आगरा: आगरा जिले के अछनेरा स्थित तीन सौ वर्ष पुराना नरसिंह भगवान मन्दिर की समिति को अदालत ने भंग कर दिया है। इस ऐतिहासिक मन्दिर का निर्माण भरतपुर के राजा सूरज मल द्वारा किया गया था। अदालत ने मन्दिर से संबंधित संपत्ति के विक्रय और पुनर्निर्माण पर रोक लगा दी और एसडीएम किरावली को आदेश दिया कि वह तीन माह के अंदर नई समिति गठित करें और अदालत को कार्यवाही से अवगत कराएं।
मन्दिर का ऐतिहासिक महत्व
मोहल्ला रठिया, अछनेरा, तहसील किरावली में स्थित यह मन्दिर अत्यंत प्राचीन और ऐतिहासिक है। राजा सूरज मल ने इस मन्दिर का निर्माण तीन सौ साल पहले कराया था और इसके साथ ही मन्दिर के सुचारू संचालन के लिए कई एकड़ भूमि भी दान में दी थी। नरसिंह भगवान की प्राण प्रतिष्ठा समारोह बड़े धूमधाम से हुआ था, जिसमें भरतपुर राज्य की जनता ने भाग लिया था। इसके बाद मन्दिर का संचालन सार्वजनिक रूप से सनातनी हिन्दुओं को समर्पित किया गया था।
मन्दिर की संपत्ति पर विवाद
समिति पर आरोप है कि उसने मन्दिर की संपत्ति का गलत तरीके से उपयोग किया। लोग आरोप लगा रहे थे कि समिति ने मन्दिर को अपनी निजी संपत्ति मानकर कई अनियमितताएं कीं और मन्दिर की वेश कीमती भूमि को हड़पने की कोशिश की। इन आरोपों के बाद मन्दिर समिति का विवाद अदालत तक पहुँच गया।
नरसिंह भगवान की दूसरी मूर्ति की स्थापना
विवाद के दौरान यह भी सामने आया कि मन्दिर की संपत्ति की हेराफेरी के लिए समिति ने अछनेरा के मोहल्ला बझेरा में एक किलोमीटर दूर नरसिंह भगवान की एक छोटी मूर्ति स्थापित कर दी थी, ताकि मन्दिर से संबंधित संपत्ति को अपनी निजी संपत्ति बनाने के प्रयास किए जा सकें।
अदालत का आदेश
अदालत ने मन्दिर समिति को भंग करते हुए एसडीएम किरावली को आदेश दिया कि वह मन्दिर के संचालन के लिए एक नई समिति गठित करें। इसके साथ ही, अदालत ने मन्दिर से संबंधित किसी भी संपत्ति के विक्रय, पुनर्निर्माण आदि पर रोक लगा दी। अदालत ने यह भी कहा कि नई समिति का गठन करने की प्रक्रिया तीन माह के अंदर पूरी की जाए और इस संबंध में अदालत को सूचित किया जाए।
अदालत ने एसडीएम को यह भी निर्देश दिया कि मन्दिर का प्रबंधन और संपत्ति के संरक्षण की अंतरिम व्यवस्था की जाए, ताकि मन्दिर की ऐतिहासिकता और धार्मिक महत्व का संरक्षण किया जा सके।
मन्दिर के संचलन में पारदर्शिता की आवश्यकता
मन्दिर के इतिहास और धार्मिक महत्व को देखते हुए यह आदेश मन्दिर के प्रबंधन में पारदर्शिता और धर्मार्थ कार्यों को प्राथमिकता देने के लिए लिया गया। इससे यह भी स्पष्ट हो गया कि मन्दिर से संबंधित संपत्तियों का उचित उपयोग किया जाएगा और किसी भी प्रकार की अनियमितताओं को रोका जाएगा।