इस घटनाक्रम के बाद सरकारी स्तर पर जस्टिस गिरधर मालवीय आयोग का गठन किया गया था, जिसने घटना की जांच की थी और रिपोर्ट भी दाखिल की थी। हालांकि, अब तक लाठीचार्ज के दोषी पुलिस अधिकारियों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई है और न ही किसी अधिकारी को बरखास्त किया गया।
हाल ही में यह जानकारी सामने आई कि पुलिस ने अपनी गलतियों को छुपाने के लिए अधिवक्ताओं के खिलाफ खुद ही मुकदमा दर्ज कर दिया। थाना न्यू आगरा पर 593A/2001 अपराध संख्या के तहत पुलिस ने एक झूठा मामला दर्ज किया और अधिवक्ताओं के खिलाफ आरोप पत्र माननीय न्यायालय में दाखिल कर दिया। हालांकि, यह पूरी घटना इसी पुलिस कार्रवाई की निंदा करती है, क्योंकि लाठीचार्ज में खुद अधिवक्ता घायल हुए थे, और उल्टा उन्हीं पर झूठे आरोप लगाए गए।
जनमंच द्वारा बैठक का आयोजन
इस पूरी स्थिति के खिलाफ आज आगरा में जनमंच द्वारा एक महत्वपूर्ण बैठक का आयोजन किया गया। बैठक में अधिवक्ताओं ने पुलिस की इस कार्यवाही की कड़ी निंदा की और इसे एक बड़ा अन्याय बताया। बैठक में निर्णय लिया गया कि इस मामले में सभी बार एसोसियेशनों के अध्यक्ष और महामंत्रीयों के साथ एक बैठक आयोजित की जाएगी, ताकि पीड़ित अधिवक्ताओं को न्याय दिलाने के लिए एक मजबूत रणनीति बनाई जा सके।
यह बैठक आगामी 22 नवम्बर 2024 को आयोजित की जाएगी, जिसमें सभी प्रमुख बार एसोसियेशनों और पीड़ित अधिवक्ताओं की उपस्थिति में मामले पर विचार-विमर्श किया जाएगा।
कार्यक्रम की अध्यक्षता और संचालन
इस कार्यक्रम की अध्यक्षता जनमंच के अध्यक्ष चौ. अजय सिंह ने की, जबकि संचालन पवन कुमार गुप्ता ने किया। बैठक में प्रमुख रूप से पीड़ित अधिवक्ता प्रताप सिंह, आगरा एडवोकेट एसोसिएशन के महामंत्री फूल सिंह चौहान, अमर सिंह कमल, उदयवीर सिंह, बंगाली बाबू शर्मा, सत्यप्रकाश शर्मा, सतीश कुमार शाक्य, चौ. विशाल सिंह, श्यामसुंदर उर्फ प्रशान्त सिकरवार, अशोक दीक्षित, हरीओम दीक्षित, जसंवत सिंह राना, सुभाष बाबू, सुनील कुमार, चन्द्रभान निर्मल, शिव कुमार सैनी, सुरेन्द्र कुमार, सुरेन्द्र सिंह त्यागी, रामबाबू सिसौदिया, चन्दन सिंह, शिव सिंह राघव, लाखन सिंह, खुबीराम कमलेश, लोकेश चौधरी, कुनाल शर्मा, शमी, इदेश कुमार यादव आदि उपस्थित रहे।
अधिवक्ताओं का आक्रोश
बैठक में अधिवक्ताओं ने यह स्पष्ट किया कि 26 सितम्बर 2001 को हुई लाठीचार्ज की घटना को वे हर साल काले दिवस के रूप में मनाते आए हैं, लेकिन अब तक किसी भी संगठन ने इस मामले में ठोस कदम नहीं उठाया है। इस पर सभी ने निंदा प्रस्ताव पारित किया और पुलिस की कार्यप्रणाली को अव्यवस्थित और न्यायिक प्रक्रिया के खिलाफ बताया।
न्याय की उम्मीद
आधिकारिक तौर पर जनमंच ने यह निर्णय लिया है कि यदि जल्द ही इस मामले का निष्पक्ष समाधान नहीं किया गया, तो अधिवक्ता समाज को न्याय दिलाने के लिए सड़कों पर उतरने के लिए मजबूर किया जाएगा। उन्होंने कहा कि इस मामले में जिन पुलिस अधिकारियों ने बर्बरता की है, उनके खिलाफ कठोर कार्रवाई की जाए, ताकि भविष्य में इस तरह के कृत्य की पुनरावृत्ति न हो।