आगरा: अपहरण, सामूहिक दुराचार और पॉक्सो एक्ट में 6 आरोपी बरी, अदालत ने साक्ष्य के अभाव में दिया निर्णय

MD Khan
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आगरा: आगरा की विशेष अदालत ने अपहरण, सामूहिक दुराचार और पॉक्सो एक्ट के मामले में 6 आरोपियों को साक्ष्य के अभाव में बरी कर दिया है। इन आरोपियों पर एक 13 वर्षीय लड़की को अपहरण कर सामूहिक दुराचार करने का आरोप था। हालांकि, पीड़िता ने अपनी गवाही में आरोपियों के खिलाफ कोई साक्ष्य नहीं पेश किया, जिसके कारण अदालत ने उन्हें बरी करने का आदेश दिया।

मामले की पृष्ठभूमि

यह मामला 16 फरवरी 2015 का है, जब वादी मुकदमा ने थाना सिकंदरा में तहरीर देकर आरोप लगाया था कि उसकी 13 वर्षीय पुत्री शौच के लिए बाहर गई थी, उसी दौरान आरोपी आनंद, बबलू, सत्यप्रकाश, नरेश, राकेश और गगन ने मिलकर उसे बहला-फुसलाकर भगा लिया था। आरोप के अनुसार, आरोपी उसे अपहरण कर ले गए थे और उसके साथ सामूहिक दुराचार किया था।

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आरोपियों की स्थिति

इस मामले में आरोपी आनंद ने 15 जनवरी 2016 को अपना जुर्म स्वीकार कर लिया था और उसे तत्कालीन अदालत ने 20 वर्ष की सजा और 30 हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया था। लेकिन यह मामला तब उलझा जब पीड़िता ने अदालत में अपने बयान में आनंद पर कोई आरोप नहीं लगाया था।

पीड़िता की गवाही और साक्ष्य

अदालत में पीड़िता की गवाही के बाद यह साफ हो गया कि उसने 164 दंड प्रक्रिया संहिता के तहत अपने बयान में कोई आरोप नहीं लगाया था। इसके साथ ही, 20 फरवरी 2015 को पीड़िता का मेडिकल परीक्षण हुआ, जिसमें उसने यह स्वीकार किया कि वह अपनी मर्जी से आरोपी आनंद के साथ गई थी और उसके साथ शारीरिक संबंध भी बनाए थे।

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साक्ष्य की कमी और पीड़िता के बयान में विरोधाभास को देखते हुए अदालत ने यह माना कि भारतीय परिवेश में यह संभावना नहीं है कि कोई व्यक्ति अपने पिता और भाई के सामने किसी लड़की के साथ इस तरह की जघन्य घटना को अंजाम दे सकता है।

अदालत का निर्णय

विशेष न्यायाधीश पॉक्सो एक्ट, दिनेश कुमार चोरिसिया ने मामले की गहराई से सुनवाई के बाद साक्ष्य के अभाव में सभी छह आरोपियों को बरी कर दिया। अदालत ने वादी मुकदमा और पीड़िता सहित छह गवाहों की गवाही को भी नकारते हुए आरोपियों के पक्ष में फैसला सुनाया। आरोपियों के वकील जनक कुमारी और पंकज यादव ने अदालत में तर्क प्रस्तुत किए थे कि इस मामले में साक्ष्य की भारी कमी थी और आरोपों में कोई ठोस प्रमाण नहीं थे, जिससे आरोपियों के खिलाफ कोई ठोस आरोप नहीं बनता।

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