होली त्योहार:प्रेम, सौहार्द व एकता का प्रतीक है होली का त्योहार:ममता गर्ग

Dharmender Singh Malik
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श्रीमती ममता गर्ग

अग्रभारत,

होली के शुरुआत होते ही मन में उमंग पैदा हो जाता है । इस पावन त्योहार पवित्रता के साथ मनाएं और सभी बुरी आदतों को त्यागे। समाज में प्रेम सौहार्द के साथ एकता के प्रतीक के रुप में होली मनाई जाती है।
बातचीत के दौरान भाजपा महिला मोर्चा खेरागढ़ नगर मण्डल अध्यक्ष श्रीमती ममता गर्ग ने प्रेम और एकता के प्रतीक होली के त्यौहार पर अपने विचार व्यक्त किये।
होली के रंग जब उड़ते हैं तो कोई भेदभाव नहीं करते। हर जाति और धर्म के लोग होली पर एक-दूसरे को गुलाल लगा कर जताते हैं अपना प्यार।
प्रेम देना है, प्रेम बांटना है
होली उमंग, उल्लास, मस्ती, रोमांच और प्रेम-आह्वान का त्योहार है। कलुषित भावनाओं का होलिकादहन कर नेह की ज्योति जलाने और सभी को एक रंग में रंगकर बंधुत्व को बढ़ाने वाला होली का त्योहार आज देश ही नहीं, बल्कि विदेशों में भी पूरे जोश के साथ जोरों-शोरों से मनाया जाता है। भले विदेशों में मनाई जाने वाली होली का मौसम के हिसाब से समय और मनाने के तरीके अलग-अलग हो, पर संदेश सभी का एक ही है- प्रेम और भाईचारा।
सोहार्द का पर्व है होली
होली ही ऐसा पर्व है जो बिना किसी खर्च के पूर्ण उत्साह और उल्लास से मनाया जा सकता है। यह पकवानों का भी पर्व है। होली प्रेम-प्रतीति का, एकता और भाई-चारे का, मानवता, सौहार्द और अपनेपन का पर्व है। होली पर सभी भेदभाव भुलाकर, गले मिल कर प्रेम बांटना चाहिए। दूसरे की भावना का ध्यान रख कर थोड़ा सा रंग लगाने से घर-परिवार और समाज में शांति और सोहार्द बना रहता है।
होली शीत ऋतु की विदाई और ग्रीष्म ऋतु के आगमन का सांकेतिक पर्व है। प्रकृति के पांवों में पायल की छम-छम बसंत के बाद इस समय पतझड़ के कारण साख से पत्ते टूटकर दूर हो रहे होते हैं, ऐसे में परस्पर एकता, लगाव और मैत्री को एकसाथ एक सूत्र में बांधने का संदेशवाहक होली का त्योहार वातावरण को महुए की गंध की मादकता, पलाश और आम की मंजरियों की महक से चमत्कृत कर देता है। फाल्गुन मास की निराली बासंती हवाओं में संस्कृति के परंपरागत परिधानों में आंतरिक प्रेमानुभूति सुसज्जित होकर चहुंओर मस्ती की भंग आलम बिखेरती है जिससे दु:ख-दर्द भूलकर लोग रंगों में डूब जाते हैं।
ब्रज में राधा कृष्ण की होली
जब बात होली की हो, तो ब्रज की होली को भला कैसे बिसराया जा सकता है? ढोलक की थाप और झांझों की झंकार के साथ लोकगीतों की स्वर-लहरियों से वसुधा के कण-कण को प्रेममय क्रीड़ाओं के लिए आकर्षित करने वाली होली ब्रज की गलियों में बड़े ही अद्भूत ढंग से मनाई जाती है। फागुन मास में कृष्ण और राधा के मध्य होने वाली प्रेम-लीलाओं के आनंद का त्योहार होलीप्रकृति के साथ जनमानस में सकारात्मकता और नवीन ऊर्जा का संचार करने वाला है। यकीनन, होली के इस माहौल में मन बौरा जाता है।
प्रह्लाद और हिरण्यकश्यप की कथा जनमानस में सर्वाधिक प्रचलित है। बुराई का प्रतीक होलिका अच्छाई के प्रतीक ईश्वर-श्रद्धा के अनुपम उदाहरण प्रह्लाद का बाल भी बांका नहीं कर सकी। बुराई भले कितनी ही बुरी क्यों न हो, पर अच्छाई के आगे उसका मिटना तय है।
लेकिन इसके विपरीत आज बदलते दौर में होली को मनाने के पारंपरिक तरीकों की जगह आधुनिक अश्लील तरीकों ने ले ली है जिसके फलस्वरूप अब शरीर के अंगों से केसर और चंदन की सुगंध की बजाय गोबर की दुर्गंध आने लग गई है। लोकगीतों में मादकता भरा सुरमय संगीत विलुप्त होने लगा है और अब उसकी जगह अभद्र शब्दों की मुद्राएं भी अंकित दिखलाई पड़ने लगी हैं।
आधुनिकता और संचार क्रांति के युग में उपकरणों के बढ़ते उपयोग ने होली को खुले मैदान, गली-मोहल्लों से मोबाइल के स्क्रीन पर लाकर रख दिया है। अब लोग होली वाले दिन भी घर में डूबके बैठे रहते हैं। ये कहें कि आधुनिक होली व्हॉट्सएप और फेसबुक के संदेशों तक सिमटकर रह गई है।
साल-दर-साल होली के गुणों में न्यूनता आती जा रही है। होली के फीके होते रंगों में रौनक लौटाकर जन-मन में आस्था और विश्वास जगाने की आज बेहद जरूरत है। केवल होलिकादहन के नाम पर घास-फूस को ही नहीं जलाएं, अपितु मानव समाज की उन तमाम बुराइयों का भी दहन करें, जो हमारे भीतर अलगाव और आतंक को फैला रही हैं।

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Editor in Chief of Agra Bharat Hindi Dainik Newspaper
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