आगरा: आगामी बकरा ईद (ईद उल अजहा) के पर्व से पहले, वंचितसमाज इंसाफ पार्टी के राष्ट्रीय सचिव और फतेहपुर सीकरी लोकसभा क्षेत्र से पूर्व सांसद प्रत्याशी, एडवोकेट गुल चमन शेरवानी ने देश भर के मुस्लिम समाज से एक महत्वपूर्ण अपील की है। उन्होंने कहा है कि बकरा ईद के नाम पर कुर्बानी करें, जीव हत्या नहीं। शेरवानी ने मुस्लिमों से आग्रह किया है कि वे कुर्बानी के वास्तविक अर्थ को समझें और पर्व को सामाजिक सौहार्द और संवेदनशीलता के साथ मनाएं।
कुर्बानी का सही मक़सद: नीयत और तकवा
शेरवानी ने अपनी अपील में स्पष्ट किया कि अल्लाह कुर्बानी से हमारी नीयत और तकवा (परहेजगारी) देखता है। उन्होंने कहा, “अल्लाह कहता है कि कुर्बानी करो, वह कुर्बानी से आपकी नीयत और तकवा, हराम कामों से बचाना देखा है।” इसका सीधा मतलब है कि हम अपनी हर नफ्सी ख्वाहिश (व्यक्तिगत इच्छा) को अल्लाह के हुक्म के ताबे कर दें। कुरान और हदीस के खिलाफ किसी भी इच्छा या काम का त्याग करना ही अल्लाह की राह में सच्ची कुर्बानी है।
शेरवानी ने चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि अगर हम हराम कामों जैसे झूठ, धोखा, फरेब, लालच, स्वार्थ, दिखावा, आवारागर्दी, गलत सोहबत, नशा, सट्टा और जुआ के दलदल में फंसे हुए हैं और अपनी नफ्सी ख्वाहिशों के गुलाम बने हुए हैं, तो हमारी जानवर की कुर्बानी सिर्फ पैसे का दिखावा है, जीव हत्या है। यह अल्लाह के नाम पर दी गई सच्ची कुर्बानी नहीं है।
सामाजिक संवेदनशीलता और अखलाक का पैगाम
शेरवानी ने मुस्लिम समुदाय से कुर्बानी की तस्वीरें सोशल मीडिया पर न डालने और खून को नालियों में न जाने देने का आग्रह किया। उन्होंने पर्दे का एहतराम करने और किसी की भावनाओं को ठेस न पहुंचाने पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि इस्लाम में अनाथ बच्चों की मौजूदगी में अपने बच्चों से मोहब्बत न करने और विधवा औरत के सामने अपनी बीवी से मोहब्बत न जताने की बात कही गई है, ताकि उनकी भावनाओं को ठेस न पहुंचे। इसी तरह, बकरा ईद पर भी दूसरे समुदाय के लोगों की भावनाओं का ख्याल रखना चाहिए।
ईद उल अजहा: वास्तविक कुर्बानी का संकल्प
श्री शेरवानी ने ईद उल अजहा के दिन सभी हराम कामों को छोड़ने और वास्तविक कुर्बानी करने का संकल्प लेने का आह्वान किया। उन्होंने एक और बड़ी कुर्बानी की बात की – अगर किसी से बोलचाल बंद है या मनमुटाव है, तो अपनी गलती मानकर माफी मांग लेना या उसे माफ करके गले लगा लेना। उन्होंने कहा कि हमें अपने अखलाक और किरदार का जायजा लेना चाहिए कि हमने किसी का दिल तो नहीं दुखाया, किसी को तकलीफ तो नहीं पहुंचाई, या किसी का हक तो नहीं मारा। उनके अनुसार, अगर हम इन बातों में चूक गए तो सारी इबादत धरी रह जाएगी और हम नाकाम हो जाएंगे।
अल्लाह की राह में खर्च करें अजीज चीजें
शेरवानी ने अल्लाह के इस कथन को दोहराया कि जो चीज तुम्हें अजीज हो वही हमारी राह में खर्च करो। उन्होंने कहा कि आजकल दो चीजें सबसे अजीज हैं – पैसा और आदमी की नफ्सी ख्वाहिश। अगर पैसा अल्लाह की राह में यानी जरूरतमंदों, दोस्तों, रिश्तेदारों और मिशनरी कामों में खर्च नहीं किया जा रहा है, और केवल अपने आराम, गाड़ी, बंगला, बीवी-बच्चों पर उड़ाया जा रहा है, तो यह कुर्बानी नहीं है। इसी प्रकार, यदि व्यक्ति हर वक्त अपनी नफ्सी ख्वाहिशों को पूरा करने में लगा रहता है, तो वह कुर्बानी नहीं दे रहा है। उन्होंने सवाल उठाया कि जब कुर्बानी देने वाले जानवर में ऐब तलाश किया जाता है, तो कुर्बानी देने वाले व्यक्ति में अगर ऐब हो तो कुर्बानी कैसे हो सकती है?
शेरवानी की यह अपील बकरा ईद के पर्व के आध्यात्मिक और सामाजिक पहलुओं पर जोर देती है, जिसमें कुर्बानी का अर्थ सिर्फ जानवर की बलि देना नहीं बल्कि आत्म-संयम, परोपकार और नैतिक मूल्यों का पालन करना है।