गोकुलपुरा के गणगौर मेले में प्राचीन परंपरा की झलक, हर गली में दिखी रौनक

Rajesh kumar
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गोकुलपुरा के गणगौर मेले में प्राचीन परंपरा की झलक, हर गली में दिखी रौनक

आगरा: पारिवारिक सौहार्द, प्रेम और आस्था का पर्व जब सामूहिक रूप लेता है, तो वह महापर्व बन जाता है। आगरा के गोकुलपुरा क्षेत्र में सोमवार को इसी महापर्व के ऐतिहासिक गणगौर मेले का शुभारंभ हुआ, जो सदियों से इस क्षेत्र की प्राचीन परंपरा का हिस्सा रहा है। चैत्र नवरात्र की तृतीया से शुरू हुए इस दो दिवसीय मेले की शुरुआत पारंपरिक रीतियों और जोश के साथ हुई।

गणगौर मेले का शुभारंभ और आकर्षक शोभायात्राएं

गणगौर मेले में इस वर्ष तीन दर्जन से अधिक गणगौर के जोड़े सजाए गए हैं। रात में इन जोड़ों की शोभायात्रा निकाली गई, जिसमें ढोल-नगाड़े और भक्तिमय गानों के साथ इलाके की गलियां जगमगाईं। पूरी गोकुलपुरा क्षेत्र विद्युत झालरों से सज गया है, जो इस ऐतिहासिक मेले की रौनक को दोगुना कर रहा है।

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इस अवसर पर विधानसभा सदस्य विजय शिवहरे, भाजपा जिलाध्यक्ष प्रशांत पौनिया और प्रमुख समाजसेवी पं. दिनेश चंद्र शर्मा की उपस्थिति में दीप जलाकर इस आयोजन का शुभारंभ किया गया। मेले के उद्घाटन में मुख्य रूप से श्री गणगौर मेला कमेटी के अध्यक्ष रामकुमार कसेरा, महामंत्री मनीष वर्मा, कोषाध्यक्ष सुनील वर्मा और अन्य सदस्य उपस्थित रहे। विधायक विजय शिवहरे ने इस अवसर पर स्थानीय जनता से अपील की कि वे इस तरह की परंपराओं को जीवित रखें, क्योंकि गणगौर मेला हमारी संस्कृति और परंपरा का प्रतीक है।

मेला क्षेत्र में लगभग 250 स्टाल्स और सांस्कृतिक कार्यक्रम

मेले के क्षेत्र में लगभग 250 स्टाल्स लगाए गए हैं, जिसमें विभिन्न धार्मिक, सांस्कृतिक और पारंपरिक वस्तुओं की बिक्री हो रही है। अशोक नगर, गोकुलपुरा, राजामंडी, कंसगेट, बल्का बस्ती और मंसा देवी जैसे प्रमुख क्षेत्रों में गणगौर के जोड़े सजाए गए हैं। इस दौरान, 32 जोड़ों को शोभायात्रा के माध्यम से ढोल-नगाड़ों के साथ हटकेश्वर मंदिर तक जल ग्रहण के लिए ले जाया गया, जहां भजन संध्या और सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए गए। मिताई गौर मंडल के गायकों ने अपनी स्वरलहरियों से इस आयोजन को और भी भक्तिमय बना दिया।

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गणगौर मेले का ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व

गणगौर मेला विशेष रूप से महिलाओं के लिए महत्वपूर्ण होता है और यह पर्व देवी पार्वती की सौभाग्य और समृद्धि की कामना से जुड़ा हुआ है। यह पर्व शिव और पार्वती के पुनर्मिलन का प्रतीक है, जिसे लेकर लोग विशेष आस्था और श्रद्धा के साथ यह पर्व मनाते हैं। यह पर्व पारंपरिक रूप से महिलाएं अपने सौभाग्य के लिए मनाती हैं और खासकर शादीशुदा महिलाएं इस दिन उपवासी रहती हैं।

भस्मासुर दहन की सदियों पुरानी परंपरा

गणगौर मेले में भस्मासुर दहन की परंपरा लगभग तीन सदियों पुरानी है। हर साल एक अप्रैल को धनकामेश्वर मंदिर में भस्मासुर के 15 फुट ऊंचे पुतले का दहन किया जाता है, जो पौराणिक कथा पर आधारित है। भस्मासुर की कहानी भगवान शिव से जुड़ी है, जिन्होंने भस्मासुर को वरदान दिया था कि वह जिस किसी के सिर पर हाथ रखेगा, वह भस्म हो जाएगा। भस्मासुर के दुरुपयोग को रोकने के लिए भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप में उसे नष्ट कर दिया था। इस प्रतीकात्मक रूप से भस्मासुर का पुतला जलाया जाता है।

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व्यवस्थाओं में इनका था योगदान

गणगौर मेले की व्यवस्था में श्री गणगौर मेला कमेटी के अध्यक्ष रामकुमार कसेरा, महामंत्री मनीष वर्मा, कोषाध्यक्ष सुनील वर्मा, वरिष्ठ उपाध्यक्ष नरेंद्र वर्मा, संयोजक अमन वर्मा, उपाध्यक्ष ललित शर्मा, और अन्य कई सदस्य सक्रिय रूप से शामिल रहे। कमेटी ने मेले की व्यवस्था संभालने के लिए चार स्वयंसेवी टीमों का गठन किया था, जिनमें प्रत्येक टीम में 15 सदस्य शामिल थे।

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