आगरा (बरहन) : कस्बा बरहन आंवलखेड़ा मार्ग स्थित फार्म हाउस में नौ दिवसीय रामकथा का आयोजन किया जा रहा है। रविवार को इस कथा के सातवें दिन भरत संवाद का बाचन प्रसिद्ध कथा वाचक उमाशंकर पचौरी द्वारा किया गया।
कथा के इस भाग में भरत की भावनाओं और उनके त्याग की चर्चा की गई। भरत, जो अपने मामा के घर से लौटे, सीधे माता कैकई और राम भाई के कक्ष में गए। उन्हें यह जानकर गहरा दुख हुआ कि उनके प्रिय भाई राम और भाभी सीता 14 वर्षों के वनवास पर निकल चुके हैं। भरत ने माता कैकई को इस स्थिति के लिए जिम्मेदार ठहराते हुए कहा, “पुत्र कुपुत्र हो सकता है, मगर माता कुमाता नहीं होती।
भरत के दुखद शब्दों ने वहां उपस्थित सभी श्रोताओं को भावुक कर दिया। जब भरत को अपने पिता राजा दशरथ की मृत्यु की सूचना मिली, तो वह रोने लगे। वह अपनी तीनों माताओं के साथ अयोध्या से राम को वापस लाने के लिए निकल पड़े।
कथा में वर्णित है कि भरत चित्रकूट पर्वत पर पहुंचे, जहां लक्ष्मण लकड़ियाँ चुन रहे थे। लक्ष्मण ने जब भरत को सेना के साथ आते देखा, तो वह चिंतित हो गए। लेकिन राम ने उन्हें रोका और कहा कि उन्हें भरत को आने दिया जाए। भरत ने राम के चरणों में गिरकर क्षमा याचना की।
भरत और राम का मिलाप एक भावुक क्षण था। भरत ने राम से कहा कि अब उनके बीच पिता नहीं रहे। इस बात को सुनकर राम और सीता शोकाकुल हो गए। मंत्री सुमंत और प्रजा भरत को मनाने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन राम ने कहा, “पिता के दिए हुए वचन का मर्यादा नहीं टूटेगी।
भरत ने श्री राम के चरण पादुका को अपने सिर पर उठाकर आंसुओं के साथ विदा ली। वह 14 वर्षों तक राम की पादुका को अयोध्या के सिंहासन पर रखकर स्वयं जमीन पर रहकर राजपाट संभालते रहे।
कथा का यह भाग सुनकर पंडाल में बैठे सभी श्रोता भाव विभोर हो गए। अंत में श्री राम सीताराम का भजन कीर्तन करते हुए महा आरती के साथ प्रसंग समाप्त किया गया। इस दौरान भक्तिमय माहौल बना रहा, जिसमें कई प्रमुख लोग उपस्थित थे, जिनमें डॉ. महेश कुशवाहा, कुमकुम देवी, राधे लाल, बाबू लाल कुशवाह, और कई अन्य शामिल थे।
इस आयोजन ने क्षेत्र में एक अद्भुत धार्मिक वातावरण का निर्माण किया है, जिससे भक्तजन भावनात्मक रूप से जुड़ गए हैं।