महाकुंभ 2025 की शुरुआत 13 जनवरी से होने जा रही है। संगम नगरी प्रयागराज में श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ेगी और लाखों लोग पवित्र संगम में डुबकी लगाने आएंगे। इस भव्य आयोजन में हर साल कुछ अलग-अलग बाबा और साधु-संत अपनी उपस्थिति से सबका ध्यान आकर्षित करते हैं। इस बार महाकुंभ में एक ऐसा बाबा पहुंचे हैं, जिनका घर न कोई आश्रम है, न कोई मंदिर – उनका घर है एक पुरानी एंबेसडर कार। जी हां, हम बात कर रहे हैं महंत राजगिरी की, जिनकी एंबेसडर कार ही उनका घर और आश्रम बन चुकी है।
एंबेसडर बाबा की अनोखी जिंदगी
महंत राजगिरी, जो इंदौर से महाकुंभ में आए हैं, ने अपना जीवन पूरी तरह से साधना और आत्मिक शांति की खोज में समर्पित कर दिया है। वे अपने साथ एक भगवा रंग की पुरानी एंबेसडर कार लेकर आए हैं, जो इन दिनों उनके जीवन का अभिन्न हिस्सा बन चुकी है। इस कार को बाबा ने 35-40 साल पहले दान में प्राप्त किया था और तब से यह उनके लिए एक चलते-फिरते आश्रम के रूप में बदल गई है।
राजगिरी बाबा का कहना है, “यह कार मेरी शांति और आत्मनिर्भरता का प्रतीक है। इसने मुझे दुनियावी परेशानियों से दूर रखकर आत्मकेंद्रित होने में मदद की है।” इस कार में बाबा ने अपनी जीवनशैली के मुताबिक कुछ खास बदलाव किए हैं, ताकि यह उनके लिए न केवल यात्रा का साधन, बल्कि एक सुकूनभरा ठिकाना भी बन सके।
कार की अनोखी डिजाइन और उपयोग
महंत राजगिरी ने अपनी एंबेसडर कार को बेहद अनोखे तरीके से ढाल लिया है। कार के बाहरी हिस्से में एक पंखा फिट किया गया है, जो गर्मी में राहत पहुंचाता है, और अंदर एक पाइप के माध्यम से एक चेंबर जोड़ा गया है, जिसे एसी की तरह इस्तेमाल किया जाता है। बाबा की यह कार उनके लिए एक चलता-फिरता आश्रम है, जिसमें वे दिन-रात आत्मिक शांति की खोज करते हैं।
इस कार के हेडलाइट्स पर बाबा ने आंखों का डिजाइन बनवाया है, और कार की छत को मचान की तरह बना दिया है, जो उनके लिए पलंग का काम करती है। बाबा जब चाहें, अपनी गाड़ी को कहीं भी खड़ा करते हैं और छत पर सो जाते हैं। यह सब देख श्रद्धालु इस कार को देखकर हैरान रह जाते हैं, और महंत राजगिरी को “टार्जन बाबा” या “एंबेसडर कार वाले बाबा” के नाम से भी जानते हैं।
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कुंभ में आने की वजह और जीवन का उद्देश्य
महंत राजगिरी का कहना है कि उनका कोई परिवार नहीं है और वे बचपन में ही घर छोड़ चुके थे। लेकिन इस एंबेसडर कार का मोह उन्होंने कभी नहीं छोड़ा। वे मानते हैं कि यह कार एक साथी के रूप में उनके जीवन में हमेशा बनी रहेगी, और यह 40 साल पुरानी एंबेसडर कार उनके जीवन के साथ ही जाएगी।
बाबा का उद्देश्य महाकुंभ में आने का सिर्फ और सिर्फ आत्मिक उन्नति और दूसरों को शांति का संदेश देना है। वे मानते हैं कि इस जीवनशैली ने उन्हें अपनी आत्मा से जुड़ने का अवसर दिया है और यही शांति और संतोष उनका सच्चा ध्येय है।
महाकुंभ में श्रद्धालुओं को संदेश
राजगिरी बाबा का मानना है कि महाकुंभ जैसे पवित्र आयोजन में आने का मुख्य उद्देश्य सिर्फ और सिर्फ आत्मिक उन्नति है। वे श्रद्धालुओं से यही कहते हैं कि बाहरी दुनिया से जुड़ी सभी मोह-माया को छोड़कर हमें अपने अंदर की शांति और संतुलन की ओर ध्यान देना चाहिए। बाबा का जीवन और उनकी एंबेसडर कार इस बात का प्रतीक हैं कि किसी भी साधक को किसी भी भव्यता या ऐश्वर्य की जरूरत नहीं होती, अगर उसे अपनी आत्मा की शांति मिल जाए।
महाकुंभ 2025 में महंत राजगिरी का यह अनोखा जीवन और उनका एंबेसडर कार वाला आश्रम श्रद्धालुओं के लिए एक प्रेरणा का स्रोत बनेगा। वे साबित करते हैं कि एक साधू को भौतिक सुख-साधनों की आवश्यकता नहीं होती, बल्कि आंतरिक शांति और संतोष ही उसका वास्तविक आश्रम है।
महंत राजगिरी की कहानी एक सच्ची प्रेरणा है, जो यह बताती है कि जीवन में सबसे महत्वपूर्ण चीज है आत्मिक शांति और संतुलन। चाहे वह पुरानी एंबेसडर कार हो या साधना का कोई दूसरा तरीका, जब तक मन में शांति हो, तब तक कोई बाहरी वस्तु मायने नहीं रखती। महाकुंभ 2025 में आने वाले श्रद्धालुओं को महंत राजगिरी का यह संदेश निश्चित ही प्रेरित करेगा।
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