एटा, अलीगंज: एटा के अलीगंज स्थित गौतम बुद्ध इंटर कॉलेज में चल रहा विवादास्पद निर्माण कार्य अब राजनीतिक रंग लेना शुरू कर चुका है. कॉलेज की जमीन पर बने शैक्षणिक कक्षों को ध्वस्त कर वहां व्यावसायिक दुकानों का निर्माण किया जा रहा है, जिसे लेकर क्षेत्र में विरोध के स्वर तेज हो गए हैं. यह मामला अब समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष और नेता प्रतिपक्ष अखिलेश यादव तक पहुंचने की तैयारी में है.
स्थानीय लोगों का आरोप है कि जिस शिक्षण संस्थान की नींव समाजसेवी डॉ. मुंशीलाल शाक्य ने शिक्षा और सामाजिक सेवा के नेक उद्देश्य से रखी थी, उसे अब कुछ प्रभावशाली तत्वों द्वारा व्यावसायिक लाभ के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है. उनका कहना है कि जहां कक्षाएं बच्चों को भविष्य की दिशा मिलती थी, अब उनकी जगह पक्की दुकानों की दीवारें खड़ी की जा रही हैं. इसे वे ‘शिक्षा की हत्या’ बता रहे हैं.
शिक्षा की आड़ में मुनाफे का खेल!
कॉलेज प्रबंधन द्वारा किए जा रहे इस निर्माण कार्य को लेकर क्षेत्र में गहरी नाराजगी है. लोगों का आरोप है कि यह पूरी कार्रवाई नियमों को ताक पर रखकर की जा रही है. सूत्रों के अनुसार, इस मामले में भारी भरकम निवेश किया गया है, और करोड़ों रुपये के लेन-देन की भी चर्चाएं जोरों पर हैं.
राजनीतिक हलकों में हलचल, अखिलेश यादव से लगाई गुहार
इस प्रकरण पर विरोध करने वाले स्थानीय लोगों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने अब इस मुद्दे को समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष और उत्तर प्रदेश विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष अखिलेश यादव के समक्ष उठाने का मन बनाया है. उनका कहना है कि जब सरकार शिक्षा की नींव को कमजोर करने वालों पर चुप्पी साधे बैठी है, तब विपक्ष को इसकी आवाज बनना चाहिए.
विरोध करने वालों की नजरें अब अखिलेश यादव पर टिकी हैं. क्षेत्र के लोग पूर्व मुख्यमंत्री और नेता प्रतिपक्ष से उम्मीद कर रहे हैं कि वे इस मामले को विधानसभा के सदन से लेकर सड़क तक उठाएं, ताकि इस “शैक्षणिक हत्या” को रोका जा सके और गौतम बुद्ध इंटर कॉलेज अपने मूल शैक्षिक स्वरूप में लौट सके.
प्रशासन की चुप्पी पर सवाल
इस पूरे मामले पर प्रशासन की ओर से अब तक कोई आधिकारिक बयान सामने नहीं आया है. हालांकि, बढ़ते जनदबाव और संभावित राजनीतिक हस्तक्षेप को देखते हुए माना जा रहा है कि आने वाले दिनों में प्रशासन को इस मामले में हरकत में आना ही पड़ेगा.
अब देखना यह है कि क्या नेता प्रतिपक्ष इस आवाज को बल देंगे और क्या यह शिक्षा का मंदिर अपने मूल स्वरूप में लौट पाएगा, या व्यावसायिक हितों के आगे शिक्षा का बलिदान हो जाएगा?