वृंदावन विवाद: गोस्वामियों का हुंकार – “मंदिर अधिग्रहण परंपरा पर हमला!” सरकार की विकास योजना पर तीखा विरोध

Deepak Sharma
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वृंदावन विवाद: गोस्वामियों का हुंकार - "मंदिर अधिग्रहण परंपरा पर हमला!" सरकार की विकास योजना पर तीखा विरोध

वृंदावन: वृंदावन में मंदिरों के अधिग्रहण और व्यवस्थापन को लेकर विवाद लगातार गहराता जा रहा है। सरकार द्वारा मंदिर परिसरों के विकास और व्यवस्थापन की पहल पर स्थानीय गोस्वामी और सेवायत वर्ग ने तीखा विरोध जताया है। इस महत्वपूर्ण मुद्दे पर शुक्रवार को ब्रज वृंदावन देवालय समिति की कोर कमेटी की एक विशेष बैठक वृंदावन के जयसिंह घेरा स्थित गंभीरा में आयोजित की गई।

परंपरा और स्वायत्तता पर कुठाराघात अस्वीकार्य: सेवायत

बैठक में सेवायत आचार्यों ने स्पष्ट रूप से मंदिरों के अधिग्रहण के किसी भी प्रयास का प्रबल विरोध किया। उनका कहना है कि सरकार द्वारा उठाए जा रहे कदम मंदिरों की सदियों पुरानी सेवा परंपरा और स्वायत्तता पर कुठाराघात हैं, जिसे किसी भी कीमत पर स्वीकार नहीं किया जाएगा।

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समिति के अध्यक्ष श्री आलोक कृष्ण गोस्वामी की अध्यक्षता में हुई बैठक में सभी सेवायतों ने एक सुर में कहा कि मंदिरों की सेवा परंपरा में किसी भी प्रकार की सरकारी दखलंदाज़ी अस्वीकार्य है। भोग-राग, सेवाएं और मंदिरों की आंतरिक व्यवस्था सेवायतों की धार्मिक ज़िम्मेदारी है, जिसे युगों से निभाया जा रहा है।

विकास हो, पर स्वरूप और आस्था से खिलवाड़ नहीं!

सेवायतों ने सुझाव दिया कि श्रद्धालुओं की सुविधा हेतु सरकार बाह्य व्यवस्थाओं का विकास कर सकती है – जैसे सुरक्षा, शौचालय, पेयजल, पार्किंग आदि। लेकिन मंदिर के मूल स्वरूप और सेवाओं में कोई छेड़छाड़ नहीं होनी चाहिए।

इसके साथ ही यह भी मांग की गई कि किसी भी निर्माण कार्य में कंक्रीट और ईंट-पत्थर की अधिकता से बचा जाए और मंदिरों के आसपास पारंपरिक वृक्षों से प्राकृतिक कुंज विकसित किए जाएं, जिससे ब्रज की आध्यात्मिक और पर्यावरणीय पहचान बनी रहे।

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बैठक में यह भी स्पष्ट मांग रखी गई कि ब्रज-वृंदावन में विकास कार्यों की योजना स्थानीय निवासियों और परंपरा से जुड़े लोगों के हितों को ध्यान में रखकर बने, न कि केवल पर्यटन को केंद्र में रखकर जिससे स्थानीय पहचान और संस्कृति को नुकसान पहुंचे।

विरोध प्रदर्शन की चेतावनी

बैठक में अनेक प्रतिष्ठित सेवायत, विद्वान और सामाजिक कार्यकर्ता शामिल हुए, जिनमें प्रमुख रूप से आचार्य श्रीवत्स गोस्वामी महाराज (संरक्षक), श्री आलोक कृष्ण गोस्वामी (अध्यक्ष), श्री गोविंद पांडेय (उपाध्यक्ष), श्री कान्तानाथ चतुर्वेदी (उपाध्यक्ष), श्री गोविंद महंत (कोषाध्यक्ष), श्री गोपीनाथ लाल देव गोस्वामी (राजा), श्री विजय किशोर देव गोस्वामी, श्री मनीष पारिख, श्री रामदास चतुर्वेदी, श्री गोपाल कृष्ण गोस्वामी, श्री भगवत स्वरूप शर्मा, श्री बालकृष्ण चतुर्वेदी, श्री लालकृष्ण चतुर्वेदी और श्री जगन्नाथ पोद्दार जैसे नाम शामिल थे।

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बैठक में सर्वसम्मति से तय किया गया कि यदि सरकार ने मंदिरों की स्वायत्तता में हस्तक्षेप की प्रक्रिया नहीं रोकी, तो सेवायत समाज सामूहिक रूप से विरोध प्रदर्शन और जनजागरण अभियान शुरू करेगा।

आज की बैठक का स्पष्ट संदेश रहा: “बांके बिहारी मंदिर केवल एक तीर्थस्थल नहीं, ब्रज की आत्मा है। यहां की सेवाएं, परंपराएं और रसिक संस्कृति सदियों से चली आ रही हैं। विकास और सुविधाएं ज़रूरी हैं, लेकिन इसके नाम पर परंपरा और आस्था से खिलवाड़ किसी भी कीमत पर स्वीकार नहीं किया जाएगा।”

 

 

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