झाँसी, सुल्तान आब्दी: अंतर्राष्ट्रीय ओलंपिक दिवस, 2025 को केवल इतिहास को याद करने का दिन नहीं, बल्कि एक वैश्विक आंदोलन के रूप में देखा जा रहा है जो लोगों को सक्रिय, जागरूक और प्रेरित करता है। खेल विश्लेषक बृजेंद्र यादव के अनुसार, यह दिन उन सभी का सम्मान करता है जो ओलंपिक मूल्यों – उत्कृष्टता, मित्रता और सम्मान – को अपने जीवन में जीते हैं।
यह विशेष दिन वैश्विक एकता, खेल भावना और सांस्कृतिक समरसता को बढ़ावा देता है, साथ ही सभी आयु वर्ग के लोगों को शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए सक्रिय जीवनशैली अपनाने की प्रेरणा भी देता है।
ओलंपिक खेलों का ऐतिहासिक सफर और भारत का योगदान
ओलंपिक खेलों की शुरुआत 776 ईसा पूर्व ग्रीस में हुई थी, जहाँ खिलाड़ी देवताओं को सम्मान देने के लिए नग्न प्रतियोगिताएं करते थे। आधुनिक ओलंपिक की वापसी 1896 में हुई और तब से यह दुनिया का सबसे बड़ा खेल आयोजन बन गया है।
भारत का ओलंपिक सफर:
- भारत ने पहली बार 1900 में पेरिस ओलंपिक में भाग लिया, जहाँ नॉर्मन प्रिचार्ड ने दो सिल्वर मेडल जीते थे।
- हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद ने 1928, 1932 और 1936 में लगातार तीन स्वर्ण पदक दिलाए।
- भारत ने 1928 से 1980 तक हॉकी में कुल 8 गोल्ड मेडल जीते हैं, जो एक अभूतपूर्व उपलब्धि है।
- अभिनव बिंद्रा (2008) भारत के पहले व्यक्तिगत स्वर्ण पदक विजेता बने।
- हाल ही में पी.वी. सिंधु, नीरज चोपड़ा, मीराबाई चानू, लवलीना बोरगोहेन जैसी नई पीढ़ी के खिलाड़ी ओलंपिक सितारे बनकर उभरे हैं।
- नीरज चोपड़ा का टोक्यो 2020 में जैवलिन थ्रो में गोल्ड मेडल जीतना एक ऐतिहासिक क्षण था, जिसने पूरे देश को गौरवान्वित किया।
कुछ रोचक तथ्य
- ओलंपिक टॉर्च रिले की शुरुआत 1936 में हुई थी।
- दिलचस्प बात यह है कि गोल्ड मेडल असल में चांदी के बने होते हैं जिन पर सोने की परत चढ़ी होती है।
- अंतर्राष्ट्रीय ओलंपिक समिति (IOC) ने 1978 में सभी राष्ट्रीय समितियों को हर साल ओलंपिक दिवस मनाने की सिफारिश की थी।
यह दिवस हमें याद दिलाता है कि खेल केवल प्रतियोगिता नहीं, बल्कि जीवनशैली और मूल्यों का प्रतीक है। क्या आप भी ओलंपिक दिवस पर किसी खेल गतिविधि में शामिल हुए?