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‘स्व’ की अवधारणा को समझे और जीवन मेें धारण करेें – सह सर कार्यवाह डाॅ. मनमोहन वैद्य

Sumit Garg
10 Min Read

अग्रभारत

– विश्व संवाद केंद्र द्वारा आयोजित ब्रज साहित्योत्सव का
हुआ समापन

– कार्यक्रम में 01 दर्जन से अधिक व्याख्यान हुए

– 60 शोधार्थी और 50 से अधिक विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञों ने लिया भाग

 

आगरा। विश्व संवाद केन्द्र ब्रज प्रांत द्वारा आयोजित ब्रज साहित्य- उत्सव के दूसरे दिन आज तीन सत्रों में राष्ट्र की समृद्धि में हिन्दू अर्थशास्त्र की प्रासंगिता, पर्यावरण संरक्षण की भारतीय अवधारण और ‘स्व’ आधारित राष्ट्र के नवोत्थान का संकल्प विषयों पर चर्चा की गई।

साहित्योत्सव में संघ के सह कार्यवाह डाॅ. मनमोहन वैद्य जी ने सम्बोद्धित करते हुए कहा कि ‘स्व’ आधारित राष्ट्र के नवोत्थान का संकल्प भारत के ‘स्व’ की अवधारणा को समझे और जीवन मेें धारण करेें। ‘स्व’ आधारित राष्ट्र के नव उत्थान का संकल्प संगोष्ठी को सम्बोधित करते हुए कहा है कि भारत के ‘स्व’ की अवधारण, आध्यात्मिक आधारित जीवन शैली को समझने और आचरण मे लाने की आवश्यकता है। भारत का दृृष्टिकोण सम्पूर्ण है। वसुधैव कुटुम्बकम की भावना है। किसी के खिलाफ होने का प्रश्न ही नहीं है। भारत की मान्यता है कि ईश्वर एक है उसके नाम अनेक हो सकते हैं और उस तक पहुँचने का मार्ग भी भिन्न हो सकते हैं।
उन्होंने कहा कि एक राष्ट्र की पहचान करनी है इसी ‘स्व’ के प्रकाश में दिशा तय होनी चाहिए। उन्होेंने बताया कि दूसरे विश्व युद्ध मंे सन् 1945 में इंग्लैण्ड, जर्मन, जापान को क्षति हुई। सन् 1948 मे ईसराइल ने संघर्ष कर आगे बढ़ा। सन् 1947 में भारत आजाद हुआ। उन देशों की तुलना में भारत की प्रकृति को देख सकते हैं। स्वाधीनता के बाद केवल जूनागढ़, हैदराबाद, कश्मीर को छोड़कर सभी स्टेट भारत में स्वेच्छा से विलय हुई। सरदार वल्लभ भाई पटेल जब जूनागढ़ स्टेट विलय हेतु गए तो उन्होने सौमनाथ मन्दिर के दर्शन कर पीड़ा का अनुभव किया और मन्दिर जीर्णोद्धार हेतु के०ए० मुंशी को उत्तरदायी सौंपा। गाँधी जी ने भी मन्दिर निर्माण हेतु इस सुझाव के साथ सहर्ष सहमति दी कि मन्दिर का निर्माण जनता द्वारा धन एकत्र कर किया जाए। सन् 1951 में मन्दिर की प्राण प्रतिष्ठा में राष्ट्रपति राजेन्द्र प्रसाद सम्मिलित हुए। भारत के ‘स्व’ के अनुसार शिक्षा नीति, अर्थनीति, रक्षानीति आदि तय होनी चाहिए, भारत के ‘स्व’ को समझना एवं जानना जरूरी है, भारत की आध्यात्म आधारित जीवन शैली को समझना होगा। उन्होंने कहा कि सन् 1700 तक भारत का निर्यात विश्व में उन्नत था और भारत उद्योग प्रधान देश था। यहाँ कपड़ा उद्योग, मेटलर्जी, मसाले, टैनरी आदि घरेलू उद्योग गाँव-गाँव मे थे। पुरुष व्यापार हेतु देश-विदेश में जाए और महिलाओं के पास धन रहता था और घरेलू व्यवस्थाएँ सँभालती थीं। यहाँ के लोग बाहर व्यापार करने तो गए परन्तु उन्होंने काॅलौनी खड़ी नहीं की, धर्मांतरण नहीं कराया। लोगों को गुलाम नहीं बनाया और ना ही वहाँ के संसाधनों को रोका।
उन्होंने स्वामी विवेकानन्द के विदेशां में दिए गए व्याख्यानों की चर्चा करते हुए कहा कि उन्होंने बताया कि भारत उदारता की भावना में विश्वास करता है। पराए को भी दुश्मन नहीं मानता। उन्होंने ईशा वास्य जगत सत्यम का उल्लेख करते हुए भारत विविधता को सेलीबे्रट करता है। उन्होेंने रवीन्द्र नाथ टैगोर का उल्लेख करते हुए कहा कि सबको साथ लेकर गंगा की भाँति आगे बढ़ते रहना है। उन्होंने ने कर्मयोग, भक्तियोग, राजयोग और ज्ञानयोग की चर्चा करते हुए कहा कि भारत में सबको अपनी उपासना चुनने की स्वतंत्रता है। यह भारत की विशेषता है। लोग इसी ‘स्व’ आधारित प्रेरणा से सेवा हेतु आगे आए उन्होंने अनेक उदाहरण देकर बताया कि धर्म सबको जोड़ता है। धर्म की अवधारणा कर्तव्यों से है जबकि रिलीजन को उपासना पद्धति के सम्बन्ध में समझा जाता है। धर्म आध्यात्मिता की अवधारणा और भारत का प्राण है।

