अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में, डॉ. पाण्डेय ने कहा कि भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में गांधी जी की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण रही है। उन्होंने बताया कि 1915 में अपने राजनीतिक गुरु गोपाल कृष्ण गोखले के आग्रह पर गांधी जी दक्षिण अफ्रीका से भारत लौटे और स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय रूप से शामिल हो गए। उन्होंने सत्य और अहिंसा के सिद्धांतों को अपनाते हुए कई महत्वपूर्ण आंदोलनों का नेतृत्व किया, जैसे “असहयोग आंदोलन” (1919-1922), “सविनय अवज्ञा आंदोलन” (1930-1931), “भारत छोड़ो आंदोलन” (8 अगस्त 1942) और “नमक आंदोलन” (दाण्डी यात्रा, 12 मार्च 1930)।
महाविद्यालय के मुख्य नियंता चंद्र भूषण तिवारी ने अपने संबोधन में कहा कि गांधी जी ने भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन को नई दिशा दी। उनके सत्य और अहिंसा के विचार न केवल भारत, बल्कि पूरी मानवता के लिए मार्गदर्शक बने रहेंगे। उन्होंने यह भी कहा कि आज की विश्व स्थिति को देखते हुए गांधी जी के विचारों की प्रासंगिकता और बढ़ जाती है।
असिस्टेंट प्रोफेसर आशीष कुमार गुप्ता ने कहा कि गांधी जी की अहिंसा पर आधारित विचारधारा मानवता को प्रेरित करती रहेगी। अवनीश कुमार उपाध्याय ने भी गांधी जी के जीवन और उनके विचारों की सराहना की, जिन्हें हमेशा प्रेरणा के स्रोत के रूप में देखा जाएगा।
कार्यक्रम का संचालन श्रुति माथुर और विकास शर्मा ने किया। इस अवसर पर सत्यम गुप्ता, विकास कन्नौजिया, वासव निषाद, रिमझिम, पूजा यादव, मनोज यादव, आनंद द्विवेदी जैसे छात्रों ने भी सक्रिय सहभागिता निभाई।
इस संगोष्ठी ने गांधी जी के योगदान को याद करने के साथ-साथ उनकी विचारधारा को समकालीन संदर्भ में महत्वपूर्ण बनाने का प्रयास किया।