आगरा। विश्वविद्यालय की परीक्षाओं को लेकर ऑल उत्तर प्रदेश टीचर्स एसोसिएशन (औटा) और विश्वविद्यालय आमने-सामने आ गए हैं। विश्वविद्यालय ने ओएमआर शीट पर परीक्षा कराने का निर्णय लिया है, जबकि औटा ने इस प्रक्रिया का असहयोग करने का फैसला किया है। औटा के अध्यक्ष डॉ. पुष्पेंद्र सिंह का कहना है कि विश्वविद्यालय लिखित परीक्षाएं नहीं कराना चाहता, बल्कि पांच करोड़ रुपये का बंदरबांट करना चाहता है।
लिखित परीक्षाओं के खर्च का कोई आडिट नहीं होता
डॉ. पुष्पेंद्र सिंह ने आरोप लगाया कि लिखित परीक्षाओं के खर्च का कोई आडिट नहीं होता और न ही यह स्पष्ट होता है कि परीक्षा में होने वाले खर्च को कैसे प्रबंधित किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि “परीक्षा में होने वाले खर्च का कोई हिसाब नहीं दिया जाता है, जैसे कि पेपर कितने रुपये में छपवाए गए और एजेंसी को कितना भुगतान किया गया।
कुलसचिव प्रो. पीके सिंह का टिप्पणी करने से इंकार
इस आरोप पर विश्वविद्यालय के कुलसचिव प्रो. पीके सिंह ने टिप्पणी करने से इंकार कर दिया। उनका कहना था कि इस विषय पर परीक्षा नियंत्रक ही सही जानकारी दे सकते हैं। जब परीक्षा नियंत्रक से संपर्क करने की कोशिश की गई, तो उन्होंने फोन का जवाब नहीं दिया।
शिक्षक परीक्षाओं में विश्वविद्यालय का नहीं करेंगे सहयोग
औटा के अध्यक्ष ने यह भी कहा कि विश्वविद्यालय का यह बहाना कि नियमित सत्र के लिए ओएमआर शीट पर परीक्षा कराई जा रही है, वास्तव में लिखित परीक्षा के खर्च और एजेंसी को दी जाने वाली फीस को खुर्दबुर्द करने का प्रयास है। उन्होंने स्पष्ट किया कि औटा के शिक्षक इन परीक्षाओं में विश्वविद्यालय का कोई सहयोग नहीं करेंगे, और न ही वे विश्वविद्यालय के युवोत्सव, नैक निरीक्षण या दीक्षांत समारोह में भाग लेंगे।
ओएमआर शीट पर परीक्षा – नकल को बढ़ावा
डॉ. पुष्पेंद्र ने यह भी बताया कि ओएमआर शीट पर परीक्षा कराने का एक और कारण नकल को बढ़ावा देना है। सेल्फ फाइनेंस कॉलेज की लाबी विश्वविद्यालय पर हावी है और वे चाहते हैं कि उनका रिजल्ट अच्छा हो, जिससे अगले सत्र में छात्रों की संख्या बढ़ सके। उन्होंने कहा कि ऑब्जेक्टिव प्रश्नों के उत्तर नकल करना बहुत आसान होता है, और एक शिक्षक एक परीक्षा कक्ष में बोलकर आधे घंटे में पूरा प्रश्नपत्र हल करा सकता है।