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इससे पूर्व नासिक से आये अर्थशास्त्री प्रोफेसर विनायक गोविलकर ने भारतीय और अभारतीय अर्थशास्त्रों का तुलनात्मक विवरण प्रस्तुत करते हुए कहा कि भारतीय अर्थशास्त्र के दृष्टिकोण की प्रासंगिकता विश्व स्तर पर स्वीकार की जा रही है। इस संदर्भ मं नोवेल पुरस्कार विजेता रिचर्ड आदि के कार्यों का उदाहरण दिया। उन्होंने कहा कि वर्तमान में जी०डी०पी० की दर से राष्ट्र की समृद्धि तय करते हैं।
उन्होंने ने वस्तु, सेवा, साधन, उपकरण आदि घटकों पर चर्चा करते हुए कहा कि भारतीय चिन्तन संसाधनों के मार्यादित उपभोग पर बल देता है। उन्होंने आर्थिक विकास की अवधारण के संदर्भ में आधुनिक आर्थिक चिंतक एडम स्मिथ आदि के विचारों पर प्रकाश डाला। उन्होेंने ने पाश्चात्य अर्थशास्त्र के स्तंभ, संघर्ष, व्यक्ति का स्वातंत्र, शासन का न्यूनतम हस्तक्षेप, सम्पत्ति की निजी मालिकी का विश्लेषण करते हुए कहा कि वर्तमान परिस्थिति मेें केवल भारतीय हिन्दू आर्थिक विचार ही शाँति और सुख दे सकता है। गोविलकर ने हिन्दू अर्थशास्त्र के ग्रंथों और श्री सूत्र के श्लोक का संदर्भ देते हुए कहा कि भारतीय अर्थव्यवस्था में पर्यावरण की महत्ता भी बतायी गयी है। उन्होंने कार्बन उत्सर्जन पर चिंता प्रकट करते हुए कहा कि उत्पादन का चक्र उलट गया है। उत्पादन माँग के अनुरूप न होकर केवल लाभ के लिए हो रहा है। प्रो. इंदू वाष्र्णेय ने ग्रामीण और घरेलू अर्थव्यवस्था की चर्चा करते हुए कहा कि प्राचीन भारत हमेशा से आत्म निर्भर रहा है। उन्होंने भारतीय घरेलू अर्थव्यवस्था का विश्लेषण किया। प्राचीन शास्त्रां, अर्थशास्त्र विभिन्न स्मृतियों के संदर्भ देते हुए हिन्दू अर्थशास्त्र की महत्ता बताई। उन्होंने कहा कि मातृशक्ति ने इसे अक्षुण्य बना रखा है। प्रोफेसर वेद प्रकाश त्रिपाठी तथा प्रख्यात लेखक डाॅ. सरवन बघेल ने हिन्दू धर्मशास्त्र और पण्डित दीनदयाल उपाध्याय ने अंत्योदय और एकात्मकता पर विस्तार से चर्चा की।

