संस्कृति भवन में हुआ “कला संवाद” कार्यक्रम “कला और कलम” में कवियों-चित्रकारों की खूब चली डाढ़ामेड़ी

Sumit Garg
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…इन उंगलियों के पोरों का, कौन सा तरंग देकर, 

छिप जायेगी!

 

संस्कृति भवन में हुआ “कला संवाद” कार्यक्रम “कला और कलम” में कवियों-चित्रकारों की खूब चली डाढ़ामेड़ी

 

प्रो. चित्रलेखा सिंह के चित्रों की प्रदर्शनी का संस्कृति भवन, ललित कला संस्थान की आर्ट गैलरी में समापन

आगरा। ललित कला संस्थान के 25वें स्थापना वर्ष के अंतर्गत आयोजित कार्यक्रमों की श्रृंखला में संस्कृति भवन की आर्ट गैलरी में लगी प्रो. (डॉ.) चित्रलेखा सिंह की पेंटिंग्स की एकल प्रदर्शनी “चित्रांजलि” का समापन 25 जून को मुख्य अतिथि डॉ. रंजना बंसल द्वारा पेंटिंग उतार कर किया गया। इस मौके पर “कला संवाद” कार्यक्रम का भी आयोजन किया गया, जिसमें आगरा के कलाकारों, कला समीक्षकों और कलाप्रेमियों ने शिरकत की। कार्यक्रम का शुभारंभ डॉक्टर रंजना बंसल ने दीप प्रज्ज्वलित कर किया। कार्यक्रम की अध्यक्षता संस्थान के निदेशक प्रो. संजय चौधरी और संस्थान की पूर्व निदेशक डॉक्टर सरोज भार्गव ने संयुक्त रूप से की। संस्थापक निदेशक प्रो. (डॉ.) चित्रलेखा सिंह ने कहा संस्थान कलाकारों को गढ़ने के लिए मेरा एक सपना था, जो साकार ही नहीं हुआ बल्कि आज देश विदेश में विख्यात कलाकारों की एक पीढ़ी तैयार कर चुका है। आज कला में आकर्षक करियर युवाओं को लुभा रहा है। वर्तमान निदेशक प्रो. संजय चौधरी ने कहा कला भावों की अभिव्यक्ति का सशक्त माध्यम है, ललित कला संस्थान सिल्वर जुबली सेलिब्रेशन में साल भर कार्यक्रम आयोजित करेगा। पूर्व निदेशक डॉ. डॉ.सरोज भार्गव ने कहा कला मन और आत्मा की तृप्ति का साधन भी है। सृजन आत्मिक संतुष्टि का सुख देता है।

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कला विषयक विमर्श कार्यक्रम “कला संवाद” में “कला और कलम” में कवियों-चित्रकारों की खूब डाढ़ामेड़ी चली। ललित कलाओं से जुड़े समसामयिक मुद्दों और भविष्यगत संभावनाओं पर भी चर्चा हुई। चित्रकारों ने इस मौके पर कवितायें भी सुनाई।

डॉ. चित्रलेखा सिंह ने कविता सुनाई-

“निमंत्रण देती आंखें, क्या कहना चाहती हैं, 

अनजाने में किए गए, इन उंगलियों के पोरों का, 

कौन सा तरंग देकर, छिप जायेगी!”

 

चित्रकार अशोक कुमार सिंह ने कविता सुनाई-

“जहां सवेरा का मतलब उदासी हो,

आ लौट चलें चल लौट चलें, 

गमखाने में ढली जिंदगी,

कराह रही है इन्हें आंसू नसीब नहीं है,

सड़क धिक्कारती है इन्हें दूर से,

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सूखी हड्डियों ने देखा कभी नूर नहीं,

जहां सबेरे का मतलब उदासी हो!”

 

ललित कला अकादमी सदस्य डॉ. आभा ने कविता सुनाई-

“आसान नहीं होता शब्दों का आकार लेना,

बहुत से एहसास बहुत से भाव अंतस में,

कहीं ज्वालामुखी से फूटते हैं पिघलते हैं,

बहते हैं कई शब्द रेंगते हैं मन की,

गहराइयों में बाहर निकलने को बैचेन तड़पते हैं,

तब कहीं जा के वो खुद को आकार देते हैं!”

 

ललित कला संस्थान के डिप्टी डायरेक्टर मनोज कुमार सिंह ने कविता सुनाई-

“कल सुबह के दामन में हम होंगे न तुम होंगे,

इस कलादीर्घा में हमारे कुछ नक्शे-कदम होंगे!”

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इस अवसर पर डॉ. साधना सिंह, डॉ. नीलम कांत, डॉ. त्रिलोक कुमार शर्मा, कमलेश चंद्र जैन, भूमिका तिवारी, डॉ. तपस्या सिंह, रेशमा बेदी, डॉ. राजेश सैनी, गणेश कुशवाह आदि मौजूद थे। संचालन नंद नंदन गर्ग ने किया। धन्यवाद ज्ञापन शीला बहल ने किया।

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प्रभारी-दैनिक अग्रभारत समाचार पत्र (आगरा देहात)
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