आगरा। आगरा के थाना शमशाबाद क्षेत्र के ग्राम हिरनेर निवासी योगेंद्र यादव उर्फ सोनू को अपने पिता नरायन सिंह की हत्या के मामले में अदालत ने बरी कर दिया है। आरोपी ने अपने पिता को उनकी ही पिस्टल से गोली मारकर हत्या की थी, और मामले की जांच के दौरान उसने अज्ञात हत्यारों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराया था। लेकिन सबूतों के अभाव में अपर जिला जज काशीनाथ ने आरोपी की रिहाई के आदेश दिए हैं।
मुकदमा और घटना का विवरण
मामला थाना शमशाबाद के गांव हिरनेर का है, जहां 23 जून 2020 की रात नरायन सिंह (60 वर्ष) अपने घर से बाहर सोने के लिए गए थे। सुबह जब उनका बेटा योगेंद्र यादव घर के बाहर आया, तो उसने अपने पिता को मरे हुए पाया। उनके सिर से खून बह रहा था। वादी ने अज्ञात व्यक्ति के खिलाफ हत्या का मामला दर्ज कराया, और पुलिस ने मामले की जांच शुरू की।
जांच के दौरान पुलिस को पता चला कि नरायन सिंह की हत्या उनके ही पुत्र योगेंद्र यादव ने की थी। आरोपी ने ही अपने पिता की पिस्टल से उन्हें गोली मारी थी। इस बात का खुलासा आरोपी ने पुलिस को दी गई सूचना में किया।
हत्या की वजह और आरोपी का बयान
आरोपी ने पुलिस को बताया कि वह अपने पिता की हत्या करने के लिए मजबूर हुआ था क्योंकि उसकी पत्नी बेबी यादव ने उसके पिता से काफी संपत्ति हड़प ली थी। योगेंद्र यादव ने कहा कि 23 जून को उसके पिता मोबाइल पर किसी महिला से बात कर रहे थे, और इस दौरान वह यह कह रहे थे कि वह उस महिला के नाम पर प्लॉट खरीद रहे हैं और 15 लाख रुपये का आलू बेचकर उसे पैसे देंगे।
इससे नाराज होकर योगेंद्र ने पिता की पिस्टल से उन्हें गोली मार दी। पुलिस ने आरोपी की निशानदेही पर शंकरपुर पोखर से हत्या में इस्तेमाल की गई पिस्टल बरामद की थी।
गवाहों के मुकरने और सबूतों की कमी
इस मामले में अभियोजन ने 11 गवाहों को अदालत में पेश किया था, लेकिन मृतक के भाई और भतीजे गवाही देने से मुकर गए, जिससे मामले में महत्वपूर्ण सबूतों की कमी हो गई। आरोपी के अधिवक्ता नरेंद्र सिंह परिहार ने अदालत में तर्क दिया कि सबूतों के अभाव में आरोपी को दोषी ठहराना मुश्किल है।
अंत में, अदालत ने सबूतों की कमी और गवाहों के मुकरने के बाद आरोपी योगेंद्र यादव उर्फ सोनू को बरी कर दिया। अदालत ने आदेश दिया कि आरोपी को रिहा किया जाए क्योंकि हत्या के आरोपों को साबित करने के लिए पर्याप्त साक्ष्य नहीं थे।
पिता की हत्या के मामले में आरोपी को बरी कर दिया गया है, और यह घटना एक बार फिर यह साबित करती है कि जब तक आरोपियों के खिलाफ ठोस और पर्याप्त साक्ष्य न हों, तब तक उन्हें सजा नहीं दी जा सकती। अदालत ने इस मामले में कानूनी प्रक्रिया का पालन करते हुए आरोपी को रिहा करने का निर्णय लिया।