आगरा। जैन धर्म, प्राकृत भाषा और आगरा की ऐतिहासिक भूमि पर अहमदाबाद के श्रुत रत्नाकर जितेन्द्र भाई शाह ने कहा कि आगरा केवल मुगलकालीन विरासत का प्रतीक नहीं, बल्कि जैन धर्म की दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण स्थल रहा है। इस दौरान धर्म चंद जैन और चेन्नई के दिलिय धिगनी भी उपस्थित रहे।
शहर के न्यू राजा मंडी स्थिति जैन भवन में एक प्रेस वार्ता के दौरान जैन धर्म से संबंधित जितेन्द्र भाई शाह ने सम्राट अकबर के समय की एक प्रेरक घटना का उल्लेख किया, जब श्राविका चम्पा के तप और जैनाचार्य श्री हीरसुरीश्वर जी महाराज के उपदेशों से प्रभावित होकर अकबर के जीवन में आध्यात्मिक परिवर्तन आया। उन्होंने कहा कि आगरा में जैन परंपरा का गहरा ऐतिहासिक संबंध रहा है, जिसे पुनर्स्थापित करने की आवश्यकता है। प्राकृत भाषा और जैन आगमों पर चर्चाजैन धर्म के विद्वान धर्म चंद जैन ने प्राकृत भाषा और जैन आगमों की संरचना तथा उनके दार्शनिक महत्व पर प्रकाश डाला।
वहीं, दिलिय धिगनी ने प्राचीन युग में प्राकृत भाषा के स्वरूप और व्याकरणिक विकास की जानकारी साझा की। जितेन्द्र भाई शाह का योगदान और दृष्टिकोण बताते हुए कहते हैं कि वे पिछले चार दशकों से प्राकृत भाषा के उत्थान और प्रचार-प्रसार में कार्यरत हैं। उन्होंने कहा कि भारत का प्राचीन साहित्य, जो प्राकृत, संस्कृत और पाली में रचित है, उसे आधुनिक अध्ययन व्यवस्था में शामिल करने की दिशा में प्रयास जारी हैं। उन्होंने यह भी दोहराया कि भगवान महावीर के सभी उपदेश प्राकृत भाषा में संकलित हैं और उन्हें जन-जन तक पहुँचाना उनका ध्येय है।
आगरा में तीन प्रमुख प्रस्ताव
जितेन्द्र भाई शाह ने आगरा में जैन धर्म और प्राकृत अध्ययन को बढ़ावा देने के लिए तीन महत्वपूर्ण प्रस्ताव रखे—जैन दर्शन, साहित्य और साधना संस्थान की स्थापनाजैन ग्रंथों और महावीर उपदेशों के लिए समृद्ध पुस्तकालयजैन म्यूजियम, जहाँ देश-विदेश से आने वाले पर्यटक जैन दर्शन, सिद्धांत और अहिंसा- अपरिग्रह जैसी शिक्षाओं को जान सकेंसारइस संवाद में वक्ताओं ने आगरा को जैन संस्कृति और प्राकृत अध्ययन के केंद्र के रूप में विकसित करने की अपील की। उन्होंने कहा कि यदि इन योजनाओं को मूर्त रूप दिया जाए, तो आगरा न केवल ऐतिहासिक नगरी के रूप में, बल्कि भारत की आध्यात्मिक और भाषाई विरासत के प्रमुख केंद्र के रूप में भी स्थापित हो सकेगा।
