आगरा। 15 वर्षों बाद 75 वर्षीय जदुवीर सिंह को चाचा की हत्या के आरोप से बरी कर दिया गया है। इस मामले में अदालत ने डॉक्टर की गवाही और अधिवक्ता के तर्कों को स्वीकार करते हुए आरोपी को साक्ष्य के अभाव में बरी कर दिया। यह मामला एक जमीनी विवाद से जुड़ा हुआ था, जिसमें आरोप था कि जदुवीर सिंह ने अपने चाचा अजमेर सिंह की हत्या कर साक्ष्य नष्ट कर दिए थे।
घटना का विवरण
यह घटना जनवरी 2009 की है, जब वादी मुकदमा चंद्रभान ने थाने में तहरीर दी थी कि उनके मामा अजमेर सिंह 15/16 जनवरी की रात अचानक गायब हो गए थे। इसके बाद पूरे इलाके में उनकी खोजबीन की गई, लेकिन 9 दिन बाद म्रतक का शव मल्लका पुरा के जंगल में खाद के बोरे में चादर में बंधा हुआ मिला। वादी ने शक जताया कि इस हत्या के पीछे उनके भतीजे जदुवीर सिंह और लक्ष्मी कांत का हाथ है।
अदालत की सुनवाई और डॉक्टर की गवाही
अदालत में अभियोजन पक्ष ने दस गवाहों को पेश किया, जिनमें घटना के प्रत्यक्षदर्शी रघुराज सिंह और जुग राज सिंह के बयान भी शामिल थे। इन गवाहों ने आरोपी को घटना से पहले और बाद में देखे जाने का दावा किया। लेकिन आरोपी के वरिष्ठ अधिवक्ता दुर्ग विजय सिंह ने तर्क दिया कि मृतक का पोस्टमार्टम करने वाले डॉक्टर धर्मेंद्र सिंह ने अपनी गवाही में कहा कि मृतक की मौत तीन दिन पहले नहीं हो सकती।
इसके अलावा, यह भी सामने आया कि मृतक के भतीजे जदुवीर सिंह और लक्ष्मी कांत को घटना के दौरान सिर पर बोरा लेकर जाते हुए देखा गया था, लेकिन वादी की एफआईआर में यह जानकारी सही नहीं थी। चंद्रभान ने दावा किया था कि उनके मामा 15/16 जनवरी की रात गायब हुए थे, जो कि पूरी तरह से सही साबित नहीं हुआ।
अदालत का फैसला
अपर जिला जज परवेज अख्तर ने मामले की गंभीरता को समझते हुए गवाही और साक्ष्य के अभाव में जदुवीर सिंह को बरी कर दिया। अदालत ने यह भी माना कि इस मामले में परिस्थितिजन्य साक्ष्य का अभाव था, और वादी के द्वारा प्रस्तुत किए गए सभी बयानों और तर्कों को साक्ष्य के रूप में स्वीकार नहीं किया जा सकता था।
अदालत ने कहा कि 75 वर्षीय जदुवीर सिंह के खिलाफ कोई ठोस साक्ष्य नहीं मिले, जिसके आधार पर उन्हें दोषी ठहराया जा सके। इस मामले की सुनवाई में अभियोजन पक्ष की तरफ से कोई सटीक प्रमाण पेश नहीं किया गया, जिसके कारण आरोपी को हत्या के आरोप से बरी कर दिया गया।
न्यायिक प्रक्रिया और भविष्य के प्रभाव
यह मामला न केवल जमीनी विवाद से जुड़ा था, बल्कि यह न्यायिक प्रक्रिया और जांच के तरीके पर भी सवाल खड़ा करता है। पुलिस और जांच एजेंसियों को अदालत के फैसले के बाद अधिक सतर्क रहने की आवश्यकता है, ताकि इस तरह के मामलों में सही साक्ष्य और तर्कों के आधार पर न्याय मिल सके।
अदालत के फैसले के बाद आरोपी जदुवीर सिंह को राहत मिली है, लेकिन इस मामले में शामिल सभी पक्षों को यह संदेश गया है कि न्याय प्रक्रिया में साक्ष्य और सही तर्कों का बहुत बड़ा महत्व है।