बृज खंडेलवाल
आगरा शहर के हृदयस्थल में बसा बेलनगंज, एक ऐसा क्षेत्र है जो सदियों से इतिहास की अनगिनत परतों को अपने भीतर समेटे हुए है। कभी यह क्षेत्र अपनी भव्यता और व्यापारिक गतिविधियों के लिए दूर-दूर तक जाना जाता था, लेकिन आज यह शहरी जीवन की जटिलताओं और आधुनिकता की चुनौतियों से जूझ रहा है। फिर भी, बेलनगंज आज भी आगरा की जीवंतता और ऐतिहासिक विरासत का एक अद्वितीय संगम प्रस्तुत करता है।
आजादी से पहले बेलनगंज का वैभव देखते ही बनता था। यहाँ के प्रतिष्ठित “लाला” (व्यापारी वर्ग) इस क्षेत्र की शान हुआ करते थे। भगत हलवाई की दुकान, जो कभी राजनीतिक गतिविधियों का केंद्र हुआ करती थी, आज भी पुरानी यादों को ताजा करती है। बड़े-बड़े नेताओं ने यहाँ की स्वादिष्ट मिठाइयों का स्वाद चखा है। सेठ सूरज भान का फाटक और सटोरियों का पाटिया क्षेत्र की रौनक में चार चाँद लगाते थे। हीरा हलवाई और देवी राम हलवाई जैसे पारंपरिक प्रतिष्ठान आज भी अपनी पहचान बनाए हुए हैं, जबकि राम बाबू परांठा भंडार और श्री राम भोजनालय की लोकप्रियता में कुछ कमी आई है। इसके विपरीत, छोले भटूरे के कई नए ठिकाने और पक्का बाबा के दाल के चीले आज भी बड़ी संख्या में खाद्य प्रेमियों को आकर्षित करते हैं।
भौगोलिक रूप से, बेलनगंज आगरा दक्षिण विधानसभा क्षेत्र का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। ताजमहल, आगरा किला और जामा मस्जिद जैसे विश्व धरोहर स्थलों के निकट होने के कारण, यह क्षेत्र पर्यटकों और स्थानीय लोगों के लिए समान रूप से आकर्षण का केंद्र बना रहता है। सड़क मार्ग, सार्वजनिक परिवहन और आगरा फोर्ट रेलवे स्टेशन की निकटता ने इसे व्यापार और आवागमन का एक महत्वपूर्ण केंद्र बना दिया है। एक समय तो यह आगरा सिटी रेलवे स्टेशन से मात्र 0.8 किलोमीटर की दूरी पर स्थित था, जिससे इसकी सुगमता और भी बढ़ जाती थी।
बेलनगंज का नामकरण एक अंग्रेज कलेक्टर के नाम पर हुआ था। हलवाइयों, पूरी, कचौड़ी बेलने वालों, की वजह से भी ये नाम पॉपुलर हुआ। कई क्रांतिकारियों ने बेलनगंज का नाम रोशन किया है। मुगल काल में स्थापित, इस क्षेत्र ने समय के साथ एक प्रमुख व्यापारिक केंद्र के रूप में तेजी से विकास किया। क्षेत्र का पुष्टिमार्गीय श्री मथुराधीश मंदिर और भगत हलवाई, दोनों लगभग चार सौ वर्ष पुराने हैं।
आज, बेलनगंज विशेष रूप से अपने थोक बाजारों के लिए प्रसिद्ध है, जहाँ दूर-दूर से व्यापारी आकर विभिन्न प्रकार के सामानों की खरीदारी करते हैं। यहाँ विद्युत उपकरणों से लेकर वस्त्रों तक, हर प्रकार की वस्तुएं आसानी से उपलब्ध हैं। जस्टडायल की एक सूची के अनुसार, अकेले इलेक्ट्रिकल सामानों की ही यहाँ 260 से अधिक दुकानें हैं, जो इस क्षेत्र की व्यावसायिक महत्ता को दर्शाती हैं।
बेलनगंज की आर्थिक गतिविधियों को प्रमुख बैंकों की उपस्थिति से और भी मजबूती मिलती है। बैंक ऑफ बड़ौदा, आईसीआईसीआई बैंक और पंजाब नेशनल बैंक जैसी प्रतिष्ठित बैंकों की शाखाएं यहाँ स्थित हैं, जो व्यापारियों के लिए वित्तीय लेनदेन को सुगम बनाती हैं।
