आगरा: एक ओर जहाँ नगर निगम यमुना नदी के शुद्धिकरण को लेकर तरह-तरह की कार्रवाई का दावा करता है, वहीं दूसरी ओर यमुना की गंदगी लगातार बढ़ रही है। इसका एक बड़ा कारण नदी में धड़ल्ले से नहाने वाली भैंसें हैं। इन भैंसों को रोकने की जिम्मेदारी नगर पशु कल्याण अधिकारी (NPWO) डॉ. अजय सिंह यादव को दी गई है, लेकिन शहर में उनकी किसी भी कार्रवाई का कोई कारगर असर दिखाई नहीं दे रहा है। पार्षदों का आरोप है कि NPWO अपनी जिम्मेदारियों में ‘सेटिंग’ का खेल बिठाते हैं।
बाउंसर भी बेअसर, NPWO पर संरक्षण का आरोप
यमुना में भैंसों को रोकने के लिए निगम ने बाउंसर भी नियुक्त किए हैं, लेकिन ये बाउंसर भी रोज़ाना नदी में आने वाली भैंसों को रोक नहीं पा रहे हैं। स्थानीय लोगों का कहना है कि ये बाउंसर भी नगर पशु कल्याण अधिकारी के ‘संरक्षण’ में शहर में जगह-जगह मनमर्जी करते दिखाई देते हैं, जिसका एक वीडियो पिछले दिनों सोशल मीडिया पर वायरल भी हुआ था। यही कारण है कि नगर पशु कल्याण अधिकारी की कार्यप्रणाली पर उनके अपने अधिकारी, महापौर और जनता लगातार प्रश्न चिन्ह लगा रहे हैं। इसके बावजूद, नगर आयुक्त द्वारा उनसे अतिरिक्त कार्यभार छीना नहीं जा रहा है।
यमुना शुद्धिकरण में बड़ी बाधा बनी भैंसें
यमुना शुद्धिकरण के लिए दिल्ली सरकार के अलावा प्रदेश सरकार भी लगातार प्रयास कर रही है। यमुना को प्रदूषित करने में नालों के गंदे पानी और कूड़ा फेंकने के साथ ही भैंसों का भी सबसे बड़ा योगदान है। NPWO डॉ. अजय सिंह यादव इस जिम्मेदारी को निभाने का दिखावा तो खूब करते हैं, लेकिन इसका असर यमुना नदी में कहीं भी देखने को नहीं मिलता है। आज भी धड़ल्ले से भैंसें यमुना में नहाने आती हैं और घंटों नदी के पानी में बैठकर गर्मी से राहत का आनंद लेती हैं। सवाल यह उठता है कि ये भैंसें कौन लाता है, कौन इनको यमुना में नहाने की अनुमति देता है या फिर यमुना में भैंसों का नहान सही है?
सिर्फ दिखावा बन कर रह गए अभियान
पिछले दिनों NPWO द्वारा यमुना में भैंसों को रोकने के लिए एक ज़ोरदार अभियान चलाया गया था, जिसकी मीडिया में खूब धूम रही। लेकिन इसका असर कुछ ही दिनों तक दिखाई दिया। उसके बाद फिर एक बार यमुना में घंटों तक भैंसों का नहाना यह बता रहा है कि नगर पशु कल्याण अधिकारी सिर्फ कार्य के प्रति दिखावा करते हैं, और उसके बाद ‘सेटिंग’ के तहत सब कुछ पहले जैसा ही चलने लगता है।
यमुना नदी के किनारे रहने वाले लोगों ने बताया कि दिन में तो कुछ भैंसें आती हैं, लेकिन अब रात में भी भैंसों का आना जारी है। उनका कहना है कि कार्रवाई के नाम पर सिर्फ दिखावा होता है, और यह ‘सेटिंग का खेल’ है। जो सेटिंग कर लेगा, वही यमुना जी को और अधिक अशुद्ध करने में अपनी अहम भूमिका निभाएगा।
पार्षद का आरोप: NPWO की अहम भूमिका से प्रदूषित हो रही यमुना
वार्ड 84 के पार्षद हरिओम गोयल ने इस संबंध में खुलकर बात की। उन्होंने साफ कहा कि नगर पशु कल्याण अधिकारी को यमुना से कोई लेना-देना नहीं है। उनका कहना है कि NPWO किसी भी शिकायत की सुनवाई नहीं करते हैं। पार्षद गोयल ने यह भी बताया कि NPWO के खिलाफ आवारा कुत्तों (स्वान) को लेकर जो जांचें चल रही हैं, वे जल्दी से पूरी होनी चाहिए, अन्यथा उन्हें जनहित में मजबूर होकर धरना देना पड़ेगा। उन्होंने कहा कि यमुना में भैंसों की शिकायतें कई बार की गईं और गली के आवारा कुत्तों के बारे में भी शिकायतें की गईं, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई। जिसके चलते आज भी भैंसों के साथ-साथ आवारा जानवरों से क्षेत्र की जनता बेहद परेशान है और इसका निदान अब होना ही चाहिए।
यमुना में धुल रहे कपड़े भी
भैंसों के नहाने का सिलसिला तो छोड़िए, यमुना के हालात यह हैं कि अब तो यमुना किनारे कपड़े भी धोए जा रहे हैं। ऐसा नहीं है कि निगम के जिम्मेदार अधिकारियों को यह दिखाई नहीं देता हो, लेकिन इसके बावजूद भी कपड़े धोने पर रोक नहीं लग पा रही है। इससे यह साफ हो जाता है कि यमुना की रखवाली करने वाले ही कहीं न कहीं यमुना को दूषित करने में लगे हुए हैं।
अब देखना होगा कि भगवान कृष्ण की श्री यमुना माता को कब तक जिम्मेदार अधिकारी नजरअंदाज करते रहेंगे। फिलहाल, यदि नगर निगम चाहे तो एक भी भैंस यमुना नदी में नहीं जा सकती है, लेकिन आज भी लगातार यमुना को अशुद्ध करने के लिए भैंसें यमुना में जा रही हैं।