दिल्ली विधानसभा में आरक्षित सीटों का दबदबा: 1993 से 2020 तक का ट्रैक रिकॉर्ड और 2025 चुनाव में किसका पलड़ा भारी?

Deepak Sharma
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दिल्ली विधानसभा में आरक्षित सीटों का दबदबा: 1993 से 2020 तक का ट्रैक रिकॉर्ड और 2025 चुनाव में किसका पलड़ा भारी?

दिल्ली विधानसभा चुनाव में आरक्षित सीटों का अहम रोल, 1993 से लेकर 2020 तक के चुनावों का ट्रैक रिकॉर्ड और 2025 चुनाव में दलित वोटों पर किस पार्टी का दबदबा होगा। जानें पूरी जानकारी!

दिल्ली विधानसभा चुनाव 2025 के करीब आते ही सियासी तापमान और बढ़ता जा रहा है। कांग्रेस और बीजेपी जहां दिल्ली की सत्ता में वापसी के लिए बेचैन हैं, वहीं आम आदमी पार्टी चौथी बार सत्ता अपने नाम करने की जंग लड़ रही है। तीनों दल अपने-अपने सियासी और जातीय समीकरणों को सेट करने में जुटे हैं, लेकिन दिल्ली की सत्ता का रास्ता हमेशा उन आरक्षित सीटों से होकर ही निकला है, जो अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हैं। इस बार भी सभी की निगाहें इन 12 आरक्षित सीटों पर हैं, जो पिछले तीन दशकों से सत्ता की दिशा तय करती रही हैं।

दिल्ली में 12 आरक्षित सीटें

दिल्ली विधानसभा की कुल 70 सीटों में से 12 सीटें अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हैं। इन सीटों में मंगोलपुरी, मादीपुर, सीमापुरी, त्रिलोकपुरी, सुल्तानपुर माजरा, गोकुलपुर, बवाना, पटेल नगर, कोंडली, अंबेडकर नगर, देवली और करोलबाग विधानसभा सीटें शामिल हैं। इन सीटों पर दलित समाज के उम्मीदवार ही चुनाव लड़ सकते हैं और इनकी जीत अक्सर दिल्ली की सत्ता की दिशा तय करती है। इन 12 सीटों पर जिस पार्टी को बहुमत मिलता है, वही दिल्ली में सरकार बनाने में सफल रही है।

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1993 से 2020 तक: आरक्षित सीटों का ट्रैक रिकॉर्ड

दिल्ली के चुनावी इतिहास में 1993 से 2020 तक आरक्षित सीटों ने सत्ता को सुरक्षित किया है।

कांग्रेस की सत्ता की हैट्रिक

कांग्रेस पार्टी ने 1998 से लेकर 2008 तक लगातार तीन बार दिल्ली में सरकार बनाई थी। 1998 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने आरक्षित 12 सीटों में से सभी सीटों पर जीत हासिल की थी, जबकि बीजेपी और बसपा जैसी पार्टियां एक भी सीट नहीं जीत पाई थीं। 2003 और 2008 के चुनावों में भी कांग्रेस ने अधिकांश आरक्षित सीटों पर जीत दर्ज की थी। कांग्रेस की इस जीत में आरक्षित सीटों का अहम योगदान था।

आम आदमी पार्टी की क्लीन स्वीप

आम आदमी पार्टी (आप) ने 2013, 2015 और 2020 में दिल्ली की सत्ता पर कब्जा जमाया है। 2013 के चुनाव में आप ने 28 सीटों के साथ सरकार बनाई थी, जिसमें से 9 आरक्षित सीटों पर उसकी जीत हुई थी। 2015 और 2020 के विधानसभा चुनावों में आम आदमी पार्टी ने आरक्षित 12 सीटों पर पूरी तरह से जीत हासिल की थी। 2020 में आप ने 62 सीटों के साथ सत्ता में वापसी की थी, जिसमें सभी आरक्षित सीटों पर उसकी जीत हुई थी। इस तरह, आम आदमी पार्टी ने लगातार दो बार आरक्षित सीटों पर क्लीन स्वीप किया।

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बीजेपी की एकमात्र सरकार

बीजेपी ने दिल्ली में केवल एक बार 1993 में सरकार बनाई थी। इस बार दिल्ली विधानसभा में 13 सीटें अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित थीं, जिसमें बीजेपी ने 8 सीटों पर जीत दर्ज की थी। इस जीत के बाद बीजेपी ने दिल्ली में सरकार बनाई और मदनलाल खुराना मुख्यमंत्री बने।

2025 के चुनाव में क्या होगा आरक्षित सीटों का खेल?

दिल्ली में दलित वोटरों की अहमियत सिर्फ आरक्षित सीटों तक सीमित नहीं है, बल्कि ये वोटर अन्य सीटों पर भी असर डालते हैं। दिल्ली में दलित समाज का वोट प्रतिशत 17% से लेकर 45% तक हो सकता है। इसके चलते बीजेपी और कांग्रेस इस बार दलित मतदाताओं को अपनी ओर खींचने के लिए गंभीर कोशिशें कर रही हैं।

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बीजेपी ने अपने दलित कार्यकर्ताओं के जरिए झुग्गियों और अनधिकृत कॉलोनियों में संपर्क अभियान चलाया है। बीजेपी का लक्ष्य दलित वोटरों को अपनी ओर खींचना है। वहीं कांग्रेस भी सामाजिक न्याय के नारे के तहत दलित समुदाय में अपनी पैठ बनाने की कोशिश कर रही है। दूसरी ओर, आम आदमी पार्टी भी अपनी पिछले दो चुनावों की जीत को बरकरार रखना चाहती है और इसके लिए दलित समाज के दिलों को जीतने के प्रयास में जुटी है।

दिल्ली में आरक्षित सीटों का चुनावी इतिहास यह दर्शाता है कि यहां दलित समाज की भूमिका सत्ता के निर्धारण में महत्वपूर्ण रही है। 2025 के विधानसभा चुनाव में इन सीटों का नतीजा न केवल दिल्ली की सत्ता के भविष्य को निर्धारित करेगा, बल्कि यह भी तय करेगा कि कौन सी पार्टी दलित वोटों को अपनी ओर खींचने में सफल रहती है।

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