इस क्षेत्र का सांस्कृतिक और सामाजिक ताना-बाना भी अत्यंत समृद्ध है। ताजमहल और आगरा किले के करीब होने के कारण, बड़ी संख्या में पर्यटक बेलनगंज के जीवंत बाजारों में घूमते हुए दिखाई देते हैं, जिससे यहाँ की चहल-पहल बनी रहती है। व्यावसायिक गतिविधियों की गहनता के बावजूद, बेलनगंज में आज भी सामुदायिक जीवन की भावना जीवित है। क्षेत्र की कई पुरानी हवेलियाँ आज भी वास्तुकला और इतिहास प्रेमियों के लिए आकर्षण का केंद्र हैं। कभी राय बहादुर सेठ तारा चंद खंडेलवाल की लाल पत्थर की कोठी इस क्षेत्र की पहचान हुआ करती थी। पुराने लोग बताते हैं कि बेलनगंज के बनियों को रामलीला के आयोजन में उचित सम्मान न मिलने के कारण बल्केश्वर गौशाला में श्री कृष्ण लीला की शुरुआत हुई, जो बाद में बहुत लोकप्रिय हुई। इस इलाके में मंदिरों और धर्मशालाओं की भी बहुतायत थी। अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त होम्योपैथ डॉ. राधे श्याम पारीक भी बेलनगंज में ही अपनी प्रैक्टिस करते थे। यह क्षेत्र मुख्य रूप से बनिया और ब्राह्मण समुदायों का गढ़ होने के कारण, यहाँ प्याज तक नहीं मिलती थी। शाकाहारी भोजन और चाट-पकौड़ी, भल्ले और गोलगप्पे के अनेक स्टॉल यहाँ हमेशा गुलजार रहते थे। किरोड़ी के मंगौड़े और तेल की कचौड़ी यहाँ के लोगों के बीच खूब पसंद की जाती थी।
यमुना नदी के तट पर स्थित होने के कारण, बेलनगंज के कई हिस्सों से नदी के मनोरम दृश्य दिखाई देते हैं। हालांकि, तेजी से बढ़ती जनसंख्या और वाहनों के कारण, ट्रैफिक जाम और पार्किंग की समस्या यहाँ एक बड़ी चुनौती बनती जा रही है। फिर भी, नगर निगम ने क्षेत्र के विकास और यातायात प्रबंधन के लिए कई महत्वाकांक्षी योजनाएं शुरू की हैं, जिससे भविष्य में इन समस्याओं से निजात मिलने की उम्मीद है।
अतीत में, बेलनगंज आढ़तियों और उद्योगपतियों की बड़ी-बड़ी गद्दियों का केंद्र था, खासकर कोठी केवल सहाय, बारह भाई की गली, रानी वाला घेरा, बारहपुरा, तिकोनिया और भैरों बाजार जैसे इलाके व्यापार की धुरी थे। जीवनी मंडी चौराहे से कचहरी घाट और यमुना किनारे से पथवारी तक बेलनगंज का क्षेत्र फैला हुआ था। घास की मंडी और फ्री गंज, गधा पाड़ा जैसे क्षेत्रों में बड़ी संख्या में फाउंड्री और अन्य कारखाने हुआ करते थे। यमुना नदी के माध्यम से नावों द्वारा व्यापार होता था, और नदी के किनारे बड़े-बड़े गोदाम बने हुए थे, जहाँ से माल बेलनगंज मालगोदाम भेजा जाता था। बाद में, ट्रांसपोर्ट कंपनियों के आगमन से व्यापार और भी सुगम हो गया। 1976 तक यमुना किनारे रोड पर मंदिरों और घाटों की एक लंबी श्रृंखला हुआ करती थी, जिसे आपातकाल के दौरान संजय गांधी के आदेश पर ध्वस्त कर दिया गया। योजना मुंबई की तर्ज पर एक चौपाटी विकसित करने की थी, लेकिन यह सपना आज तक अधूरा ही रहा, और यमुना का किनारा एक उजड़ी हुई संस्कृति का प्रतीक बनकर रह गया है। पिछले कुछ वर्षों से, रिवर कनेक्ट कैंपेन आरती के माध्यम से नगरवासियों को नदी से जोड़ने का प्रयास कर रहा है। हालांकि, जब तक नदी में पर्याप्त जल नहीं आता, अतीत के गौरव को पूरी तरह से बहाल करना मुश्किल है।
आज, बेलनगंज इतिहास, वाणिज्य और आधुनिकता का एक जीवंत मिश्रण है। यह क्षेत्र न केवल आगरा के शहरी परिदृश्य का एक अभिन्न अंग बना हुआ है, बल्कि अपनी ऐतिहासिक जड़ों और व्यावसायिक महत्व के कारण आज भी महत्वपूर्ण स्थान रखता है। बेलनगंज की गलियों में घूमते हुए, अतीत की गूंज और वर्तमान की चहल-पहल दोनों को महसूस किया जा सकता है, जो इसे आगरा का एक अनूठा और आकर्षक हिस्सा बनाता है।