आगरा की एक छात्रा द्वारा मोदी विश्वविद्यालय, सीकर (राजस्थान) के खिलाफ दायर मुकदमा स्थाई लोक अदालत ने खारिज कर दिया है। अदालत ने विश्वविद्यालय के पक्ष में फैसला सुनाते हुए यूजीसी के नियमों के तहत फीस की कटौती को सही ठहराया।
मामला क्या था?
वादी मुकदमा नंदनी गोयल, निवासी कमला नगर, आगरा ने मोदी विश्वविद्यालय के कुलपति और एजीएम एडमिशन को पक्षकार बनाते हुए स्थाई लोक अदालत में याचिका दायर की थी। नंदनी ने वर्ष 2018 में विश्वविद्यालय के बी.ए.एलएलबी पांच वर्षीय कोर्स में एडमिशन के लिए आवेदन किया था और 1,98,200 रुपये फीस जमा की थी। इसमें एडमिशन फीस, कॉशन मनी, डेवलपमेंट फीस, बोर्डिंग फीस, एग्जाम फीस और अन्य शुल्क शामिल थे।
छात्रा का आरोप था कि विश्वविद्यालय ने उसे नॉन-एसी कमरा आवंटित किया, जबकि उससे एसी कमरे का शुल्क लिया गया था। असुविधा के कारण छात्रा ने दो दिन बाद एडमिशन रद्द करा दिया और विश्वविद्यालय से पूरी फीस वापस मांगी। विश्वविद्यालय ने छात्रा को 1,47,700 रुपये वापस किए, जबकि 50,500 रुपये रोक लिए। इसी को लेकर छात्रा ने स्थाई लोक अदालत में मुकदमा दायर किया था।
स्थाई लोक अदालत का फैसला
स्थाई लोक अदालत की अध्यक्ष शोभा पोरवाल, सदस्य हेमलता और पदमजा शर्मा ने दोनों पक्षों के तर्कों को सुनने के बाद अपना फैसला सुनाया। अदालत ने विश्वविद्यालय के इस तर्क को स्वीकार किया कि उन्होंने यूजीसी द्वारा जारी दिशा-निर्देशों के अनुसार ही छात्रा को 80 प्रतिशत राशि वापस की और 20 प्रतिशत राशि नियमों के तहत काटी गई। अदालत ने छात्रा के मुकदमे को खारिज करते हुए उसे कोई राहत देने से इनकार कर दिया।