आगरा, उत्तर प्रदेश: धोखाधड़ी, दलित उत्पीड़न, आईटी एक्ट और अन्य धाराओं के आरोपों का सामना कर रहे चर्चित कारोबारी शैलेंद्र अग्रवाल को विशेष न्यायाधीश एससी/एसटी एक्ट की अदालत ने बरी कर दिया है। साक्ष्य के अभाव में अदालत ने शैलेंद्र अग्रवाल पुत्र मुरारी लाल अग्रवाल निवासी डेम्पियर नगर, मथुरा (वर्तमान निवासी 17 विभव नगर, थाना ताजगंज, आगरा) के खिलाफ आरोपों को सिद्ध नहीं पाया।
क्या था मामला?
यह मामला थाना ताजगंज में उपनिरीक्षक विजय सिंह चक की पत्नी श्वेता सिंह उर्फ रंजीता सिंह (निवासी मोहल्ला हाथी खाना, फतेहगढ़, जिला फर्रुखाबाद) द्वारा दर्ज कराया गया था। श्वेता सिंह ने अपनी शिकायत में आरोप लगाया था कि उनके पति आगरा में जीआरपी आगरा सिटी चौकी पर नियुक्त हैं।
उन्हें जानकारी मिली थी कि शैलेंद्र अग्रवाल के कई कोल्ड स्टोरेज हैं और वह आलू का बड़ा व्यापारी है। उन्हें यह भी बताया गया कि कई पुलिस और प्रशासनिक अधिकारी भी उसके व्यवसाय में पैसा लगाते हैं, क्योंकि वह प्रति वर्ष 35 प्रतिशत का भारी मुनाफा देता है। श्वेता सिंह ने शैलेंद्र अग्रवाल से संपर्क किया और स्वयं व अपने रिश्तेदारों के दस लाख रुपये उसके व्यवसाय में लगा दिए। जब उन्होंने एग्रीमेंट की बात कही, तो आरोपी ने टालमटोल की।
बाद में श्वेता सिंह को पता चला कि शैलेंद्र अग्रवाल इसी तरह लोगों से पैसे लेकर कहीं और लगाते हैं। जब उन्होंने अपनी रकम वापस मांगी, तो आरोपी ने केवल डेढ़ लाख रुपये दिए और बाकी रकम देने से इनकार कर दिया। शिकायत में यह भी आरोप लगाया गया था कि आरोपी ने डीजीपी के सीयूजी नंबर से श्वेता के पति को धमकी दिलवाई, जिससे वे अवसादग्रस्त हो गए। बाद में पता चला कि यह फोन इंटरनेट का उपयोग करके फर्जी तरीके से किया गया था।
अदालत का फैसला और अन्य मामले
इस मामले में वादनी श्वेता सिंह, उनके पति सहित कुल सात गवाहों की गवाही दर्ज की गई थी। हालांकि, अदालत ने उपलब्ध साक्ष्यों के अभाव और आरोपी के अधिवक्ता दिनेश कुमार अग्रवाल के तर्कों को स्वीकार करते हुए शैलेंद्र अग्रवाल को बरी करने का आदेश दिया।
गौरतलब है कि शैलेंद्र अग्रवाल के खिलाफ विभिन्न थानों में धोखाधड़ी के कई अन्य मामले भी दर्ज थे। बताया जाता है कि आरोपी ने इनमें से अधिकांश मामलों में वादी मुकदमा के साथ समझौता कर लिया था।