ती अबरार हसन ने क़ुरआन की आयत का अंग्रेजी में अनुवाद कर मानव अधिकारों की बुनियादी अवधारणा को स्पष्ट किया। इसके बाद असिस्टेंट प्रोफेसर सैय्यद शादाब असदक़ ने मंच संचालन करते हुए कहा कि मानव अधिकार सही मायनों में अल्पसंख्यक अधिकारों को भी समाहित किए हुए हैं।
मुख्य अतिथि प्रोफेसर (डॉ.) अकील अली सैयद ने अपने व्याख्यान में बताया कि मानव अधिकार केवल जन्म के साथ नहीं, बल्कि मां के पेट से शुरू होते हैं। उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि जब भ्रूण चार माह का होता है, तब से उसे जीवन जीने का अधिकार मिल जाता है। इसके बाद उन्होंने संविधान के विभिन्न अनुच्छेदों के बारे में बताया, जिनमें अल्पसंख्यकों के अधिकारों को सुरक्षित रखने के प्रावधान किए गए हैं।
सुप्रीम कोर्ट के फैसलों पर चर्चा
इस सेमिनार में सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के महत्वपूर्ण फैसलों का उल्लेख किया गया, जिसमें अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थानों के अधिकारों पर विस्तृत चर्चा की गई। सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले में अल्पसंख्यक संस्थानों की स्वतंत्रता और उनके संचालन के अधिकारों पर जोर दिया गया।
वैश्विक परिप्रेक्ष्य में अल्पसंख्यक अधिकार
डॉ. शायक़ अहमद शाह ने कहा कि अल्पसंख्यक अधिकारों को यूएन कन्वेंशन के अनुरूप देखा जा सकता है। उन्होंने भारत के लोकतांत्रिक ढांचे की सराहना करते हुए कहा कि हमारे संविधान में अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा के लिए अनुच्छेद 29 और 30 के तहत प्रावधान किए गए हैं, जो उनकी संस्कृति, भाषा और लिपि को संरक्षित करने का प्रावधान करते हैं।
अल्पसंख्यक संस्थानों की भूमिका और चुनौतियाँ
डॉ. शाह ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले T.M.A. Pai Foundation v State of Karnataka (2002) का उल्लेख करते हुए कहा कि किसी राज्य या देश में 50 फीसदी से कम आबादी वाले विशेष भाषा या धार्मिक पहचान वाले समुदाय को अल्पसंख्यक माना जा सकता है। इसके साथ ही उन्होंने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के अल्पसंख्यक दर्जे को लेकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले का भी विश्लेषण किया।
कार्यक्रम का समापन
कार्यक्रम के समापन पर, जामिया कॉलेज ऑफ लॉ के सेमिनार हाल में कन्वेनर असिस्टेंट प्रोफेसर फ़हद अली ख़ान ने सभी अतिथियों और वक्ताओं का आभार प्रकट किया। इस सेमिनार में जामिया इस्लामिया इशातुल उलूम के जनसंपर्क अधिकारी शाहिद परवेज़, जामिया कॉलेज ऑफ लॉ के प्रिंसिपल डॉ. सऊद अहमद ख़ान, जामिया कॉलेज ऑफ एजूकेशन के असिस्टेंट प्रोफेसर अमजद अली, और अन्य गणमान्य लोग उपस्थित थे।