क्या आगरा के स्कूलों में बेंत से पिटाई की प्रथा फिर से शुरू होनी चाहिए?

Dharmender Singh Malik
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बृज खंडेलवाल 

आगरा और उत्तर प्रदेश के कई हिस्सों में शारीरिक दंड और बेंत से पिटाई की प्रथा पर फिर से चर्चा हो रही है। यह चर्चा उस समय शुरू हुई जब स्कूलों में बच्चों की पिटाई पर लगे प्रतिबंध के बाद से अनुशासन की स्थिति में गिरावट की खबरें सामने आने लगीं। क्या हमें बच्चों को अनुशासन सिखाने के लिए सख्त उपायों की आवश्यकता है, या क्या हमें पश्चिमी शिक्षा पद्धतियों को अपनाने की जरूरत है, जिसमें बच्चों को ज्यादा सजा नहीं दी जाती? इस सवाल ने कई शिक्षा विशेषज्ञों, शिक्षकों और अभिभावकों को एक साथ खड़ा कर दिया है।

क्या बेंत से पिटाई जरूरी है?

बेंत से पिटाई की प्रथा को लेकर अलग-अलग राय हैं। कुछ लोग इसे बच्चों के अनुशासन और शिष्टाचार को बनाए रखने का प्रभावी तरीका मानते हैं, जबकि कुछ का मानना है कि यह बच्चे के मानसिक विकास पर नकारात्मक प्रभाव डालती है। आगरा के एक स्कूल के पूर्व छात्र ने कहा, “हमारे समय में, प्रधानाध्यापक का रौब था, जो सेना से सेवानिवृत्त थे। उनकी सख्ती के कारण स्कूल में अनुशासन था और छात्र अच्छे व्यवहार का पालन करते थे। अब तो स्कूलों में अनुशासन का नामोनिशान नहीं है।”

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शारीरिक दंड के समर्थक क्या कहते हैं?

बेंत से पिटाई को फिर से लागू करने के पक्ष में कई तर्क दिए जा रहे हैं। कुछ शिक्षक मानते हैं कि बेंत से पिटाई एक प्रभावी दंड है जो छात्रों को उनके कार्यों के परिणामों के बारे में जल्दी समझने में मदद करती है। वे यह भी मानते हैं कि शारीरिक दंड से छात्र नियमों और अनुशासन के प्रति सम्मान पैदा करते हैं, जो उन्हें जीवन में सफलता की ओर मार्गदर्शन करता है।

वरिष्ठ शिक्षक हरि शर्मा ने कहा, “अब तो शिक्षक को छात्रों को डांटने का भी अधिकार नहीं है। बच्चों को अनुशासन सिखाने के लिए सख्ती जरूरी है, क्योंकि बिना अनुशासन के किसी भी समाज का विकास नहीं हो सकता।”

आगरा के सेंट पीटर कॉलेज के एक पूर्व छात्र ने भी यह कहा, “अगर हम बच्चों को अनुशासन नहीं सिखाएंगे, तो वे न केवल स्कूल, बल्कि समाज में भी बिगड़े हुए नागरिक बन जाएंगे। यह विचार बेहद खतरनाक हो सकता है।”

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बच्चों के लिए एक स्वस्थ और रचनात्मक दंड

वहीं, कई शिक्षक और शिक्षा विशेषज्ञ यह मानते हैं कि बेंत से पिटाई की जगह बच्चों को रचनात्मक दंड देना चाहिए, जो उनके मानसिक विकास को प्रोत्साहित करें। सेंट पीटर के पूर्व प्रिंसिपल फादर जॉन फरेरा ने इस संदर्भ में योगासन, आलोम-विलोम, या कपाल भाति जैसे शारीरिक अभ्यास को एक स्वस्थ दंड के रूप में सफलतापूर्वक लागू किया। उनका मानना था कि इस तरह के उपाय बच्चों में शांति, एकाग्रता और अनुशासन पैदा करते हैं, जो उन्हें बेहतर तरीके से पढ़ाई करने के लिए प्रेरित करते हैं।

समाज में बढ़ती अनुशासनहीनता और बुरी आदतें

कई शिक्षक मानते हैं कि बच्चों में अनुशासन की कमी के कारण वे बुरी आदतों में लिप्त हो रहे हैं। एक अध्यापिका ने बताया, “बिना दंड के बच्चे इन दिनों बहुत समय पोर्न या अवांछनीय वीडियो देखने में बर्बाद करते हैं, जो उनकी मानसिकता को नुकसान पहुंचाते हैं। इसके अलावा, गुटखा, तम्बाकू सेवन और नशे की आदतें भी बढ़ रही हैं।”

माता-पिता की भी जिम्मेदारी है कि वे बच्चों को सही मार्गदर्शन दें, लेकिन कई बार बहुत सख्त माता-पिता भी बच्चों के गलत व्यवहार को नजरअंदाज कर देते हैं। इस स्थिति में स्कूलों और शिक्षकों की भूमिका और भी महत्वपूर्ण हो जाती है।

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क्या बेंत से पिटाई से अनुशासन में सुधार हो सकता है?

बेंत से पिटाई को लेकर किए गए कुछ अनुसंधान बताते हैं कि शारीरिक दंड का प्रभाव अस्थायी होता है और यह बच्चे के आत्मसम्मान को भी नुकसान पहुंचा सकता है। कई समाजशास्त्रियों और मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि बच्चों के साथ शारीरिक दंड की बजाय उन्हें समझाने, संवाद करने और रचनात्मक दंड देने से बेहतर परिणाम मिल सकते हैं।

आखिरकार, यह सवाल एक जटिल मुद्दा है जिसे सरलता से हल नहीं किया जा सकता। क्या बच्चों को अनुशासन सिखाने के लिए शारीरिक दंड आवश्यक है, या क्या हम आधुनिक और रचनात्मक तरीके अपनाकर बच्चों को जीवन में सफलता की दिशा में आगे बढ़ा सकते हैं? यह तय करना समाज, माता-पिता और शिक्षकों का काम है। शारीरिक दंड के समर्थन में दिए गए तर्क एक ओर जहां अनुशासन की आवश्यकता को बताते हैं, वहीं बच्चों के मानसिक विकास को ध्यान में रखते हुए हमे एक संतुलित दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है।

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Editor in Chief of Agra Bharat Hindi Dainik Newspaper
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