मथुरा. पंडित टीकाराम पुजारी पुत्र श्री मोहन दास उर्फ उधोदास मथुरा जनपद के लोक कवि लोक गायक लोक सेवक होने के साथ-साथ स्वतंत्रता आंदोलन के सच्चे सिपाही थे। उनकी धारदार लेखनी से लिखें वीर रस के गीत आजादी की लड़ाई में स्वतंत्रता के तराने बनकर गूंजे थे। वे धूल से उठकर आसमान तक छा गए पर उन्होंने अपने लोगों को कभी नहीं भुलाया। वे सादगी सच्चाई और कर्मठ की सच्चाई प्रतिभूति थे। श्री टीकाराम पुजारी का जन्मतिथि – 20 नवंबर1893 वैष्णव ब्राह्मण परिवार जिला मथुरा ऊंचागांव-रसमई तहसील सादाबाद पूर्व जिला मथुरा वर्तमान जिला हाथरस उत्तर प्रदेश। में हुआ था। उन्होंने बृज भाषा साहित्य का गहन अध्ययन किया था। इसके बाद भी रस के वाक्य आल्हा खंड तथा नल दमयंती पर अपनी रचनाएं लिखने लगे, अल्पकाल में ही बढ़ी लोकप्रियता भी प्राप्त कर ली। उनके गायन सुनने के लिए लोग दूर-दूर से आते थे, लोक गायक के रूप में वे अपने हाव-भाव से ऐसा दृश्य उपस्थित करते थे मानो घटना प्रत्यक्ष ही घट रही हो। इन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन नमक सत्याग्रह आंदोलन में भाग लेने के कारण सन 1930 में 6 महीने का कारावास और 1932 में 1 वर्ष की कैद पाई तथा व्यक्तिगत सत्याग्रह आंदोलन में सन 1941 में 1 वर्ष की कैद और ₹200 जुर्माना की सजा पाई वह भारत छोड़ो आंदोलन में सन् 1942 में नजरबंद किए गए थे वह आजादी के बाद भारत-पाक 1965 के युद्ध में भारत सरकार को धनराशि का सहयोग दिया था पुजारी के अलावा उनके परिवार में 1 दर्जन से अधिक सदस्यों को भी आंदोलन में भाग लेने कारण सजा भुगतनी पढ़ी थी। श्रीमती खेम कुमारी पत्नी टीकाराम पुजारी ने 1932 में सविनय अवज्ञा आंदोलन में भाग लेने कारण 3 महीने का कारावास और 25 रुपए के जुर्माने की पाएगी। श्री गिरवर दास पुत्र मोहनदास ने सत्याग्रह आंदोलन में भाग लेने के कारण 1941 में 1 वर्ष की जेल और ₹100 जुर्माने की सजा पाई। चंदला उर्फ चंद्रभान पुत्र मोहन दास ने 1932 मे सजा पाई। श्री मुंशी पुत्र टीकाराम पुजारी ने 1933 मे 6 महीने की सजा पाई। श्री बाबूलाल शर्मा पुत्र टीकाराम ने पूर्वी राज्य हैदराबाद आर्य समाज आंदोलन सन 1938-39 में भाग लेने के कारण एक – एक वर्ष की सजा पाई। हरीवल्लभ पुजारी पुत्र गंगाराम उर्फ टीकाराम पुजारी ने सन 1941 में भारत रक्षा कानून की धारा 38 के अंतर्गत 1 वर्ष की कैद और ₹50 जुर्माने की सजा पाई। श्रीमती हरभेजी जी पुत्रवधू टीकाराम पुजारी ने सविनय अवज्ञा आंदोलन में भाग लेने के कारण सन 1932 में 6 महीने का कारावास की सजा पाई। श्री नारायण प्रसाद पुजारी ने 1932 में कारावास की सजा पाई। श्रीमती कलावती पुत्री टीकाराम पुजारी ने 1932 के आंदोलन में 1 वर्ष की आयु में अपनी माता खेम कुमारी के साथ गोद में 3 महीने का कारावास की सजा काटी थी। टीकाराम पुजारी की अंतिम इच्छा थी। कि उनके परिवार को राष्ट्रीय परिवार घोषित किया जाए। पुजारी जी के जनसंपर्क का मुख्यतय उनके लोकगीत एवं रचनाएं रही। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद पुजारी जी को सन 1957 में विधानसभा क्षेत्र सादाबाद से विधायक बनने का गौरव प्राप्त हुआ। उस समय सादाबाद के नवाब कुंवर अशरफ अली और पुजारी जी की विधानसभा के चुनाव में कांटे की टक्कर रही थी। “बूढ़ों बाबा आवेगो। कार कहां से लावेगो।। जापे हत नाय इतने नोट। बरी कू हस हस दियो वोट।।”पुजारी जी का चुनाव चिन्ह बरी (बरगद) का पेड़ था। इस चुनाव में मे भारी बहुमत से विजयी हुए थे। वे हर त्योहारों और उत्सवों में पूरे गांव के कमज़ोर, निर्धन लोगों की सुध लेते थे, वे घर-घर जा कर देखते थे, कही किसी का चूल्हा भुजा तो नहीं है। उनकी एक बड़ी महानता थी। पुजारी जी जाति भेदभाव नहीं मानते थे उनके गायन में साथ देने वाले दो-तीन साथियों में एक अनुसूचित जाति के थे। जब सुबह सूरज की किरण अपनी अनोखी कलाओं का प्रदर्शन कर रही थी, उस समय पुजारी जी की मढ़ी का दरबार फूलों और कलियों से महक रहा होता था। वह प्रतिदिन सुबह बगीचे मे खुरपी ले कर स्वयं निराई गुड़ाई करते थे। तिथि 31 अक्टूबर1972 को लगभग 80 वर्ष की अवस्था में स्वर्गवास हुआ था।