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आज द्वितीय सत्र में पर्यावरण संरक्षण की भारतीय अवधारणा पर वृन्दावन से पधारीं रेणुका पुंडरीक गोस्वामी ने हरे राम सकीर्तन के साथ उद्धबोधन प्रारम्भ किया। उन्होंने आध्यात्म के विभिन्न पहलुओं की चर्चा करते हुए कहा कि पंचमहाभूत भगवान का विस्तार है। उन्होंने भ से भूमि, ग से गगन, वा से वायु, अ से अग्नि और न से नीर पर व्याख्या करते हुए कहा कि पंचमहाभूतों की सेवा भगवान की सेवा है। उन्होंने हिन्दू शास्त्रों-श्रीमद् भागवत, पुराण, उपनिषद गीता, रामायण में पर्यावरण के महत्व को रेखांकित किया। गोस्वामी ने आहार, विचार और व्यवहार के सुधार से पर्यावरण संरक्षण पर विस्तार से बताया। उन्होंने वृक्षारोपण आन्दोलन को गति देने के लिए जन्मदिन और अन्य विशेष अवसरों पर वृक्षारोपण करने का संकल्प लेने के लिए कहा। उन्होंने यमुना की शुद्धि सहित पर्यावरण के विभिन्न पहलुओं की ओर ध्यान आकर्षित किया। पर्यावरणविद् डाॅ0 देवाशीष भट्टाचार्य ने कहा कि भारतीय जनमानस पेड़, पौधों, पशु-पक्षियों और प्रकृति का पूजक है। अनियंत्रित विकास के कारण नदी, नाले, तालाब, पोखर आदि प्रदूषित हो रहे हैं। पक्षी विलुप्त हो रहे हैं। जानवर हिंसक हो रहे हैं।
उन्होंने पर्यावरण दिवस को मनाने हेतु सार्थक सुझाव दिए। विकास सारस्वत ने विस्तार से बताया कि भारतीय साहित्स संस्कृति में पर्यावरण जोड़ा है। भारतीय चिंतन में पर्यावरण का चिंतन विस्तार से हुआ है।

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दो द्विवसीय कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए डाॅ० अम्बेडकर विश्वविद्यालय, आगरा के कुलपति प्रोफेसर आशू रानी ने कहा कि ‘स्व’ को समझना आवश्यक है। ‘स्व’ सम्पूर्ण मनोवैज्ञानिक अवधारणा है और समाज व देश के प्रति कत्र्तव्य को ‘स्व’ का हित समाज के बारे मेें सोचना। उन्होंने युवा पीढ़ी का आहवान किया कि अपने कत्र्तव्यों को समझते हुए सभी क्षेत्रों में आगे आएँ।

कार्यक्रम में 01 दर्जन से अधिक व्याख्यान, 60 शोधार्थी और 50 से अधिक विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञों ने भाग लिया। ब्रज प्रान्त के विभिन्न जिलों से प्रतिनिधियों ने भी भाग लिया। अतिथियों का स्वागत साहित्योत्सव के सर्व व्यवस्था प्रमुख मनमोहन निरंकारी और संचालन साहित्योत्सव के संयोजक मधुकर चतुर्वेदी ने किया।
कार्यक्रम में क्षेत्र प्रचारक महेंद कुमार, क्षेत्र प्रचार प्रमुख पदम जी, प्रांत प्रचारक डाॅ. हरीश रौतेला, क्षेत्र कार्यवाह डाॅ. प्रमोद शर्मा, प्रांत सह प्रचार प्रमुख कीर्ति कुमार, विभाग प्रचारक आनंद जी, सह विभाग संघचालक रामवीर, प्रांत प्रचार प्रमुख केशवदेव शर्मा, रजत अग्रवाल, सीए अभिषेक जैन, ज्योत्सना शर्मा, पूरन तरकर,आदेश तिवारी,विजय गोयल प्रवीन शर्मा सहित नगर के प्रबुद्धगण उपस्थित रहे।

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प्रभारी-दैनिक अग्रभारत समाचार पत्र (आगरा देहात)
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