नौकरी के नाम पर ठगी के शिकार हुए पीड़ित साल से काट रहे पुलिस और आरोपी के चक्कर
मदरसा कमेटी की धोखाधड़ी, कूटरचित दस्तावेज तैयार कराने के समाचार को किया था प्रकाशित
आगरा। मदरसे में नौकरी लगवाने के नाम पर पांच लाख रुपये की ठगी, मदरसा के नाम पर धोखाधड़ी करने के लिए उपनिबंधन कार्यालय में फर्जी तरीके से सोसायटी को रजिस्टर कराने के मामले को आपके अखबार अग्र भारत ने प्रमुखता से प्रकाशित किया था। समाचार को अधिकारियों ने संज्ञान लेते हुए पीड़ित की शिकायत की जांच कराई। मामला सत्य पाये जाने पर पुलिस आयुक्त के आदेश पर शाहगंज थाने में धोखाधड़ी और कूटरचित दस्तावेज तैयार करने की धाराओं में मुकदमा दर्ज हुआ। मुकदमा दर्ज हुए एक माह से अधिक हो गया है। शाहगंज पुलिस मामले में लापरवाही बरत रही है। आरोपी खुलेआम धड़ल्ले से घूम रहे हैं। आरोपित पीड़ित के रिश्तेदार हैं। वह पीड़ित को समझौता करवाने के लिए धमका रहे हैं। वहीं दूसरी तरफ आरोपीगण मदरसा में अपनी अवैध गतिविधियां में बदस्तूर लिप्त हैं। धार्मिक स्थल को व्यवसाय का केन्द्र बना दिया है। वहां आये दिन जूता कारोबारियों की बैठक हो रही हैं। मदरसे के कमरों का इस्तेमाल व्यक्तिगत कामों में किया जा रहा है।
मदरसे में सरकारी शिक्षक की नियुक्ति के नाम पर 5 लाख ठगे
थाना हरीपर्वत के गांधी नगर में मदरसा फैज उल उलूम साबरी है। मदरसा में दरगाह और मस्जिद भी है। मदरसा के प्रबंधक मंडी सईद खा निवासी रईस अहमद हैं। यह पिछले 25 साल से मदरसा कमेटी में काबिज हैं। आरोप है कि वर्ष 2014 में प्रबंधक रईस अहमद ने कहा कि मदरसा सरकारी है और नौकरी के लिए अखबार में विज्ञापन दिया। आरोप है कि नौकरी लगाने के नाम पर एक दर्जन से अधिक लोगों से धोखाधड़ी कर चुके हैं। कई लोग तो ऐसे हैं,जो कई बड़ी मस्जिदों के इमाम हैं। वह शर्म और बदनामी की वजह से सामने नहीं आ रहे हैं। प्रबंधक रईस अहमद ने अपने सगे बड़े भाई के बेटे शाहगंज के केदार नगर निवासी शाकिरु द्दीन को भी नहीं बख्शा। उनसे भी पांच लाख रुपये हड़प लिये। शाकिरुद्दीन ने चाचा से रुपये मांगे तो अपनी ऊंची पहुंच रसूख दिखाकर धरा-धमका दिया। समाज के लोगों ने बुरा-भला कहा, तो चाचा और चचेरे भाई अदनान ने जनवरी 2022 में अपने लेटर पैड पर रकम वापस करने के बारे में लिखकर दे दिया, लेकिन रुपये आजतक वापस नहीं किये हैं। सोसायटी के अन्य लोग भी दबाव बना रहे हैं। पीड़ित ने न्याय के लिए आलाधिकारियों से गुहार लगाई है।
गांधी नगर में स्थित फैज उल उलूम
चालीस साल पहले की बात करें, तो दरगाह और छोटी सी थी और मस्जिद कच्ची मिट्टी से निर्मित थी। दरगाह की देखरेख की जिम्मेदारी जीन खाना निवासी कुछ लोगों के हाथों में थी। तत्कालीन सोसायटी ने नेक नीयत से थोड़ा-थोड़ा कार्य कराया था। वर्ष 1990 में दरगाह और मस्जिद की देखरेख फरीद अहमद जैदी और रहीस अहमद साबरी के हाथों में आ गई। बताया जाता है कि इन दोनों ने इस स्थान पर कब्जा जमाने के बाद वर्ष 1998 में एक मदरसा तामील करने के लिए मान्यता ले ली। दो साल तक मदरसा कागजों में रहा। वर्ष 2000 में मदरसा के लिए कुछ कमरे बनवा दिये। उसके बाद से लगातार काबिज हैं।
उप निबंधक कार्यालय को किया था गुमराह
सोसायटी के अधयक्ष और महासचिव दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं। काम सही हो या गलत दोनों मिलकर ही करते हैं। मदरसा के नाम पर आने वाली ग्रांट का बंदरबांट, मदरसे के बच्चों की मदद के नाम पर खाना फ्री लेना । यह सब दोनों की फितरत में है । दरगाह की जगह वक्फ बोर्ड में वक्फ नंबर 584 में दर्ज है। रईस अहमद ने संस्था मदरसा फैज उल उलूम सावरिया समिति 25/50 गांधी नगर को वर्ष 2016-17 में उपनिबंधक कार्यालय में रजिस्टर्ड कराया। जिसमें मंडी सईद खान निवासी रईस अहमद साबरी ने खुद वर्ष 2016-17 उपनिबंधक को व्यापारी बताते हुए महासचिव दशार्या है। अध्यक्ष सैय्यद फरीद अहमद जैदी ने अपना पता मदरसा ही बताया है। फरहत अली उपाध्यक्ष हैं। बजीरपुरा निवासी अफजाल अहमद कुरैशी सचिव हैं। अलीगढ़ के रसूलगंज निवासी सैय्यद जब्बाद अहमद जैदी कोषाध्यक्ष हैं। कोतवाली के पाय चौकी निवासी हाजी तौफीक अहमद सदस्य पद पर हैं। कटरा दबकियान पाय चौकी निवासी अमीरूद्दीन सदस्य हैं। लंगड़े की चौकी निवासी शहजाद आलम खान भी सदस्य हैं।
धोखाधड़ी के लिए मृतकों के नाम किये सोसायटी में शामिल
उपनिबंधन कार्यालय में दर्ज सोसाइटी की बात करें, तो छीपीटोला निवासी फरहत अली पुत्र नुसरत अली पेशे से अध्यापक दर्ज हैं। समिति में उनको उपाध्यक्ष बनाया गया। जबकि मृत्यु प्रमाणपत्र के मुताबिक उनकी मौत पांच फरवरी 2014 में हो – गई थी। नगर निगम से प्रमाणपत्र 19 अप्रैल 2014 में हुआ है। सूची में सात 1 नंबर पर सदस्य के रूप में अमीरुद्दीन पुत्र कबरूद्दीन शेख का नाम अंकित है। इनके मृत्यु प्रमाण पत्र की माने तो 27 सितंबर 2013 में इनकी मौत हो गई थी। नगर निगम से जारी प्रमाणपत्र 19 दिसंबर 2015 में हुआ था। दोनों की मौत के बाद भी रईस अहमद – साबरी ने दोनों को उपनिबंधक कार्यालय में जिंदा रखे हुए हैं। इनकी मौत के तीन से चार साल बाद भी समिति में जिंदा दिखाने के पीछे क्या मकसद है। यह तो महासचिव ही बात सकते हैं। अध्यक्ष और महासचिव के दर्ज मोबाइल नंबरों पर संपर्क किया, लेकिन बात नहीं हो सकी।