प्रयागराज (इलाहाबाद)। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाथरस दलित दुष्कर्म कांड के समय चंदपा थाने के इंचार्ज रहे इंस्पेक्टर दिनेश वर्मा को बड़ा झटका दिया है। कोर्ट ने वर्मा के खिलाफ सीबीआई की विशेष अदालत (गाजियाबाद) में चल रहे आपराधिक केस को रद्द करने से इनकार करते हुए उनकी याचिका खारिज कर दी है। न्यायमूर्ति राजबीर सिंह की एकलपीठ ने अपने महत्वपूर्ण आदेश में कहा कि थाने की सीसीटीवी फुटेज, जनरल डायरी (जीडी) में फर्जी प्रविष्टि और तत्कालीन थाना प्रभारी द्वारा कर्तव्य पालन में बरती गई लापरवाही को देखते हुए प्रथम दृष्टया उनके खिलाफ केस बनता है।
कोर्ट ने कड़ी टिप्पणी करते हुए कहा कि पीड़िता जब थाने आई थी, तो थाना प्रभारी दिनेश वर्मा ने अपने निजी मोबाइल फोन से उसका वीडियो बनाया, लेकिन उसका बयान दर्ज करने की कोई कोशिश नहीं की गई। इतना ही नहीं, थाने में दो सरकारी वाहन मौजूद होने के बावजूद पीड़िता के परिवार को उसे अस्पताल ले जाने के लिए ऑटो रिक्शा का सहारा लेना पड़ा।
पुलिस ने तोड़ी गाइडलाइंस, बरती घोर लापरवाही
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इस मामले में पुलिस की कार्यशैली पर गंभीर सवाल उठाए। कोर्ट ने कहा कि पुलिस द्वारा पीड़िता के लिए एम्बुलेंस या किसी अन्य वाहन की व्यवस्था नहीं करना स्पष्ट रूप से दिशानिर्देशों का उल्लंघन है। कोर्ट ने यह भी पाया कि जब पीड़िता अस्पताल में भर्ती थी, तो महिला पुलिसकर्मी ने थाने में ही बैठकर पीड़िता का बयान दर्ज किया और जीडी में झूठी प्रविष्टि की गई कि पीड़िता को कोई चोट नहीं आई है।
न्यायमूर्ति राजबीर सिंह ने कहा कि थाना इंचार्ज जीडी के कस्टोडियन (संरक्षक) होते हैं और इसकी सत्यता बनाए रखने की उनकी सीधी जवाबदेही होती है। उन्होंने सीबीआई की विशेष अदालत, गाजियाबाद द्वारा दिनेश वर्मा की डिस्चार्ज अर्जी (आरोपमुक्त करने की याचिका) को पहले ही निरस्त किए जाने के फैसले का भी हवाला दिया।
हाईकोर्ट नहीं करेगा मिनी ट्रायल, सबूत ट्रायल कोर्ट में होंगे तय
याचिकाकर्ता दिनेश वर्मा की तरफ से यह दलील दी गई थी कि घटना में उनकी कोई भूमिका नहीं है और उन्हें झूठा फंसाया जा रहा है। इस पर हाईकोर्ट ने स्पष्ट कहा कि वह इस स्तर पर ‘मिनी ट्रायल’ नहीं कर सकती है। कोर्ट ने कहा कि आरोप सही हैं या गलत, यह सबूतों के आधार पर ट्रायल कोर्ट में ही तय होगा। हाईकोर्ट को केस रद्द करने का कोई ठोस आधार नहीं मिला, जिसके चलते याचिका खारिज कर दी गई।
सीबीआई की तरफ से डिप्टी सॉलिसिटर जनरल वरिष्ठ अधिवक्ता ज्ञान प्रकाश और संजय कुमार यादव ने इस याचिका का पुरजोर विरोध किया।
क्या था हाथरस दलित दुष्कर्म कांड?
गौरतलब है कि 14 सितंबर 2020 को हाथरस में अनुसूचित जाति की एक युवती अपनी मां के साथ खेत में चारा लेने गई थी। आरोप है कि वहां संदीप नामक युवक ने अपने साथियों के साथ मिलकर उसे खेत में घसीटा, उसके साथ दुष्कर्म किया और गला दबाकर मारने की कोशिश की। शोर मचाने पर आरोपी भाग गए। पीड़िता के भाई, दादी और अन्य परिजन उसे अर्ध-विक्षिप्त हालत में थाने लेकर पहुंचे और शिकायत दर्ज कराई, लेकिन आरोप है कि पुलिस ने शुरुआत में कोई मदद नहीं की।
पीड़िता ने अपने बयान में कहा था कि उसका मेडिकल परीक्षण समय पर नहीं कराया गया और न ही पुलिस ने उसे अस्पताल भेजने का कोई इंतजाम किया। मजबूरन उसके भाई को ऑटो रिक्शा से उसे जिला अस्पताल हाथरस ले जाना पड़ा, जहां से उसे अलीगढ़ के एक बड़े अस्पताल में रेफर कर दिया गया। अलीगढ़ में ही पीड़िता और शिकायतकर्ता का मजिस्ट्रेट के समक्ष बयान दर्ज हुआ था।
इस मामले ने तब और तूल पकड़ लिया जब 29 सितंबर को इलाज के दौरान पीड़िता की मौत हो गई। इसके बाद पुलिस ने कथित तौर पर परिवार की मर्जी के खिलाफ आधी रात को उसका अंतिम संस्कार कर दिया, जिससे देशभर में भारी आक्रोश फैल गया था। मामले की गंभीरता को देखते हुए इसकी जांच सीबीआई को सौंपी गई थी, जिसने गाजियाबाद में एफआईआर दर्ज कर जांच शुरू की। सीबीआई ने मुख्य आरोपी संदीप, रामू, रवि और लवकुश के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की और बाद में तत्कालीन थाना प्रभारी दिनेश वर्मा व अन्य पुलिसकर्मियों के खिलाफ भी आरोप पत्र दाखिल किया।
कोर्ट ने माना मीडिया कवरेज न रोकना भी लापरवाही
याचिकाकर्ता दिनेश वर्मा ने अपनी याचिका में यह भी कहा था कि उन्होंने हर आवश्यक कार्यवाही की थी और मौके पर भारी भीड़ तथा मीडिया कवरेज हो रहा था। हालांकि, कोर्ट ने इस दलील को खारिज करते हुए कहा कि एक रेप पीड़िता की पहचान उजागर करना कानूनन अपराध है। कोर्ट ने तत्कालीन एसएचओ को मीडिया कवरेज न रोकने के लिए भी लापरवाही का जिम्मेदार माना। कोर्ट ने कहा कि पीड़िता का फोटो या वीडियो बनाकर सार्वजनिक करना उसकी गरिमा और निजता का उल्लंघन है और याची (दिनेश वर्मा) ने अपनी ड्यूटी का सही ढंग से निर्वहन नहीं किया। इन्हीं सब कारणों के चलते हाईकोर्ट ने सीबीआई कोर्ट में चल रही आपराधिक कार्यवाही में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया।
इस फैसले से हाथरस कांड के पीड़ितों के परिवार को न्याय की उम्मीद बंधी है और यह पुलिस अधिकारियों के लिए भी एक कड़ा संदेश है कि कर्तव्य पालन में किसी भी तरह की लापरवाही बर्दाश्त नहीं की जाएगी। सीबीआई अब दिनेश वर्मा के खिलाफ अपने मामले को आगे बढ़ा सकेगी।