आगरा: सुप्रीम कोर्ट द्वारा आरक्षण के संबंध में पारित एक आदेश के विरोध में 2 अप्रैल 2018 को हुए भारत बंद के दौरान रेल मार्ग बाधित करने के आरोप में 16 आरोपियों को साक्ष्य के अभाव में बरी कर दिया गया है. अपर जिला जज अमरजीत ने इन आरोपियों को बरी करने का आदेश दिया. इन आरोपियों पर बारह खम्बा पर कर्नाटका एक्सप्रेस को रोककर साढ़े नौ घंटे तक रेल मार्ग बाधित करने का आरोप था.
सुप्रीम कोर्ट के आरक्षण संबंधी आदेश के विरोध में 2 अप्रैल 2018 को सोशल मीडिया पर भ्रामक पोस्ट डाले गए थे, जिसके बाद शहर में सुनियोजित तरीके से हजारों लोगों की भीड़ जिला मुख्यालय, रेलवे स्टेशनों और अन्य सरकारी प्रतिष्ठानों पर विरोध प्रदर्शन करने के लिए पहुँच गई थी. भीड़ में शामिल कई लोगों को यह भी नहीं पता था कि सुप्रीम कोर्ट ने वास्तव में क्या आदेश दिया है और उस आदेश का उन पर कोई प्रभाव पड़ेगा भी या नहीं.
इसी भीड़ में से हजारों लोग बारह खम्बा ओवर ब्रिज पर पहुंचे और दोनों रेलवे ट्रैक पर गर्डर आदि डालकर कर्नाटका एक्सप्रेस को रोक दिया, जिससे साढ़े नौ घंटे तक रेल यातायात बाधित रहा. आरोपियों पर पटरियों की चाबी निकालकर उन्हें उखाड़ देने का भी आरोप था.
सूचना मिलने पर मजिस्ट्रेट और पुलिस बल ने मौके पर पहुंचकर उपद्रवियों को समझा-बुझाकर मुश्किल से रेलवे ट्रैक से हटाया था. इस मामले में 2 अप्रैल 2018 को तत्कालीन प्रभारी निरीक्षक अश्वनी कौशिक द्वारा अज्ञात आरोपियों के विरुद्ध भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 147 (बलवा), 151 (उपद्रव) और रेलवे एक्ट की धारा 150 के तहत थाना जीआरपी आगरा कैंट में मुकदमा दर्ज कराया गया था.
मुकदमे की विवेचना के बाद विवेचक द्वारा अलग-अलग जगहों के रहने वाले 16 आरोपियों – मोनू, आकाश, लक्की, प्रदीप, ब्रजेश, रूपेश, पंकज, रजत कुमार, कुलदीप, सन्नी दिवाकर, जितेंद्र, हेमंत कुमार, विनोद, मनतेश, आकाश और जितेंद्र के विरुद्ध अदालत में आरोप पत्र प्रस्तुत किया गया था.
अभियोजन पक्ष की ओर से वादी मुकदमा निरीक्षक अश्वनी कौशिक, सीनियर सेक्शन इंजीनियर राजकुमार मौर्य, निरीक्षक सुखवीर सिंह, एसआई प्रीतम सिंह, एचसी गंगा राम मीणा, एसआई गजेंद्र सिंह और अजीत बालियान को अदालत में गवाह के तौर पर पेश किया गया.
हालांकि, अपर जिला जज 26 अमरजीत ने गवाहों के बयानों में आरोपियों के विरुद्ध आरोपों की पुष्टि नहीं होने, पटरी उखाड़ने के उपकरण आदि की बरामदगी नहीं होने, घटना की कोई वीडियोग्राफी नहीं होने और स्वतंत्र गवाह के अभाव के चलते सभी आरोपियों को बरी करने का आदेश दिया. आरोपियों की ओर से मुकदमे की पैरवी अधिवक्ता रमेश चंद्रा ने की.