आगरा: आगरा के थाना कागारौल क्षेत्र के अकोला गांव में 24 जून 1990 को हुए जाट-जाटव जातीय संघर्ष के मामले में आज एक ऐतिहासिक फैसला आया है. विशेष न्यायाधीश एससी/एसटी एक्ट पुष्कर उपाध्याय ने इस मामले में आरोपित 33 व्यक्तियों को पांच वर्ष की कैद और ₹13 लाख 53 हजार के अर्थदंड से दंडित किया है. यह फैसला 35 साल लंबी कानूनी लड़ाई के बाद आया है, जो बताता है कि न्याय मिलने में भले ही देर हो, लेकिन वह मिलता जरूर है.
क्या था अकोला कांड?
35 साल पहले, 24 जून 1990 को थाना कागारौल के ग्राम अकोला में जाट और जाटव समुदाय के बीच हिंसक जातीय संघर्ष हुआ था. तत्कालीन थानाध्यक्ष कागारौल द्वारा दर्ज मामले के अनुसार, 19 जून 1990 को थाना सिकंदरा के ग्राम पनवारी में दलित युवक की बारात चढ़ने को रोकने के बाद हुए जाट-जाटव जातीय संघर्ष की तपिश अकोला तक फैल गई थी. अकोला में जाटव समुदाय की बस्ती पर लाठी, डंडों, फरसा, बल्लम आदि से लैस होकर हमला किया गया था. इस हमले में कई लोग घायल हुए, घरों में तोड़फोड़ की गई और दलित उत्पीड़न की धाराओं में मुकदमा दर्ज किया गया. इस मामले में कुल 79 आरोपियों के खिलाफ आरोप पत्र दाखिल किया गया था.
लंबी चली कानूनी प्रक्रिया
यह मामला 35 साल तक अदालत में चला. इस दौरान अभियोजन पक्ष ने 29 गवाहों को अदालत में पेश किया. मुकदमे के विचारण के दौरान कई आरोपियों की मृत्यु हो गई, जिसके बाद अदालत ने उनके खिलाफ मुकदमे की कार्यवाही समाप्त कर दी.
बीते 28 मई 2025 को अदालत ने 15 आरोपियों को साक्ष्य के अभाव में बरी कर दिया, जबकि 35 आरोपियों को दोषी पाया था. इनमें से तीन आरोपी – गोपाल सिंह पुत्र लीलाधर, नंगा पुत्र तेजपाल, और राजकुमार पुत्र विपत्ति सिंह – गैरहाजिर थे, जिनके विरुद्ध अदालत ने गैर-जमानती वारंट जारी कर उनकी गिरफ्तारी का आदेश थानाध्यक्ष कागारौल को दिया था. 28 मई को ही 32 आरोपियों को दोषी पाए जाने के बाद जेल भेज दिया गया था और सजा सुनाने के लिए 30 मई की तारीख तय की गई थी. आज, फरार आरोपी गोपाल सिंह ने भी अदालत में आत्मसमर्पण कर दिया.
अदालत का फैसला
विशेष न्यायाधीश एससी/एसटी एक्ट पुष्कर उपाध्याय ने एडीजीसी हेमंत दीक्षित और वादी के अधिवक्ता के तर्क सुनने के बाद 33 आरोपियों को दोषी ठहराया. दंडित किए गए आरोपियों में जयदेव, राजेंद्र, पप्पू, तेजवीर सिंह, बन्नो, जीतू, कंवरपाल, कल्लो, श्यामवीर, लीलाधर, भूपेंद्र, सत्तू, महेश, नाहर सिंह, रामवीर, सुरेंद्र, रामजीत, निरंजन, हरभान, पूरन, देवी सिंह, उम्मेदी, विज्जो, रामजीत, महेंद्र सिंह, संतो उर्फ संतराम, सुजान, सुदा न उर्फ सौदान, महताब, दंगल, रज्जो उर्फ राजू, संपत, और गोपाल सिंह शामिल हैं.
अदालत ने इन सभी को विभिन्न धाराओं के तहत दंडित किया:
- धारा 452 (घर में घुसकर मारपीट): पांच वर्ष कैद और ₹10 हजार का अर्थदंड
- धारा 427 (तोड़फोड़): दो वर्ष कैद और ₹10 हजार का अर्थदंड
- धारा 323 (मारपीट): एक वर्ष कैद और ₹1 हजार का अर्थदंड
- धारा 504 (गाली-गलौज): दो वर्ष कैद और ₹5 हजार का अर्थदंड
- धारा 148 (बलवा): दो वर्ष कैद और ₹5 हजार का अर्थदंड
- दलित उत्पीड़न की धाराएं: पांच वर्ष की कैद और ₹10 हजार का अर्थदंड
अदालत ने आदेश दिया कि समस्त सजाएं साथ-साथ चलेंगी, जिसके कारण सभी आरोपी पांच वर्ष कैद और कुल ₹13 लाख 53 हजार का अर्थदंड भुगतेंगे.
पनवारी कांड से जुड़ी है अकोला की घटना
अकोला कांड की जड़ें 21 जून 1990 को थाना सिकंदरा के ग्राम पनवारी में हुए जातीय संघर्ष से जुड़ी हैं. पनवारी में भरत सिंह कर्दम की बहन मुंद्रा की बारात चढ़ने को लेकर जाट समुदाय द्वारा दलित युवक की घोड़ी पर बारात चढ़ाने का विरोध किया गया था. इसकी अगुआई चौधरी बाबूलाल ने की थी. इस जातीय संघर्ष की गूंज पूरे देश में सुनाई दी थी, और पनवारी कांड व चौधरी बाबूलाल रातों-रात चर्चा में आ गए थे. पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों को कड़ी सुरक्षा के बीच दलित युवक की बारात की रस्म पूरी करानी पड़ी थी. प्रशासन को जातीय संघर्ष को रोकने के लिए सेना और कई थाना क्षेत्रों में कर्फ्यू भी लगाना पड़ा था.
पनवारी कांड की तपिश कई जगह फैल गई थी और अकोला गांव, जो जाट समुदाय बहुल था, में भी 24 जून 1990 को यह घटना अंजाम दी गई थी. समाजवादी पार्टी की सरकार के दौरान हुई इस घटना के पीड़ितों से मिलने के लिए पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी और सोनिया गांधी भी आगरा आए थे. गौरतलब है कि पनवारी कांड के सभी आरोपी, जिसमें तत्कालीन डीएम, एसपी और बसपा से जुड़े कई नेताओं की गवाही हुई थी, पहले ही बरी हो चुके हैं.